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सशक्त हो रही नारीशक्ति! लाल आतंक की दुनिया छोड़ अपना भविष्य गढ़ रही महिलाएं, बिजनेस कर बदल रहीं तकदीर

12 महिलाओं ने हाल ही में राज्य की मदद से प्रशिक्षण प्राप्त करके अपना खुद का व्यवसाय शुरू किया है. ये महिलाएं स्पष्ट रूप से उस बदलाव के बारे में बताती हैं, जो उन्होंने बीते हुए सालों में महसूस किया है. सगुना साईनाथ बताती हैं कि, "जब मैंने आत्मसमर्पण किया था, तब हमें कोई जानकारी नहीं थी, लेकिन पुलिस ने हमारी बहुत मदद की और हम सभी प्रशिक्षण और मदद के लिए उनके आभारी हैं. उन्होंने हमें व्यवसाय स्थापित करने में भी मदद की है." 

12 नक्सली महिलाओं ने किया आत्मसमर्पण 12 नक्सली महिलाओं ने किया आत्मसमर्पण
हाइलाइट्स
  • आत्मसमर्पण करने वाली 12 महिलाएं कर रही हैं बिजनेस

  • पुलिस ने बदला नक्सली महिलाओं का जीवन

सरकार लगातार नक्सलियों को मुख्यधारा में लाकर उनका जीवन सुधारने की कोशिश में लगी हुई है, जिसके चलते राज्य सरकारें ये अपील कर रही है कि ज्यादा से ज्यादा नक्सली सरकार के सामने आत्मसमर्पण कर लें. हालांकि सरकार के इसी पहल के कारण अब कई नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया और जीवन आसान हो गया है.

बदल गया सुरेंद्रा का जीवन
महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले की रहने वाली 31 वर्षीय जानकी सुरेंद्रा नारुते आदिवासी महिला हैं. जो 2012 तक नक्सली थी. सुरक्षा बलों के समझाने पर उसने आत्मसमर्पण कर दिया और मुख्यधारा में जीवन जीने की कसम खाई. सालों बाद आज जानकी को लगता है उन्हें जीवन में एक उद्देश्य मिल गया है और वह गढ़चिरौली पुलिस को इसके लिए धन्यवाद देती है. जामकी का बताती हैं कि वो यहां व्यवसाय करना चाहती हैं, और अपना सारा ध्यान उस पर ही केंद्रित करना चाहती हैं. 

सुरेंद्रा नहीं है इकलौती नक्सली महिला
बता दें कि जानकी इकलौती ऐसा महिला नहीं हैं जिन्होंने आत्मसमर्पण करके एक अच्छा जीवन जीने की ठानी है. इससे पहले 2014 में 33 वर्षीय आदिवासी महिला सगुना साईनाथ ने सुरक्षाबलों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था. वह भी मानती है कि पुलिस ने उसे जीवन में एक उद्देश्य खोजने में मदद की है. सगुना का कहना है कि, "जब से मैंने आत्मसमर्पण किया है तब से बहुत कुछ बदल गया है. मैंने अपना घर बना लिया है. मैं अब एक व्यवसाय कर रही हूं और अब मुझे पता है कि मुझे जीवन में क्या करना है.

12 नक्सली महिलाओं का बदला जीवन 
जानकी और सगुना उन 12 महिलाओं में शामिल हैं, जिन्होंने हाल ही में राज्य की मदद से प्रशिक्षण प्राप्त करके अपना खुद का व्यवसाय शुरू किया है. ये महिलाएं स्पष्ट रूप से उस बदलाव के बारे में बताती हैं, जो उन्होंने बीते हुए सालों में महसूस किया है. सगुना साईनाथ बताती हैं कि, "जब मैंने आत्मसमर्पण किया था, तब हमें कोई जानकारी नहीं थी, लेकिन पुलिस ने हमारी बहुत मदद की और हम सभी प्रशिक्षण और मदद के लिए उनके आभारी हैं. उन्होंने हमें व्यवसाय स्थापित करने में भी मदद की है." 

सरकार कर रही नक्सली महिलाओं की मदद
आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों के लिए राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त पुनर्वास योजना के तहत पुलिस आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों को मुख्यधारा में लाने के लिए लगातार प्रयास कर रही है. हाल के एक प्रयास में 12 आत्मसमर्पण करने वाली नक्सली महिलाओं को महात्मा गांधी ग्रामीण औद्योगीकरण संस्थान वर्धा में अचार, पापड़ और फर्श साफ करने का प्रशिक्षण दिया गया. एक सप्ताह के प्रशिक्षण का परिणाम है कि ये महिलाएं अब बिक्री और वितरण के लिए अपना खुद का उत्पाद लेकर आई हैं.

नक्सली महिलाएं कर रही है बिजनेस
एसपी गढ़चिरौली अंकित गोयल ने पुष्टि की कि यह पहली बार है कि पुनर्वास कार्यक्रम में महिलाएं अपना उत्पाद लेकर आई हैं. "इन बारह आत्मसमर्पण करने वाली नक्सलियों को वर्धा में प्रशिक्षित किया गया था. हम कुछ समय के लिए उनके लिए हैंड होल्डिंग करेंगे. हम उसकी ब्रांडिंग और मार्केटिंग में भी मदद करेंगे. किसी उत्पाद को बढ़ावा देने के संदर्भ में नहीं बल्कि इन आत्मसमर्पण करने वाली महिलाओं के पुनर्वास के संदर्भ में."

सरकार ने दिया महिलाओं को प्रशिक्षण
एसपी गढ़चिरौली कहते हैं कि प्रशिक्षण कार्यक्रम के बाद ये महिलाएं अब आत्मविश्वास से भरी दिख रही हैं और काम में भी बेहतर हो रही हैं. "हम भी उनकी उतनी ही मदद करने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने पहले ही एक स्वयं सहायता समूह बना लिया है." जब उनसे उनके समग्र अनुभव के बारे में पूछा गया तो महाराष्ट्र कैडर के आईपीएस अधिकारी ने इसे समृद्ध करने वाला बताया. उन्होंने कहा कि, "मैंने एसपी वर्धा होने के नाते अतीत में ऐसा किया है और ऐसे में मुझे लगा कि क्यों न इन महिलाओं के साथ भी प्रशिक्षण कार्यक्रम किया जाए. इन सब के दौरान महिलाएं काफी खुश रहती हैं. जब ये महिलाएं वर्धा पहुंची तो इन्हें ये देखकर काफी खुशी हुई, कि यहां पर इन्हें कुछ नया सीखने को मिलेगा.