गयाजी जिले के गुरारु प्रखंड के कोंचा गांव में रहने वाले 74 साल के मोहन लाल ने अपने जीवन में एक ऐसा कारनामा कर दिखाया, जिसे देखकर लोग हैरान हो गए. जी हां, मोहन लाल ने जिंदा रहते अपनी खुद की अंतिम यात्रा निकलवाई, बस यह जानने के लिए कि मरने के बाद कौन उनकी अंतिम यात्रा में शामिल होता है.
जिंदा रहते हुई निकलवाई अंतिम यात्रा
मोहन लाल ने परिवार और साथियों की मदद से सभी तैयारी एकदम अंतिम संस्कार जैसी करवा डाली. फूल-मालाओं से सजी अर्थी तैयार हुई, बैंड-बाजा बजा और "राम नाम सत्य है" के जमकारों के बीच मोहन लाल की अंतिम यात्रा निकली. खास बात यह रही कि पीछे धुन पर बज रही थी "चल उड़ जा रे पंछी, अब देश हुआ बेगाना". यानी मोहन लाल ने खुद के ‘देश से विदाई’ का संगीत भी पहले ही सेट करवा लिया था.
गांव वालों ने भी पूरी धूमधाम दिखाई
अर्थी के साथ सैकड़ों लोग निकले. ग्रामीणों ने भी इस अनोखी पहल का पूरी शिद्दत से समर्थन किया. श्मशानघाट पहुंचने पर मोहन लाल का प्रतीकात्मक पुतला जलाया गया. इसके बाद आयोजित किया गया सामूहिक प्रीतिभोज. मोहन लाल खुद जिंदा रहते सबकुछ देख रहे थे और हर पल का आनंद ले रहे थे.
मोहन लाल बोले- मैं अपनी अर्थी देखना चाहता था
मोहन लाल ने कहा, लोग मरने के बाद अर्थी उठाते हैं, लेकिन मैं यह दृश्य खुद देखना चाहता था. मैं देखना चाहता था कि मेरे मरने के बाद लोग मुझे कितना सम्मान और प्यार देते हैं. उन्होंने आगे कहा कि वायु सेना में अपनी सेवा पूरी करने के बाद उनकी इच्छा थी कि गांव और समाज की सेवा करूं. बरसात के दिनों में शव यात्रा की कठिनाई देख, उन्होंने मुक्तिधाम बनाने का फैसला लिया.
उन्होंने कहा, अंतिम यात्रा में शामिल लोगों को देखकर मैं बहुत खुश हूं. यह मेरे लिए सबसे बड़ा सुखद अनुभव था.
परिवार और समाज ने दिया पूरा साथ
मोहन लाल के दो बेटे हैं एक डॉक्टर, दूसरा स्कूल में शिक्षक. उनकी एक बेटी धनबाद में रहती है. उनकी पत्नी नहीं हैं. परिवार ने मोहन लाल की इस अनूठी पहल में पूरा सहयोग किया.