गुजरात के वडोदरा से एक प्रेरणादायक खबर सामने आई है. यहां की 21 वर्षीय फैशन डिजाइनिंग की छात्रा खुशी पठान ने अपने शोध प्रोजेक्ट के तहत एक ऐसी आर्मी यूनिफॉर्म तैयार की है, जो सौर ऊर्जा (Solar Energy) से चलती है. इस खास यूनिफॉर्म का उद्देश्य सीमा पर तैनात भारतीय सैनिकों को संचार (Communication) के लिए ऊर्जा का एक स्थायी और भरोसेमंद स्रोत उपलब्ध कराना है, खासकर तब जब वे दुर्गम और चुनौतीपूर्ण इलाकों में गश्त कर रहे हों.
सैनिकों की समस्या से मिली प्रेरणा
खुशी पठान ने इस यूनिफॉर्म को डिजाइन करने से पहले भारतीय सैनिकों से मुलाकात की और उनकी वास्तविक समस्याओं को समझा. उन्हें पता चला कि सीमावर्ती और दूर-दराज इलाकों में सैनिकों को सबसे बड़ी दिक्कत बैटरी खत्म होने की होती है. कई बार इस वजह से जवान अपने कमांडिंग ऑफिसर और यूनिट से लगातार संपर्क में नहीं रह पाते. इसी चुनौती को ध्यान में रखते हुए खुशी ने फरवरी 2025 में इस प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया और लगभग छह महीने की मेहनत के बाद इस यूनिफॉर्म का डिजाइन तैयार किया.
खासियतें और डिजाइन
यह सोलर पावर्ड आर्मी यूनिफॉर्म एक यूनिसेक्स डिजाइन है, जिसे महिला और पुरुष दोनों सैनिक इस्तेमाल कर सकते हैं. यूनिफॉर्म में सौर ऊर्जा से चार्ज होने वाली एक प्रणाली लगाई गई है, जो संचार उपकरणों और अन्य छोटे गैजेट्स को चार्ज रखने में मदद करेगी. इसमें तारों और कनेक्टर्स के लिए विशेष स्थान भी बनाया गया है, ताकि सैनिकों को आसानी हो और यह सुविधाजनक लगे. यूनिफॉर्म का इस्तेमाल करने से पहले इसका तीन बार परीक्षण किया गया है और हर बार सकारात्मक नतीजे सामने आए हैं.
तकनीकी चुनौतियां भी आई सामने
हालांकि खुशी को इस यूनिफॉर्म को तैयार करने में कई तकनीकी मुश्किलों का सामना करना पड़ा. फैशन डिजाइनिंग की छात्रा होने के कारण उनके पास टेक्निकल नॉलेज सीमित थी. लेकिन अपनी मेहनत, शोध और शिक्षकों की मदद से उन्होंने इस समस्या का हल निकाल लिया. खुशी का मानना है कि अगर इस यूनिफॉर्म को सरकारी मंजूरी मिलती है तो यह सैनिकों के लिए बेहद उपयोगी साबित होगी.
शिक्षकों का समर्थन
फैशन डिजाइनिंग डिपार्टमेंट की हेड ममता हिंगले ने खुशी के इस प्रोजेक्ट की सराहना की. उन्होंने कहा कि यह प्रयोगिक प्रोजेक्ट न केवल एक छात्रा की मेहनत का नतीजा है बल्कि यह भविष्य में देश की सुरक्षा प्रणाली के लिए एक नई दिशा भी साबित हो सकता है. उनका मानना है कि सरकार अगर इसे बड़े स्तर पर मंजूरी देती है तो सैनिकों को इससे काफी मदद मिलेगी.
(दिग्विजय पाठक की रिपोर्ट)