13 साल की उम्र में सड़क पर किताब बेचते थे तरुण...आज खुदका NGO खोलकर कर रहे हजारों लोगों की मदद

सूरत का एक शख़्स ऐसा है जो जब किसी राह से या सड़क से होकर गुजरता है और किसी को ऐसा देखता है तो वो उनके पास जाता है उनसे बात करता है और उनके बारे में जानने की कोशिश करता है फिर उसके बाद वो उन्हें सेल्टर होम ले जाता है.

Tarun Mishra, Help Drive Foundation
सुरभि शुक्ला
  • नई दिल्ली,
  • 17 जून 2022,
  • अपडेटेड 2:15 PM IST
  • रोजगार का भी करते हैं इंतजाम
  • बीच में छोड़नी पड़ी पढ़ाई

वो कहते हैं ना - 'अपने लिए तो सब जीते हैं कभी औरों के लिए भी जीकर देखो'. ऐसी ही कुछ सोच रखते हैं समाज सेवा कर दूसरों की जिंदगी में उजाला लाने वाले तरुण मिश्रा. तरुण के लिए मानवता ही उनका हथियार है जिसके दम पर वो देश औस समाज की सेवा करते चले आ रहे हैं. लॉकडाउन के समय मजदूरों के मसीहा बने सोनू सूद से तो आप सब वाकिफ हैं लेकिन गुजरात के सूरत में एक ऐसा शख्स है जो उनकी तरह इतना दौलतमंद तो नहीं है लेकिन सेवा भाव किसी हीरो से कम नहीं है. लोग उन्हें गुजरात का सोनू सूद कहते हैं. बहुत छोटी सी उम्र में परिवार की आर्थिक हालत देखकर खुद अपने पैरों पर खड़ें होने का जिम्मा उठाने वाले तरुण अपने स्तर पर लोगों की छोटी-मोटी मदद करके गरीब बेसहारों का सहारा बनते हैं.

बीच में छोड़नी पड़ी पढ़ाई
तरुण उस समय बहुत छोटे थे जब उन्होंने इस दिशा में कुछ करने की सोची. घर की माली हालत ठीक नहीं थी ऐसे में परिवार की जिम्मेदारी उठाने का बीड़ा उठाया. 13 साल की उम्र में सड़क पर धार्मिक किताब बेचने का काम शुरू किया, काम चल गया और उन्हें अच्छी आमदनी हुई. इसके साथ ही दिल्ली के सरोजनी नगर पालिका स्कूल में खुद की पढ़ाई भी चालू रखी. किसी तरह से 5वीं तक की पढ़ाई की लेकिन फिर बीच में ही पढ़ाई छोड़नी पड़ी. इधर खुद के काम में पैसा आना शुरू हुआ तो अपना काम पिता को थमाकर बिहार चले आए. यहां से 12वीं की पढ़ाई करके दिल्ली की गुरु गोविंद इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी में बीटेक के लिए एडमिशन लिया. शेल्टर होम में रहकर पढ़ाई की लेकिन आर्थिक हालत अच्छी ना होने की वजह से तीसरे साल में ही उन्हें ड्रॉप आउट करना पड़ा. इसके बाद तरुण बिहार आ गए और वहीं से धीरे-धीरे समाज सेवा का उनका आगे का सफर शुरू हुआ.

रोजगार का भी करते हैं इंतजाम
इसी क्रम में तरुण ने एक 80 साल के बुजुर्ग की सेवा की जो सूरत की सड़कों पर छोटी सी दुकान लगाकर समान बेचते थे. तरुण की संस्था ने उन्हें एक दुकान और उसमें रखने के लिए समान उपलब्ध करवाया. इसके अलावा वो समय-समय पर जाकर उनका हालचाल भी लेते रहते हैं. उनकी संस्था 'हेल्प ड्राइव फाउंडेशन' (Help Drive Foundation) ऐसे ही गरीब बेसहारा लोगों की मदद करती है जो सड़कों पर इधर-उधर पड़े रहते हैं और उन्हें देखने वाला कोई नहीं है. तरुण मिश्रा और उनकी टीम राह भटकते बे सहारा लोगों की खोज में रहती है और इन्हें जहां कोई मिलता है उन्हें वो सेल्टर होम ले जाते हैं. उनका मानना है कि हम मदद के तौर पर  Permanent solution देते हैं. ये नहीं कि आपने थोड़े से पैसे या चीज देकर व्यक्ति की मदद कर दी और बाद में वो क्या  कर रहा है ये नहीं पता. इसलिए वो बाद में भी उनके बारे में जानकारी लेते रहते हैं. तरुण ने कुछ दिव्यांग लोगों की ना सिर्फ मदद की बल्कि उनके लिए रोजगार का माध्यम भी तैयार किया. 

हर कोई दे अपना योगदान
तरुण कहते हैं कि समाज सेवा कोई भी कर सकता है और जरूरी नहीं कि वो बड़े स्तर पर ही हो, बस सेवा होनी चाहिए. तरुण मानते हैं, "आपका थोड़ा सा समय किसी की पूरी ज़िंदगी बदल सकता है." उन्होंने आगे कहा, मैं चाहता हूं कि समाज सेवा के कार्य में हर कोई शामिल हो और अपने-अपने हिस्से का काम करें. केवल एक के करने से कुछ नहीं होता. अगर हर कोई मिलकर इसमें कुछ न कुछ योगदान देगा तो हम आगे नया बदलाव ला सकते हैं. तरुण को क्राउड फंडिंग के जरिए जो पैसे मिलता है उसे वो इन लोगों की मदद में ही निकाल देते है.

 

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