Hamirpur: 7 किमी की दूरी, 3 घंटे का वक्त! बदहाल सड़क के चलते गर्भवती महिला को बैलगाड़ी में पहुंचाया गया अस्पताल

यूपी के हमीरपुर में बदहाल सड़क की वजह से एक गर्भवती महिला को बैलगाड़ी में अस्पताल पहुंचाया गया. 7 किलोमीटर की दूरी तय करने में 3 घंटे का वक्त लग गया. इस दौरान गर्भवती महिला दर्द से कराहती रही. गांववालों ने प्रशासन से सड़क बनाने की गुहार लगाई है.

Pregnant woman taken to hospital in bullock cart
gnttv.com
  • हमीरपुर,
  • 27 अक्टूबर 2025,
  • अपडेटेड 2:41 PM IST

उत्तर प्रदेश में हमीरपुर जिले के विकासखंड मौदहा के परसदवा डेरा गऊघाट छानी गांव में शनिवार को घटी एक घटना ने प्रशासनिक दावों की हकीकत उजागर कर दी. प्रसव पीड़ा से कराह रही 23 साल की रेशमा को उसके ससुर कृष्ण कुमार केवट ने कीचड़ और दलदल से भरे पथरीले रास्ते पर बैलगाड़ी में लादकर अस्पताल पहुंचाया.

7 किमी दूर है अस्पताल-
यह पीड़ादायक सफर न केवल उनकी मजबूरी थी, बल्कि सालों की सरकारी उपेक्षा का प्रमाण भी बना. गांव से सिसोलर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की दूरी महज सात किलोमीटर है, लेकिन बरसात में यह दूरी जानलेवा संघर्ष में बदल जाती है. रास्ते कीचड़ से पट जाते हैं और वाहन तो दूर, एम्बुलेंस तक पहुंचना नामुमकिन हो जाता है. 

गर्भवती महिला का बैलगाड़ी से 3 घंटे का सफर-
रेशमा के घर से अस्पताल तक तीन घंटे का सफर बैलगाड़ी पर तय हुआ. हर झटके पर उसकी चीखें जंगल की खामोशी तोड़ती रहीं, जबकि ससुर के हाथों में सिर्फ उम्मीद थी कि किसी तरह बहू को समय से इलाज मिल जाए. अस्पताल पहुंचने पर डॉक्टरों ने जांच में बताया कि प्रसव की तिथि दो दिन बाद की है. प्राथमिक उपचार के बाद उसे घर भेज दिया गया.

बुजुर्ग ने सुनाया गांव का दर्द-
कृष्ण कुमार ने कहा कि अगर एम्बुलेंस यहां तक पहुंच जाती, तो बहू को इस हालत में नहीं लाना पड़ता. यह रास्ता हर साल जान लेने पर आमादा रहता है. इस घटना ने पूरे इलाके को झकझोर दिया है. गांव के पास बसे करीब 500 से अधिक ग्रामीण हर बरसात में इस दलदली पगडंडी के सहारे सफर तय करने को मजबूर हैं. जंगली जानवरों का खतरा बढ़ जाता है और किसी आपातकाल में मरीज को उठाकर ही अस्पताल ले जाना पड़ता है. 

गांववालों ने प्रशासन से लगाई गुहार-
ग्राम पंचायत के युवा समाजसेवी अरुण निषाद बताते हैं कि उन्होंने 12 मार्च 2024 को इसी सड़क की मांग को लेकर छह दिन का अनिश्चितकालीन धरना दिया था. उस समय उपजिलाधिकारी रमेशचंद्र ने सड़क निर्माण का आश्वासन देते हुए कहा था कि लोकसभा चुनाव के बाद काम शुरू होगा. लेकिन चुनाव बीते डेढ़ साल हो गए, सड़क अब तक कागजों से बाहर नहीं निकली. हमने चिट्ठियां लिखीं, जिला मुख्यालय जाकर अफसरों से मिले, लेकिन किसी ने हाल नहीं पूछा. उन्होंने बताया कि जब तक पक्की सड़क नहीं बनेगी, पता नहीं कितनी रेशमाओं को इसी दलदल में से गुजरना पड़ेगा. गांववालों ने अब जिला कलेक्टर, स्थानीय विधायक और मुख्यमंत्री कार्यालय से तुरंत हस्तक्षेप की मांग की है. उनका कहना है कि पक्की सड़क सिर्फ सुविधा नहीं, बल्कि जीवन की डोर है, जो हर बरसात में कमजोर पड़ती जा रही है.

(नाहिद अंसारी की रिपोर्ट)

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