हड़प्पा से भी 5 हजार साल पहले कच्छ में मिले इंसानी गतिविधियों के सबूत, IITGN की रिसर्च में हुआ बड़ा खुलासा

हड़प्पा सभ्यता से 5 हजार साल पहले ही गुजरात के कच्छ में मानव उपस्थिति के मिले पुरातात्विक साक्ष्य, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान गांधीनगर (आईआईटीजीएन) के एक अध्ययन पता चला कि कच्छ का एक बड़ा इलाका प्रागैतिहासिक शिकारी-संग्राहक समुदायों का घर था.

Human Habitation in Kutch
gnttv.com
  • कच्छ,
  • 06 जून 2025,
  • अपडेटेड 6:51 PM IST

हड़प्पा सभ्यता से 5 हजार साल पहले ही गुजरात के कच्छ में मानव उपस्थिति के मिले पुरातात्विक साक्ष्य, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान गांधीनगर (आईआईटीजीएन) के एक अध्ययन पता चला कि कच्छ का एक बड़ा इलाका प्रागैतिहासिक शिकारी-संग्राहक समुदायों का घर था. वैसे तो गुजरात में हड़प्पा सभ्यता के कई साक्ष्य सामने आ चुके हैं और अब ये बड़े पर्यटक स्थल भी बन चुके हैं. आईआईटी गांधीनगर के संशोधनकर्ताओं के ताजा अभ्यास में यह बात सामने आई है कि गुजरात के कच्छ का एक बड़े इलाका हड़प्पा सभ्यता के उदय से बहुत पहले से प्रागैतिहासिक शिकारी-संग्राहक समुदायों का घर था.

आईआईटी कानपुर (आईआईटीके), इंटर यूनिवर्सिटी एक्सेलेरेटर सेंटर (आईयूएसी) दिल्ली और फिजिकल रिसर्च लेबोरेटरी (पीआरएल) अहमदाबाद के विशेषज्ञों के सहयोग से भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान गांधीनगर (आईआईटीजीएन) के शोधकर्ताओं द्वारा हाल ही में किए गए एक अध्ययन में ऐसे पुख्ता पुरातात्विक साक्ष्य सामने आए हैं, जो इस क्षेत्र में मानव उपस्थिति को हड़प्पावासियों के आगमन से कम से कम पांच हजार साल पहले का बताते हैं.

आईआईटीजीएन में पृथ्वी विज्ञान विभाग के पुरातत्व विज्ञान केंद्र में एसोसिएट प्रोफेसर और अध्ययन के प्रमुख अन्वेषक प्रोफेसर वीएन प्रभाकर ने बताया कि हमारा अध्ययन इन स्थलों की पहचान करने, उनके सांस्कृतिक महत्व की पुष्टि करने और कालानुक्रमिक संदर्भ स्थापित करने वाला पहला अध्ययन है. ये प्रारंभिक समुदाय मैंग्रोव-प्रधान भूभाग में रहते थे और अपने भोजन के लिए शैल प्रजातियों पर निर्भर थे, जो स्वाभाविक रूप से ऐसे वातावरण के लिए अनुकूलित थे. हालांकि ब्रिटिश सर्वेक्षणकर्ताओं ने पहले भी इस क्षेत्र में सीपों के संचय को देखा था, लेकिन इन्हें सीप-मिट्टी वाले स्थल, यानी मानव उपभोग से छोड़े गए सीपों के ढेर के रूप में नहीं पहचाना गया था.

प्रोफेसर प्रभाकर ने बताया, "खादिर और आसपास के द्वीपों से एकत्र किए गए शैल नमूनों का विश्लेषण पीआरएल अहमदाबाद में प्रोफेसर रवि भूषण और जे एस रे के सहयोग से और आईयूएसी-दिल्ली के डॉ. पंकज कुमार की मदद से किया गया. परिणामों से यह पुष्टि हुई कि ये स्थल हड़प्पा युग से भी काफी पहले के हैं, जिससे इस क्षेत्र में बहुत पहले से मानव बस्ती होने के दुर्लभ साक्ष्य मिलते हैं.''

इन स्थलों की आयु निर्धारित करने के लिए, शोधकर्ताओं ने एक्सेलेरेटर मास स्पेक्ट्रोमेट्री (AMS) का उपयोग किया, जो शेल अवशेषों से कार्बन-14 (C-14) के रेडियोधर्मी समस्थानिक मूल्यों को मापने के लिए एक सटीक विधि है. जिसे सभी जीवित जीवों द्वारा अवशोषित किया जाता है. मृत्यु के बाद C-14 का क्षय होना शुरू हो जाता है और हर 5,730 वर्षों में यह आधे से कम हो जाता है. शेल नमूनों में शेष मात्रा को मापने से वैज्ञानिकों को यह अनुमान लगाने में मदद मिलती है कि जीव कितने समय पहले मरा था चूंकि वायुमंडलीय C-14 का स्तर समय के साथ बदलता रहा है, इसलिए परिणामों को ट्री-रिंग डेटा का उपयोग करके कैलिब्रेट किया गया. वृक्ष प्रति वर्ष एक वलय बनाते हैं और इन वृक्ष-वलय अनुक्रमों का मिलान किया जा सकता है तथा उन्हें हजारों वर्षों तक पीछे तक बढ़ाया जा सकता है जिससे वैज्ञानिकों को वायुमंडलीय C-14 की सटीक संदर्भ समयरेखा बनाने में सहायता मिलती है.

ये नई पहचान की गई साइटें कच्छ क्षेत्र में अपनी तरह की पहली ऐसी साइट हैं, जिनका एक परिभाषित सांस्कृतिक और कालानुक्रमिक संदर्भ है. शोधकर्ताओं के अनुसार ये निष्कर्ष पाकिस्तान और ओमान प्रायद्वीप के लास बेला और मकरान क्षेत्रों के तटीय पुरातात्विक स्थलों के साथ समानताएं भी दर्शाते हैं, जिससे पता चलता है कि इस व्यापक क्षेत्र में प्रारंभिक तटीय समुदायों ने भोजन संग्रह और जीवनयापन के लिए तुलनीय रणनीति विकसित की होगी.

इस अध्ययन के निष्कर्षों को इसी साल हुए दक्षिण एशियाई पुरातत्व पर 17वीं वार्षिक कार्यशाला (हार्टविक कॉलेज और शिकागो विश्वविद्यालय), भारत-ईरानी सीमावर्ती क्षेत्रों के पुरातत्व पर सेमिनार श्रृंखला (सोरबोन विश्वविद्यालय, पेरिस) और भारतीय प्रागैतिहासिक और चतुर्थक अध्ययन सोसायटी (आईएसपीक्यूएस), रायपुर के 50वें वार्षिक सम्मेलन में प्रस्तुत किया गया. अनुसंधान दल में आईआईटी गांधीनगर के पृथ्वी विज्ञान विभाग के प्रोफेसर विक्रांत जैन, आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर जावेद मलिक और देबज्योति पॉल, आईयूएसी, दिल्ली के पंकज कुमार और एलडी कॉलेज, अहमदाबाद के महेंद्रसिंह गढ़वी शामिल हैं.

-ब्रिजेश दोशी

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