घड़ी वाली लड़की के लिए मशहूर है झारखंड का यह गाँव, जानिए संथाल समुदाय की शीला के हुनर की कहानी

जमशेदपुर से 60 किलोमीटर दूर धीरोल पंचायत में नावाडीह की रहने वाली शीला मुर्मू ने अपने हुनर से अपने समुदाय के साथ साथ अपने गाँव का नाम भी रोशन किया है. इस गाँव के बारे में अबतक लोग जानते तक नहीं थे, आज इस गाँव की एक आदिवासी लड़की ने धूम मचा रखी है

WOODEN CLOCK
gnttv.com
  • जमशेदपुर,
  • 14 दिसंबर 2022,
  • अपडेटेड 6:30 PM IST

झारखंड में एक ऐसा गाँव जिसे कोई जानता नहीं था,आज घड़ी वाली लड़की के कारण मशहूर हो गया है. इलाके में लोग इसे घड़ी वाला गाँव के नाम से जानते हैं. संथाल परिवार में जन्मी यह लड़की एक किसान परिवार से आती है जिसने अपनी स्कूलिंग कस्तूरबा स्कूल से किया था.

कक्षा 7 से ही इस लड़की को क्राफ्ट में काफ़ी दिलचस्पी थी और वो इस मुकाम को पाने के लिए दिन रात मेहनत करती रही. अब वो अपनी पढ़ाई जारी रखते हुए कॉलेज जा पहुंची है लेकिन घड़ी बनाने की लगन ऐसी कि गाँव के बच्चों के साथ यह दूसरे लोगों को भी लकड़ी की घड़ी (WOODEN WALL CLOCK) बनाना सिखा रही है.

झारखंड में स्टील नगरी के नाम से मशहूर जमशेदपुर से करीब 60 किलोमीटर दूर है धीरोल पंचायत. यहां एक गाँव है नावाडीह. इस गाँव में संथाल परिवार के करीब 70 लोग रहते हैं. इस गाँव के लोग आपस में संथाली में ही बातचीत करते हैं. इसी गाँव में है मुर्मू परिवार जिसमें शीला मुर्मू. शीला ने गाँव के ही स्कूल में पढ़कर क्राफ्ट का काम सीखा. काम सीखने के बाद अच्छी गुणवत्ता के लिए असम गई. वहां से आने के बाद गाँव में ही बच्चों और महिलाओं को क्राफ्ट का काम सिखाने लगी. आज शीला काफ़ी खूबसूरत घड़ियाँ बना रही है और इन घड़ियों की शहरों में खूब मांग है.

इस तरह घड़ी बनाती है शीला
शीला मुर्मू पहले लकड़ी को सूखाकर उसपर पेपर चिपकाती है. ये पेपर देसी जुगाड़ से घड़ी की आकृति को काट कर निकालती है. फिर उसे रंगने के बाद बज़ार से घड़ी का कांटा और बैटरी लाती है. फिर कटे हुए ढांचे में लगाती है. इस प्रकार वो लकड़ी के आकृति की घड़ी तैयार करती है और बाजार में 500 रुपये में एक घड़ी बेच देती है. शीला कहती है कि अभी तक उसके बैंक अकाउंट में 30 से 40 हजार रुपये तक जमा हो चुके हैं.

शीला कहती है , मैं अभी कॉलेज में पढ़ रही हूं. मैं जब सातवीं क्लास में थी तब से क्राफ्ट को सिखना शुरू किया. स्कूल में बाहर से लोग आकर सीखते थे. मैंने इसे सीखने के लिए काफी मेहनत की. असम जाकर पूरा काम सीखा और अब घर आकर गाँव के छोटे-छोटे बच्चों और महिलाओं के साथ मिलकर लकड़ी की  घड़ियाँ बना रहे हैं.

शीला आगे बताती है कि वो एक दिन में 5 से 7 घड़ियाँ बना लेती है. बाजार में एक घड़ी की कीमत 500 रुपए होती है. अभी तक शीला के बैंक अकाउंट में 30 से 40 हजार रुपए जमा हो गए हैं. शीला घड़ी के साथ साथ अशोक स्तम्भ और कई महापुरुषों की आकृति भी बना चुकी है.

शीला की छोटी बहन रिया भी उससे यह हुनर सीख रही है. इनके पिता कालीराम मुर्मू कहते हैं कि उनकी बेटी शीला गाँववालों के साथ मिलकर हर महीने 30 हजार रुपये से अधिक का कारोबार कर रही है. उम्मीद है कि आने वाले दिनों मे यह रकम और बढ़ जाएगी.

(जमशेदपुर से अनूप सिन्हा की रिपोर्ट)
 

 

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