बनारस और लखनऊ के पुराने रास्ते पर गोमती नदी के किनारे एक अंजान सा शहर बसा हुआ है. यहां सुबह आज भी काफी पहले होती है, लेकिन छोटे शहर अलसाई सी सुबह और गोमती नदी के किनारे कचहरी के आगे गोमती नदी के पुल पर कई लोग टहलते हुए आज भी मिल जाएंगे. बनारस करीब 60 किलोमीटर और और लखनऊ से 250 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ये शहर बोली में लखनऊ की अवध और बनारसी अंदाज बेजोड़ मेल है.
फेमस है बेनीराम की इमरती
जौनपुर अपने अलग अंदाज और जायकों के लिए जाना जाता है. बस स्टैंड के छोले समोसे, पॉलिटेक्नीक की चाय और गोमती किनारे उगने वाली लंबी लंबी लेकिन मीठी मूली ने पूरे पूर्वांचल को अपना दीवाना बना रखा है. अगर कोई जौनपुरी अपने रिश्तेदार के यहां जाता है तो यहां दो चीजें उसके उपहार के झोले में जरूर रहती हैं. एक यहां की मूली दूसरी बेनीराम की इमरती.
कई दिनों तक बगैर फ्रिज के स्टोर कर सकते हैं
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से लगभग 250 किलोमीटर दूर एक जिला है जौनपुर. कई लोग तो यहां पर सिर्फ इमरती खाने के लिए आते हैं. जी हां, इस छोटे से शहर की इमरती काफी मशहूर है. वैसे तो गोमती नदी के किनारे बसा जौनपुर अपने इत्र और चमेली के तेल के लिए काफी मशहूर है. लेकिन यहां की इस मिठाई की पहचान विदेशों में भी है. देशी घी से बनने वाली यह इमरती पूरी तरह से सॉफ्ट होती है. नरम इतनी होती है कि बिना दांत के भी इसका जायका ले सकते हैं. उड़द की दाल के साथ इसमेंदेशी चीनी का ही इस्तेमाल होता है. खास बात है कि इमरती को कई दिनों तक बगैर फ्रिज के स्टोर करके रखा जा सकता है. इमरती बनाने के लिए दाल की पिसाई से लेकर पूरा काम हाथ से ही होता है.
लजीज इमरती का इतिहास अंग्रेज़ों से जुड़ा
कहा जाता है कि गुलाम भारत से लेकर आज़ाद भारत में बेनीप्रसाद की मिठाइयां सबसे बेहतरीन मानी जाती है. यह दुकान पीढ़ियों से चली आ रही है. इसकी प्रसिद्धि का आलम कुछ ऐसा है कि बेनीराम देवी प्रसाद की चौथी पीढ़ी के वंशजों ने पूरी तरह से संभाल लिया है.यहां की लजीज इमरती का इतिहास अंग्रेज़ों से जुड़ा हुआ है. ऐसा कहा जाता है कि ब्रिटिश राज में बेनीराम देवी प्रसाद नाम के एक डाकिया हुआ करते थे. एक दिन उनके अंग्रेज अफसर ने उनसे खाना बनाने को कहा. बेनीराम ने खाने के साथ मिठाई में इमरती बनाई और उनके सामने पेश की. अंग्रेज अफसर ने जब उसका स्वाद चखा तो वो उसके कायल हो गए. इस मिठाई का स्वाद चखने के बाद तब उसने बेनीराम को नौकरी छोड़ने को कहा. ऐसे में, बेनीराम उनसे माफी मांगने लगे और तब अधिकारी ने उनसे कहा कि उनके पास इमरती बनाने के बेहतरीन कला है और उन्हें इसका बिज़नेस शुरू करना चाहिए. तुम्हारे हाथ में जादू है. ऐसी मिठाई मैंने आज से पहले कभी नहीं खाई. अफसर के ज़्यादा जोर देनेपर वो मान गए और डाक विभाग से एक साल की छुट्टी लेकर 1855 में इमरती बनाने का काम शुरू किया. उनकी दुकान चल पड़ी और आज भी लोग दूर-दूर से लोग बेनीराम की इमरती खाने आते हैं. बस फिर क्या था यह दुकान आज तक खुली है और अपना जलवा बिखेर रही है.
चौथी पीढ़ी संभाल रही बिजनेस
ये दुकान जौनपुर के ओलन्दगंज के नक्खास मुहल्ले में मौजूद है. इसकी पुरानी दुकान शाही पुल के पास थी, जिसे मुगलों के राज में बनाया गया था. बेनीराम के बाद की पीढ़ियों ने इस काम को आगे बढ़ाया और आज उनकी चौथी पीढ़ी इमरतियां बनाने का काम जारी रखे हुए हैं. बेनी राम देवी प्रसाद के बाद उनके लड़केबैजनाथ प्रसाद, सीताराम व पुरषोत्तम दास ने अपना कारोबार बढ़ाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. इन लोगों ने भी जौनपुर की प्रसिद्ध इमरती की महक बनाए रखी. इसके बाद विष्णु चन्द, प्रेमचन्द एवं जवाहरलाल ने इमरती को देश के बाहर भेजने का काम शुरू किया.
अब जौनपुर की प्रसिद्ध इमरती को बेनीराम देवी प्रसाद की चौथी पीढ़ी के वंशजोंरवीन्द्रनाथ, गोविन्, धर्मवीर एवं विशाल ने पूरी तरह से संभाल लिया है. अब तो इनकी इमरतियां विदेश में भी भेजी जाती हैं. इमरतियों को हरी उड़द की दाल से बनाया जाता है. इसके लिए चीनी ख़ासतौर पर बलिया से मगाई जाती है. इन्हें ख़ालिस देशी घी में तला जाता है. इनकी एक और खासियत ये है कि ये 10-12 दिनों तक बिना फ़्रिज में रखे भी ठीक रहती हैं. बेनीराम जवाहरलाल, बेनीराम देवीप्रसाद, बेनीराम प्यारेलाल इन तीन नामों से आपको शहर में दुकाने मिल जाएंगी. ये सभी बेनीराम की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं.
जलेबी से कैसे अलग है इमरती
इमरती भारत में खोजी गई मिठाई है. यह अरब से आई जलेबी का देशी वर्जन कही जा सकती है. इसमें खास बात यह है कि जलेबी की तरह, यह भी डिजाइनदार बनाई जाती है, लेकिन इसके रंग में अंतर होता है. यह हल्के ब्राउन रंग की नजर आती है. हालांकि, इमरती अगर आप जौनपुर के बाहर खा रहे हैं, तो वह लाल रंग की नजर आती है. इसके पीछे की वजह है इसमें ऊपर से मिलाए जाने वाला रंग. बेनीराम-देवी प्रसाद के प्रतिष्ठान की इमरती की खास बात है कि इसमें ऊपर से कोई रंग नहीं मिलाया जाता है.
मिल चुका है जीआई टैग
जौनपुर की मशहूर इमरती को जीआई टैग मिल चुका है. यह टैग चेन्नई के जीआई रजिस्ट्रार कार्यालय ने दिया है. इस इमरती की खासियत है कि उड़द की दाल ,देशी चीनी और शुद्ध देशी से लकड़ी की आंच पर बनायी जाती है. इस आधुनिक युग में भी आज उड़द की दालको सिल बट्टे पर पीसकर इस्तेमाल किया जा रहा है, जिसके कारण आज भी इसदुकान की बनी इमरती की लज्जत बरकरार है. यह इतनी मुलायम होती है कि यह मुंह में डालते ही घुल जाती है. जहां देश के अलग-अलग हिस्सों में मिलने वाली इमरती ताजी और गर्म ही खाई जाती है, वहीं जौनपुर की इस इमरती को गर्म तो खाया ही जा सकता है साथ ही इसको ठंडा करके खाने पर भी जबरदस्त स्वाद मिलता है.
क्या कभी मिठाई की दुकान पर इनकम टैक्स की रेड के बारे में सुना है. अकसरबड़े लोगों, बिजनेसमैन के घर पर रेड की खबर छपती है. लेकिन कुछ साल पहले बेनीराम की इमरती की दुकान राज्य इनकम टैक्स विभाग की स्टेट इन्वेस्टिगेशन टीम ने इमरती की दुकान में छापेमारी की. जहां 3 घंटों की छापेमारी के दौरान टीम ने लेन-देन और हिसाब करने वाली किताब कब्जे में ले लिया था. तो समझिए जिस दुकान पर इनकम टैक्स की रेड तक पड़ चुकी हो, जिसके व्यंजन को जीआई टैग मिल चुका हो, जिसके दीवाने दो दो प्रधानमंत्री और ना जाने कितने लोग हैं, अगर आप इससे अंजान है तो जाइए और लज्जत उठाइए.