धूप में तपते जंगल को पानी पिलाने निकला मुंबई का ये पर्यावरण प्रेमी

40 साल के शंकर सुतार ने अपने जीवन को जंगल, पेड़-पौधों और जीव-जंतुओं की सेवा के लिए समर्पित कर दिया है, खासतौर से गर्मियों के उन कठिन दिनों में, जब जानवर और पेड़-पौधे दोनों ही जीवन के लिए तरसते हैं.

Shankar Sutar
gnttv.com
  • मुंबई ,
  • 01 मई 2025,
  • अपडेटेड 12:00 PM IST
  • जंगलों में लगाते हैं पानी के पॉट
  • कंधों पर पानी के डिब्बे लादकर जंगलों में जाते हैं

मुंबई जैसे भीड़भाड़ वाले शहर में जहां जिंदगी में ठहराव नहीं है, वहीं एक शख्स ऐसा भी है जो हर दिन प्रकृति की सेवा में लगा हुआ है. हम बात कर रहे हैं शंकर सुतार की. शंकर सुतार को लोग लोग सम्मानपूर्वक “आरे कॉलोनी का निसर्ग राजा” कहकर पुकारते हैं. 40 साल के शंकर सुतार ने अपने जीवन को जंगल, पेड़-पौधों और जीव-जंतुओं की सेवा के लिए समर्पित कर दिया है, खासतौर से गर्मियों के उन कठिन दिनों में, जब जानवर और पेड़-पौधे दोनों ही जीवन के लिए तरसते हैं.

कंधों पर पानी के डिब्बे लादकर जंगलों में जाते हैं
मुंबई की आरे कॉलोनी, जो कि शहर की हरियाली का प्रमुख केंद्र है, वहीं शंकर सुतार हर सुबह अपने मिशन पर निकलते हैं. भरी गर्मी में, जब तापमान 40 डिग्री तक पहुंच जाता है और नमी की कमी से पेड़-पौधे मुरझाने लगते हैं, शंकर अपने कंधों पर बीस-बीस लीटर के पानी के डिब्बे लादकर जंगलों में जाते हैं. यह काम आसान नहीं है. लेकिन धरती को हराभरा और जीवों को जीवन देने का यह काम शंकर के लिए पूजा है.

जंगलों में लगाते हैं पानी के पॉट
शंकर न केवल पेड़ों को पानी देते हैं, बल्कि जंगल में जगह-जगह पॉट्स भी लगा रखे हैं. इनमें हर दिन पानी भरते हैं ताकि पक्षी, गिलहरी, बंदर या अन्य कोई जानवर प्यास से तड़पने न पाएं. ये पॉट्स शंकर और उनके एकमात्र साथी की मेहनत से भरते हैं, जिनके लिए शंकर हर दिन पांच किलोमीटर तक पैदल चलकर कभी तबेले से, तो कभी पानी की टंकी से पानी लाते हैं.

ज्वेलरी शॉप में काम करते हैं शंकर
शंकर सुतार ज्वेलरी शॉप में काम करते हैं, लेकिन उनके दिन की शुरुआत जंगल सेवा से होती है. वह मुंबई के जोगेश्वरी इलाके में अपनी मां के साथ रहते हैं. दिलचस्प बात यह है कि उन्होंने अभी तक शादी नहीं की है और उनका पूरा ध्यान प्रकृति की सेवा पर केंद्रित है. उनके लिए जंगल भी उनके परिवार का हिस्सा है.

निस्वार्थ सेवा, समाज के लिए प्रेरणा
शंकर सुतार का यह समर्पण आज के समाज के लिए एक उदाहरण है. बिना किसी सरकारी मदद, बिना किसी प्रचार के, वे सालों से यह काम कर रहे हैं. उन्हें न कोई पुरस्कार चाहिए, न तारीफ. बस पेड़ हरे रहें, पक्षी जीवित रहें और जंगल में जीवन चलता रहे, यही इनका मकसद है.

-धर्मेन्द्र दुबे की रिपोर्ट

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