मध्य प्रदेश के बैतूल जिले में गोवर्धन पूजा के मौके पर हर साल एक अजीबोगरीब परंपरा देखने को मिलती है. यहां के लोग अपने छोटे बच्चों को गोबर में फेंकते हैं. लोगों का मानना है कि ऐसा करने से बच्चे पूरे साल बीमारियों से दूर रहते हैं और तंदुरुस्त बने रहते हैं. हालांकि इस परंपरा को देखने वाला हर शख्स दंग रह जाता है, क्योंकि रोते-बिलखते मासूमों को गोबर में डालते हुए देखकर किसी का भी दिल पिघल जाए, लेकिन माता-पिता इसे परंपरा का हिस्सा मानकर करते हैं.
कृष्ण की कथा से जुड़ी है मान्यता
स्थानीय लोगों के अनुसार, यह परंपरा भगवान कृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाने की घटना से जुड़ी है. उनका कहना है कि जब भगवान कृष्ण ने ग्वालों और गायों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत उठाया था, तभी से यह आस्था बनी कि गोवर्धन भगवान उनकी रक्षा करते हैं. इसी विश्वास के चलते गोवर्धन पूजा के बाद लोग बच्चों को गोबर से बने गोवर्धन में डालते हैं ताकि वे निरोगी रहें.
पूरी तैयारी के साथ होती है गोवर्धन पूजा
दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा की जाती है. इसके लिए पहले से तैयारी की जाती है. ग्वाल समाज के लोग गोबर इकट्ठा कर बड़े आकार का गोवर्धन बनाते हैं. पूजा विधिविधान से की जाती है और फिर बारी आती है बच्चों को गोबर में डालने की. ग्वाल समाज के ओपी यादव ने बताया कि यह परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है और इसे समाज का धार्मिक अनुष्ठान माना जाता है.
डॉक्टरों ने बताया खतरनाक
जहां ग्रामीण इसे आस्था का प्रतीक मानते हैं, वहीं डॉक्टर इसे बच्चों के स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक बताते हैं. शिशु रोग विशेषज्ञों का कहना है कि गाय के गोबर में कई प्रकार के बैक्टीरिया, वायरस और कीटाणु पाए जाते हैं, जो त्वचा संक्रमण, एलर्जी और गंभीर बीमारियों का कारण बन सकते हैं. डॉक्टरों के अनुसार, गोबर में स्क्रब टाइफस नामक खतरनाक बीमारी के कीटाणु भी हो सकते हैं, जो इंसान की जान तक ले सकते हैं.
शिक्षित लोग भी मान रहे हैं अंधविश्वास
सबसे हैरानी की बात यह है कि यह परंपरा केवल ग्रामीण इलाकों तक सीमित नहीं है, बल्कि शहरों में भी शिक्षित लोग इसमें शामिल होते हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसी परंपराओं को विज्ञान और स्वास्थ्य के नजरिए से समझना जरूरी है. आस्था अपनी जगह है, लेकिन बच्चों के स्वास्थ्य से समझौता किसी भी रूप में ठीक नहीं कहा जा सकता.
-राजेश भाटिया की रिपोर्ट