लावारिश लाशों का करती हैं अंतिम संस्कार, कोरोना के समय से शुरू हुआ था सिलसिला, मिलिए मुजफ्फरनगर की क्रांतिकारी शालू से

उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर की शालू लावारिश लाशों का अंतिम संस्कार करती हैं. उन्होंने ये काम कोविड-19 के दौरान शुरू किया था. उसके बाद से ही वे बिना रूके इस काम को कर रही हैं. हालांकि इस दौरान शालू को कई लोगों के ताने भी सुनने पड़ते हैं.

'क्रांतिकारी' शालू सैनी
मनीष चौरसिया
  • मुजफ्फरनगर,
  • 03 अक्टूबर 2022,
  • अपडेटेड 10:23 PM IST
  • वीडियो देखकर हुई शुरुआत
  • बेटे का साथ दिया 10th का एग्जाम, बेटी के साथ होंगी ग्रेजुएट

'क्रांतिकारी' शालू सैनी के नाम में ही लगा हुआ है. उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर की रहने वाली शालू एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं. महिलाओं के लिए बहुत सारे काम करती हैं लेकिन फिलहाल शहर में शालू की चर्चा एक बेहद अनोखे और नेक काम को लेकर हो रही है. शालू लावारिश लाशों का अंतिम संस्कार करती हैं. यह सिलसिला उस वक्त शुरू हुआ जब पूरी दुनिया में कोरोना को लेकर तबाही मची हुई थी. पराया तो छोड़िए अपना भी उस वक्त साथ नहीं दे रहा था. ऐसे में शालू ने लावारिश लाशों का संस्कार किया था और अब तक हजारों लावारिश लाशों का अंतिम संस्कार कर चुकी हैं.

वीडियो देखकर हुई शुरुआत

शालू को व्हाट्सएप पर आए एक वीडियो ने विचलित कर दिया था, जिसके बाद उन्होंने यह काम शुरू किया. शालू बताती है कि व्हाट्सएप ग्रुप पर एक वीडियो आया जिसमें श्मशान घाट पर बहुत सारे कलश टंगे हुए थे. बताया गया कि इन कलश में लोगों की अस्थियां हैं जिनको लेने के लिए कोई आ ही नहीं रहा। शालू बताती हैं जब उन्होंने यह काम करना शुरू किया तब उनके सामने कई ऐसी घटनाएं हुई जिन्होंने उन्हें बहुत परेशान किया. वह बताती हैं कि करोना के वक्त उन्होंने कई ऐसी लाशों का अंतिम संस्कार किया जिनके अपने अंतिम संस्कार के वक्त मौजूद रहे लेकिन वह डेड बॉडी को छूने से भी डर रहे थे यहां तक कि लोग मुखाग्नि तक देने को तैयार नहीं थे.

उस वक्त बहुत बुरा भी लगा और गुस्सा भी आया

शालू बताती है कि वो ये काम अपने या संगठन के खर्चे पर करती हैं. कई लोग मदद भी करते हैं लेकिन एक बार मदद के नाम पर उन पर दाग लगते-लगते बचा. वे बताती हैं कि एक परिवार में किसी बुजुर्ग महिला की मौत हो गई थी, उनसे कहा गया कि डेड बॉडी के कान में सोने के कुंडल हैं जिनको आप निकालकर रख लें और अपने सामाजिक कार्य में इस्तेमाल कर लें. शालू ने उन्हे लेने से इंकार कर दिया लेकिन जब वह डेड बॉडी के पास पहुंची तो उन्होंने देखा कि बुजुर्ग मृतक के कान में सोने के कुंडल हैं ही नहीं. आखिर में जांच-पड़ताल के बाद मालूम हुआ कि उनके अपने बेटे ने सोने के कुंडल उनकी डेड बॉडी से निकाल लिए थे. वही बेटा जो कोविड के डर से अंतिम संस्कार के लिए मना कर चुका था.

ऐसे तो किसी आत्मा को मोक्ष ही नहीं मिलेगा

हिंदू रीति-रिवाजों में प्रचलित मान्यताओं के हिसाब से महिलाओं का श्मशान घाट में प्रवेश वर्जित है लेकिन शालू एक महिला होने के बावजूद शालू इस काम को लगातार कर रही हैं. इसको लेकर कई बार उन्हें ताने भी सुनने पड़ते हैं. शालू बताती हैं कि एक नेता ने कहा था कि हिंदू रीति रिवाज में महिलाओं का श्मशान घाट में प्रवेश वर्जित है और शालू जितने भी लोगों का अंतिम संस्कार कर रही हैं उन्हें मोक्ष मिलेगा ही नहीं. इस पर शालू ने उनसे कहा था कि आप किसी भी धर्म ग्रंथ में ऐसा लिखा दिखा दीजिए तो मैं अंतिम संस्कार करना छोड़ दूंगी.  हालांकि बाद में उस नेता ने हाथ जोड़कर शालू से माफी मांगी थी.

बेटे का साथ दिया 10th का एग्जाम, बेटी के साथ होंगी ग्रेजुएट

शालू बताती हैं के बचपन में परिवार में ऐसा माहौल नहीं था जहां लड़कियों को ज्यादा पढ़ाया लिखाया जाए इसलिए उन्हें पढ़ने का मौका नहीं मिला. पति से भी वो अलग हो गईं. लेकिन अब वह भी पढ़ाई कर रही हैं. शालू बताती है कि इस बार वह और उनकी बेटी एक साथ ग्रेजुएशन फाइनल ईयर का एग्जाम देंगी. 

भूत प्रेत से डर नहीं लगता

शालू की बेटी साक्षी बताती है कि उसे अपनी मां पर गर्व है लेकिन वह कहती है इस शालू के काम पर कभी-कभी उसके दोस्त बहुत अजीब रिएक्शन देते हैं कोई पूछता है कि तुम्हारी मां इतने सारे अंतिम संस्कार करती है तुम्हें डर नहीं लगता ? कभी तुम्हारे पीछे भूत प्रेत नहीं लगते? बेटी हंसकर उनके सवालों का जवाब देती है. बता दें, शालू अपने काम में लगातार लगी हुई हैं. इस काम के लिए शालू का नाम इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में भी दर्ज हो चुका है. शालू कहती हैं कि कुछ भी हो जाए वह इस काम को करना कभी नहीं छोड़ेंगी. 


 

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