यूक्रेन छोड़कर जा रहे भारतीयों को पोलैंड की मदद, एक समय में भारत के इस राजा ने दी थी 1000 बच्चों को पनाह

महाराजा जाम साहब दिग्विजय सिंह ने उन सभी बच्चों को सहारा दिया था. ऐसे बच्चों को महाराज न केवल जामनगर लाये बल्कि वो अपनी संस्कृति को न भूलें इसके लिए उन्होंने खुद के खर्च पर जामनगर के पास बालाचडी स्कूल बनवाया. इस स्कूल की मदद से उन बच्चों को उनकी भाषा से, उनके पहनावे से और उनकी संस्कृति से जोड़े रखने में मदद की गई.

Jam DigvijaySingh
गोपी घांघर
  • नई दिल्ली,
  • 01 मार्च 2022,
  • अपडेटेड 5:06 PM IST
  • पोलैंड सरकार ने मांगी थी ब्रिटिशों से मदद
  • खुद के खर्चे पर बनवाया बच्चों के लिए स्कूल

रूस और यूक्रेन के बीच चल रहा युद्ध और भी बढ़ता जा रहा है. यूक्रेन में 20 हजार से भी ज्यादा भारतीय छात्र और नागरिक फंसे हुए हैं. इनमे से कुछ को भारत ले आया गया है, वहीं कुछ को लाने के लिए ऑपरेशन चलाया जा रहा है. इसी कड़ी में भारतीयों को बाहर निकालने के लिए पोलैंड भी हमारी मदद कर रहा है. भारत के जामनगर के राजा का प्यार आज भी पोलैंड के लोगों को याद है. 

दरअसल दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान जो बच्चे अनाथ हुए थे और जिनके पास रहने के लिए घर नहीं थे ऐसे 1000 पोलैंड के बच्चों को जब दुनिया का कोई भी देश सहारा नहीं दे रहे था, उस वक्त जामनगर के राजा उन बच्चों का सहारा बने थे. 

खुद के खर्चे पर बनवाया बच्चों के लिए स्कूल 

महाराजा जाम साहब दिग्विजय सिंह ने उन सभी बच्चों को सहारा दिया था. ऐसे बच्चों को महाराज न केवल जामनगर लाये बल्कि वो अपनी संस्कृति को न भूलें इसके लिए उन्होंने खुद के खर्च पर जामनगर के पास बालाचडी स्कूल बनवाया. इस स्कूल की मदद से उन बच्चों को उनकी भाषा से, उनके पहनावे से और उनकी संस्कृति से जोड़े रखने में मदद की गई.

 पोलैंड सरकार ने मांगी थी ब्रिटिशों से मदद 

दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान हिटलर और स्टालिन ने पोलैंड पर हमला किया था. पोलैंड उस वक्त खंडर में तब्दील हो गया था. तब पोलैंड के लोगों ने ब्रिटिश सरकार से अपील की थी कि पोलैंड के अनाथ बच्चों को उनके देश में रखा जाए. उस वक्त जामनगर के जाम दिग्विजयसिंह ब्रिटिश इम्पीरियल वॉर कैबिनेट के सदस्य थे. जब उनको इस मामले की जानकारी मिली तो उन्होंने बच्चों को जामनगर में रखने की तैयारी की.

4 साल तक रहे कैंपस में बच्चे

आपको बता दें, उस वक्त भारत आजाद नहीं हुआ था. इसके बावजूद जाम दिग्विजय सिंह ने खुद के खर्च पर एक हजार बच्चों के रहने, खाने और पढ़ने के लिए एक पूरा कैंपस तैयार किया. जामनगर के नजदीक बालाचडी में ये कैंपस बनाया गया. यहीं पर इन बच्चों को कुछ सालों तक रख कर उनकी पढ़ाई, खेलकुद, भोजन जैसी सभी चीजों का इंतजाम किया गया. पोलैंड के ये बच्चे यहां पर 1942 से 1946 तक यानी 4 साल तक रहे. जब युद्ध खत्म हुआ और स्थिति सामान्य हुई तो खुद जाम दिग्विजयसिंह इन बच्चों को पोलैंड अपने जहाज से छोड़कर आए.

पोलैंड के लोग आज भी करते हैं महाराज को याद 

जामनगर के बालाचडी में जो बच्चे रहे हैं वो आज भी जाम दिग्विजयसिंह को खुद के दूसरे पिता मानते हैं. पोलेन्ड में आज भी जाम दिग्विजयसिंह को ‘द गुड महाराज’ के नाम से जाना जाता हैं. पोलेन्ड के कई स्कूल के साथ जाम दिग्विजयसिंह का नाम जोड़कर पोलैंड के लोग आज भी जामराजवी और उनके जरिए की गई मदद को याद करते हैं. पोलैंड में एक स्क्वायर बिल्डिंग को जाम दिग्विजयसिंह का नाम दिया गया है.


 

 

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