सिविल अस्पताल पठानकोट में सस्ती रसोई मरीजों व तीमारदारों की भूख मिटा रही है. पठानकोट विकास मंच 23 साल से 500 से 600 लोगों को खाना खिला रहा है. इसके लिए महज दस रुपये थाली का शुल्क रखा गया है. हालांकि ये जरूरतमंद व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह राशि देना चाहता है या नहीं. सस्ती रसोई में खाना पकाने, बैठकर खाने और बर्तन धोने की व्यवस्था की गई है. सिविल अस्पताल में सस्ती रसोई में रोजाना 12.30 से तीन बजे तक लोगों को खाना खिलाया जाता है. जबकि रविवार सुबह, दोपहर और शाम को मंच तीन समय भोजन की सुविधा दी जाती है. इसमें एक सूखी सब्जी, दाल, आचार, सलाद, चावल, चपाती होता है. महीने के एक दिन मंच शाही खाना भी लोगों को खिलाता जाता है. इसमें पूरी, खीर, सूखी सब्जी, पकौड़ियां, दो बढ़िया प्रकार की सब्जियां जैसे स्वादिष्ट पकवान खिलाए जाते हैं.
24 घंटे मिलती है सेवा
मंच के वर्तमान में 400 के करीब सदस्य हैं. यह हर माह बैठक करते हैं, इसमें सस्ती रसोई के प्रबंधन को लेकर चर्चा होती है. सभी सदस्य इस नेक कार्य में अपना आर्थिक सहयोग जरूर करते है. अगर पैसे कम भी पड़ जाते है तो फिर पदाधिकारी खुद से इस मंच में सहयोग डालते हैं. इस कार्य में सरकारी मदद नहीं ली जाती है. मंच सालों से लोगों की सेवा कर रहा है. जरूरतमंद लोगों को भरपेट खाना खिलाना मंच का मुख्य उद्देश्य है. मंच के सभी सदस्यों द्वारा इस कार्य में पूरा सहयोग दिया जा रहा है. लोगों की सेवा में मंच 24 घंटे सेवा के लिए तैयार रहता है.
मिलता है भरपेट खाना
सरकारी हॉस्पिटल में चलाई जा रही सस्ती रसोई जिसमें पठानकोट सरकारी हॉस्पिटल में आने वाले मरीजों और उनके परिजनों को ₹10 में भरपेट खाना मिलता है. इसको लेकर बाहर से आए लोगों ने जहां विकास मंच के इस प्रयास की सराहना की है वहीं उन्होंने हर जगह पर ऐसी रसोई खोलने के लिए भी सरकार के आगे गुहार लगाई है.
कई सालों से चला रहे रसोई
इस बारे में जब विकास मंच के पदाधिकारियों से बात की तो उन्होंने कहा कि वह पिछले कई सालों से यह सस्ती रसोई चलाते आ रहे हैं जिसमें वह गरीब परिवार ही नहीं बल्कि वह लोग भी खाना खाते हैं जो हॉस्पिटल से बाहर हैं और अपाहिज हैं उनको भी घर में इस सस्ती रसोई के जरिए खाना पहुंचाया जाता है. हॉस्पिटल में पंजाब हिमाचल और पठानकोट के अलग-अलग इलाकों से मरीज अपना इलाज करवाने के लिए आते हैं जिनको खाने के लिए दिक्कत होती थी जिसको देखते हुए हमने यह काम शुरू किया था और आज पूरे पठानकोट वासियों का इसमें योगदान होता है.
(पठानकोट से पवन सिंह की रिपोर्ट)