जैन धर्म की सदियों पुरानी परंपरा में छोटे बच्चों का दीक्षा लेकर संन्यासी बनना कोई नई बात नहीं है. लेकिन गुजरात के सूरत में एक 12 साल के बच्चे की दीक्षा को लेकर उठा विवाद अब सुर्खियों में है. सूरत की फैमिली कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए इस बच्चे की दीक्षा पर ठीक एक दिन पहले रोक लगा दी.
क्या है पूरा मामला?
मध्य प्रदेश के इंदौर में रहने वाले भाविन शाह की शादी सूरत की बिनल बेन शाह के साथ 2008 में हुई थी. इस वैवाहिक जीवन से उनके एक बेटे का जन्म हुआ, जिसका नाम पर्व रखा गया. पर्व की उम्र अभी 12 साल है. लेकिन पति-पत्नी के बीच अनबन के चलते बिनल बेन अपने मायके सूरत लौट आईं और बेटे की कस्टडी उनके पास रही. इस दौरान दोनों के बीच कई कानूनी विवाद चले. बिनल बेन ने भाविन शाह और उनके परिवार पर दहेज उत्पीड़न और घरेलू हिंसा के आरोप लगाते हुए सूरत की फैमिली कोर्ट में मेंटेनेंस का केस दर्ज कराया.
दूसरी ओर, भाविन शाह को अपने बेटे से मिलने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था, जिसके चलते उन्होंने 2023 में फैमिली कोर्ट में बेटे की कस्टडी के लिए याचिका दायर की. इस साल अप्रैल में उन्होंने अंतरिम कस्टडी की मांग भी की, जिस पर अभी फैसला होना बाकी है.
इसी बीच, भाविन शाह को सूरत से एक चौंकाने वाली खबर मिली. उन्हें पता चला कि उनकी पत्नी बिनल बेन ने बेटे पर्व की जैन दीक्षा की तैयारी कर ली है, जो 21-22 मई 2025 को सूरत के पाल इलाके में होने वाली थी. यह खबर एक डिजिटल निमंत्रण पत्र के वायरल होने से सामने आई. भाविन शाह तुरंत इंदौर से सूरत पहुंचे और अपने वकील नरेश गोहिल के माध्यम से फैमिली कोर्ट में दीक्षा रोकने की गुहार लगाई. कोर्ट ने त्वरित सुनवाई करते हुए 20 मई 2025 को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया और 12 साल के बच्चे की दीक्षा पर रोक लगा दी.
कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
सूरत की फैमिली कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनीं. भाविन शाह के वकील नरेश गोहिल ने दलील दी कि 12 साल की उम्र में बच्चा इतना बड़ा फैसला लेने के लिए परिपक्व नहीं है. उन्होंने कहा, "बच्चे की कस्टडी का मामला कोर्ट में लंबित है. ऐसे में मां का अकेले दीक्षा का फैसला लेना पिता के अधिकारों का हनन है. यह बच्चे के भविष्य के लिए भी ठीक नहीं है." उन्होंने यह भी बताया कि भाविन शाह ने दीक्षा आयोजकों और जैन मुनियों से संपर्क कर समारोह रोकने की अपील की थी, लेकिन कोई असर नहीं हुआ.
वहीं, बिनल बेन के वकील ने दावा किया कि दीक्षा का फैसला बच्चे ने खुद लिया है और यह जैन धर्म की परंपरा का हिस्सा है. उन्होंने यह भी कहा कि भाविन शाह ने 2016 में मां-बेटे को घर से निकाल दिया था और बच्चे की देखभाल या आर्थिक जिम्मेदारी नहीं निभाई. लेकिन कोर्ट ने पिता के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा कि जब तक कस्टडी का मामला लंबित है, तब तक दीक्षा जैसा बड़ा फैसला नहीं लिया जा सकता. कोर्ट ने बच्चे को मां के पास ही रखने का आदेश दिया, लेकिन दीक्षा समारोह पर रोक लगा दी.
बता दें, यह मामला अभी खत्म नहीं हुआ है. कोर्ट में कस्टडी का केस लंबित है, और भविष्य में इस पर और सुनवाई होगी. भाविन शाह ने कोर्ट के फैसले पर संतुष्टि जताई है, लेकिन बिनल बेन के वकील ने असंतोष जाहिर किया है.
(संजय सिंह राठौड़ की रिपोर्ट)