मध्य प्रदेश के आगर मालवा के किसानों ने खेती में एक अनोखा देसी जुगाड़ बनाया है, जो न सिर्फ खरपतवार को खत्म करता है, बल्कि कीटनाशक दवाओं की जरूरत को भी खत्म कर रहा है. शिवलाल और उनके परिवार ने मोटरसाइकिल की मदद से एक ऐसा यंत्र बनाया है, जो उनकी सात बीघा जमीन पर सोयाबीन की फसल में उगने वाले खरपतवार को आसानी से साफ करता है. यह जुगाड़ समय, पैसे और स्वास्थ्य, तीनों की बचत करता है.
कैसे काम करता है यह देसी जुगाड़?
शिवलाल और उनके परिवार ने मोटरसाइकिल के पीछे लकड़ी और लोहे से बना एक खास यंत्र जोड़ा है. इस यंत्र में लोहे के दांत लगे हैं, जो खरपतवार को जड़ से उखाड़ देते हैं. मोटरसाइकिल के पिछले पहिए में एक बड़ा चक्कर लगाया जाता है, जिससे गति पर नियंत्रण रहता है और गाड़ी की क्लच प्लेट सुरक्षित रहती है. यह चक्कर मोटरसाइकिल को खेत की मिट्टी में आसानी से चलने में भी मदद करता है. एक युवक मोटरसाइकिल चलाता है, जबकि बाकी लोग यंत्र को हाथ से संभालते हैं. इस जुगाड़ से एक घंटे में एक बीघा जमीन का खरपतवार साफ हो जाता है, जो पहले 20 मजदूरों को एक दिन में करना पड़ता था.
शिवलाल बताते हैं, “इस जुगाड़ से हमें समय और पैसे दोनों की बचत होती है. पहले एक बीघा खरपतवार साफ करने के लिए 20 मजदूरों को 200 रुपये प्रति मजदूर के हिसाब से 4,000 रुपये खर्च करने पड़ते थे. लेकिन अब यह काम कुछ ही लागत में एक घंटे में हो जाता है.” सबसे बड़ी बात, इस यंत्र से कीटनाशक दवाओं की जरूरत खत्म हो गई, जो फसलों और इंसानों के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाती हैं.
कीटनाशक दवाओं का खतरा और जुगाड़ का फायदा
पश्चिमी मध्य प्रदेश, खासकर मालवा क्षेत्र में, किसान मुख्य रूप से सोयाबीन और गेहूं की खेती करते हैं. इन फसलों में खरपतवार को खत्म करने के लिए आमतौर पर हरबिसाइड्स (साग नाशी) जैसे पेराक्वाट, डाइक्वाट और ब्रोमोजायलिन का इस्तेमाल होता है. ये रसायन न सिर्फ फसलों को जहरीला बनाते हैं, और मिट्टी को बंजर बनाते हैं.
रसायन शास्त्र के प्रोफेसर डॉ. हितेंद्र सिंह तोमर बताते हैं, “इन हरबिसाइड्स में मौजूद रसायन फसलों में माइक्रो-म्यूटेजेनिक बदलाव लाते हैं, जिससे फसल में कार्सिनोजेनिक (कैंसर पैदा करने वाले) तत्व बन जाते हैं. ये तत्व इंसानों में कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का कारण बन सकते हैं.” इसके अलावा, कीटनाशक छिड़कते समय किसान भी बीमार पड़ सकते हैं. इस देसी जुगाड़ ने इन सभी समस्याओं का हल निकाल दिया है. यह न सिर्फ पर्यावरण के लिए सुरक्षित है, बल्कि फसलों को भी स्वच्छ और सुरक्षित रखता है.
किसानों की राय
लालसिंह प्रजापत, जो अपने पिता और भाई के साथ इस जुगाड़ का इस्तेमाल करते हैं, कहते हैं, “यह तरीका कीटनाशक दवाओं के दुष्प्रभावों से बचने का सबसे अच्छा रास्ता है. हमारी फसल अब सुरक्षित है, और हमें दवाओं का खर्च भी नहीं उठाना पड़ता.” गोपाल, एक अन्य किसान, बताते हैं कि यह जुगाड़ कैसे बनाया जाता है: “मोटरसाइकिल के पीछे लकड़ी का जाल और लोहे के दांत वाला यंत्र जोड़ा जाता है. यह खरपतवार को जड़ से उखाड़ देता है और मोटरसाइकिल को खेत में चलाना भी आसान हो जाता है.”
आगर मालवा और आसपास के मालवा क्षेत्र में यह जुगाड़ तेजी से लोकप्रिय हो रहा है. किसान न सिर्फ पैसे बचा रहे हैं, बल्कि अपनी फसलों को कीटनाशक के जहर से भी बचा रहे हैं. एक लीटर कीटनाशक की कीमत 1,000 से 1,700 रुपये होती है, और तीन बीघा जमीन के लिए एक लीटर दवा चाहिए. इस जुगाड़ ने इस खर्च को पूरी तरह खत्म कर दिया है.
क्यों है यह जुगाड़ खास?
यह देसी जुगाड़ न सिर्फ खेती को आसान बना रहा है, बल्कि पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य को भी सुरक्षित रख रहा है. आगर मालवा के किसानों ने दिखाया है कि साधारण तकनीक और मेहनत से बड़े बदलाव लाए जा सकते हैं. यह जुगाड़ समय, पैसे और स्वास्थ्य, तीनों की बचत करता है. मालवा क्षेत्र के लाखों किसान, जो सोयाबीन और गेहूं पर निर्भर हैं, अब इस तकनीक को अपनाने लगे हैं. यह न केवल स्थानीय स्तर पर, बल्कि देशभर में एक मिसाल बन सकता है.
देसी तरीके भी क्रांतिकारी हो सकते हैं
आगर मालवा के इस जुगाड़ ने साबित कर दिया कि देसी तरीके भी क्रांतिकारी हो सकते हैं. यह तकनीक न सिर्फ खरपतवार को खत्म करती है, बल्कि कीटनाशक दवाओं के दुष्प्रभावों से भी बचाती है. भविष्य में अगर इस जुगाड़ को और बेहतर किया जाए, तो यह पूरे देश के किसानों के लिए वरदान साबित हो सकता है. यह पर्यावरण के लिए भी एक बड़ा कदम है, जो रासायनिक प्रदूषण को कम करने में मदद करेगा.
(प्रमोद कारपेंटर की रिपोर्ट)