भाद्रपद की शुरुआत के साथ ही सुहागिनों का खास पर्व हरितालिका तीज नजदीक आ गया है. यह पर्व 26 अगस्त को मनाया जाएगा, लेकिन इसकी तैयारी और रौनक अभी से बाजारों और घरों में दिखाई देने लगी है. यह दिन विशेष रूप से सुहाग की लंबी उम्र और मनचाहे वर की प्राप्ति के लिए माता पार्वती और भगवान शिव की आराधना का पर्व माना जाता है. उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्यप्रदेश, झारखंड से लेकर नेपाल तक यह पर्व पूरी श्रद्धा, उल्लास और उत्साह से मनाया जाता है.
नेपाल में भी तीज की धूम
नेपाल के वीरगंज शहर में हरितालिका तीज से एक सप्ताह पहले ही "रमैलो तीज कार्यक्रम" का आयोजन किया गया. इस कार्यक्रम में सैकड़ों महिलाएं पारंपरिक लाल साड़ियों में सज-धजकर शामिल हुईं और एक-दूसरे को तीज की बधाइयां दीं.
कार्यक्रम में महिलाओं ने नेपाली-भोजपुरी गीतों पर नृत्य किया और पूरे माहौल को तीजमय बना दिया. यह आयोजन इस पर्व की सांस्कृतिक और सामाजिक महत्ता को उजागर करता है, जहां महिलाएं अपनी खुशी, आस्था और एकजुटता का उत्सव मनाती हैं.
अखंड सौभाग्य के लिए रखती हैं निर्जला व्रत
हरितालिका तीज पर महिलाएं कठिन निर्जला व्रत रखती हैं. इस दिन वे अन्न और जल तक ग्रहण नहीं करतीं और पूरे दिन भगवान शिव व माता पार्वती की आराधना में लीन रहती हैं. शाम को महिलाएं 16 श्रृंगार करती हैं और पूजा के लिए विशेष तैयारी करती हैं. इस दिन लाल और हरे वस्त्रों को शुभ माना जाता है.
शुभ मुहूर्त और पूजा विधि
इस बार हरितालिका तीज की पूजा का शुभ मुहूर्त 26 अगस्त को सुबह 5:56 बजे से लेकर 8:31 बजे तक रहेगा.
पूजा के लिए महिलाएं सुबह जल्दी उठकर स्नान करती हैं, नए वस्त्र पहनती हैं और मिट्टी की प्रतिमाओं के साथ भगवान शिव, माता गौरी और गणेश जी की स्थापना करती हैं.
पूजा की शुरुआत गणेश पूजन से होती है, फिर गौरी-शंकर की आराधना की जाती है.
महिलाएं श्रृंगार सामग्री अर्पित करती हैं और हरितालिका तीज व्रत कथा सुनती हैं.
जानिए तिथि और पंचांग
भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि का आरंभ 25 अगस्त को दोपहर 12:34 बजे होगा और समापन 26 अगस्त को दोपहर 1:54 बजे तक होगा. उदया तिथि के अनुसार, हरितालिका तीज 26 अगस्त को मनाई जाएगी. यह तिथि व्रत रखने के लिए अत्यंत शुभ मानी गई है.
शिव-पार्वती के पुनर्मिलन की पौराणिक कथा
पौराणिक मान्यता है कि माता पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए घोर तप किया था. उनकी श्रद्धा और तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने उन्हें अपनी अर्धांगिनी बनाया. हरितालिका तीज इसी पुनर्मिलन की स्मृति में मनाया जाता है और यह महिलाओं के लिए अखंड सौभाग्य और वैवाहिक सुख का प्रतीक है.