Jhansi: 20 भुजाओं वाली माता की प्रतिमा, महाभारत से जुड़ी है माता भद्रकाली की कथा

उत्तर प्रदेश के झांसी में मुख्यालय से 80 किलोमीटर दूर भदरवारा गांव में मां भद्रकाली का गोमुख स्वरूप है. इस मंदिर में माता की 30 भुजाएं हैं. मान्यता है कि माता सभी भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करती हैं.

Bhadrakali Temple
gnttv.com
  • झांसी,
  • 23 सितंबर 2025,
  • अपडेटेड 4:41 PM IST

बुंदेलखंड की वीर भूमि झांसी यूं तो वीर और वीरांगनाओं के प्राचीन इतिहास को सजोए हुए हैं, तो वहीं यह पावन धरती धार्मिक आस्थाओं और प्राचीन मान्यताओं से परिपूर्ण रही है. झांसी मुख्यालय से लगभग 80 किलोमीटर दूर मऊरानीपुर तहसील का भदरवारा गाँव इन्हीं आस्थाओं का जीवंत प्रमाण है. यहाँ स्थित माँ भद्रकाली का सिद्ध मंदिर आज भी श्रद्धालुओं की अटूट आस्था और विश्वास का केंद्र है. मान्यता है कि इस मंदिर में विराजमान माँ भद्रकाली का गोमुख स्वरूप पूरी दुनिया में कहीं और नहीं मिलता. यहाँ माँ के अद्भुत दर्शन मात्र से भक्तों की सभी मनोकामनाएँ पूरी हो जाती हैं.

मां भद्रकाली का गोमुख स्वरूप-
कहा जाता है कि यहाँ विराजमान माँ भद्रकाली का गोमुखी स्वरूप जैसा दूसरा स्वरूप पूरी दुनिया में कहीं और नहीं देखने को मिलता. यही कारण है कि मंदिर में विराजमान सिद्ध प्रतिमा के दर्शन मात्र से भक्तों की हर मनोकामना पूरी हो जाती है. चाहे संतान की प्राप्ति की कामना हो, सुख-समृद्धि की तलाश हो या फिर किसी संकट से मुक्ति माँ भद्रकाली की कृपा से सब संभव हो जाता है. 

विशाल मेले का होता है आयोजन-
नवरात्रि के पावन अवसर पर यहाँ विशाल मेले का आयोजन किया जाता है. चैत्र और शारदीय नवरात्रि में हजारों की संख्या में श्रद्धालु यहाँ पहुँचते हैं. माँ के दरबार में भजन-कीर्तन गूंजते हैं, भक्त भक्ति रस में डूब जाते हैं और पूरा मंदिर परिसर दिव्य ऊर्जा से आलोकित हो उठता है.

भक्तों की आस्था का एक विशेष रूप यहाँ की अनोखी परंपरा में भी झलकता है. जब किसी श्रद्धालु की मनोकामना पूर्ण हो जाती है तो वह माँ को नींबू और नारियल की बलि चढ़ाता है. मान्यता है कि इस अद्भुत अनुष्ठान से माँ प्रसन्न होती हैं और भक्तों के जीवन से सभी बाधाएँ समाप्त कर देती हैं. आस्था के इस मंदिर में चाह हिन्दू हो या मुस्लिम सभी गांव के ग्रामीण इस मंदिर में अपनी प्रतिदिन हाजरी देते है और माँ के चरणों मे शीश झुकाकर माँ का आशीष लेते है.

महाभारत काल से जुड़ा है किस्सा-
भदरवारा गाँव और इस मंदिर से जुड़ा एक ऐतिहासिक प्रसंग महाभारत काल से भी संबंध रखता है. मंदिर के पुजारी संजय तिवारी ने बताया कि जब पांडव वनवास के समय संकट में थे, तो वे भटकते-भटकते भदरवारा के समीप जंगल में पहुँचे. उन्होंने अपनी रक्षा के लिए हवन पूजन माँ की साधना की. माँ प्रकट होकर पांडवों से बोलीं कि 'तुम लोग आगे चलो, मैं पीछे-पीछे चलूँगी, परन्तु पीछे मुड़कर मत देखना.' पांडव आगे बढ़ते रहे. लेकिन घनघोर जंगल जब पांडवों को माँ के पैरों की आहट नहीं मिली तो संशयवश पीछे मुड़कर देख लिया. तभी माँ एक मौवली वृक्ष के नीचे ठहर गईं और पांडवों को आशीर्वाद देकर कहा कि अब मैं यहीं से तुम्हारी रक्षा करूंगी. तभी से यह स्थान माँ भद्रकाली के नाम से विख्यात हो गया. पंडित संजय तिवारी ने आगे बताया कि यहां पर विराजमान मां का अनोखा रूप दुनिया में कहीं और देखने को नहीं मिलता है, क्योंकि यहां पर माँ भद्रकाली का स्वरूप गौ मुख जैसा है, माँ की 20 भुजाएं हैं और, 64 जोगणिया भी माँ के साथ विराजमान हैं.

भदरवारा का यह सिद्ध मंदिर केवल आस्था का केंद्र नहीं, बल्कि लोगों की अटूट श्रद्धा और विश्वास का जीवंत स्वरूप है. यहाँ आकर भक्त अपने जीवन में नई ऊर्जा, विश्वास और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं.
  
भक्तों का लगता है मेला-
मन्दिर में आये एक भक्त ने बताया की माँ यहां गौमुख जैसा है और माँ से जो भी सच्चे मन से मांगों वह अवश्य पूर्ण होती है, मन्दिर का इतिहास पांडवों से जुड़ा है. वहीं, मुस्कान ने बताया कि माँ यहां गौमुख रूप में विराजमान हैं. 20 भुजाएं है और माँ भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती है. वहीं, मन्दिर में आए एक मुस्लिम भक्त ने बताया कि मैं इस मंदिर में बचपन से आ रहा हूं, और माँ मेरी हमेशा मनोकामना पूर्ण करती है.

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