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Harsiddhi Mata Temple: 3 जगह होती है हरसिद्धि माता की पूजा, विक्रमादित्य से जुड़ी है कथा

मध्य प्रदेश में हरसिद्धि माता की तीन जगह पूजा होती है. रायसेन में चरण की पूजा होती है. जबकि भोपाल के वेरसिया के तरावली गांव में हरसिद्धि माता के धड़ की पूजा की जाती है. इसके अलावा उज्जैन में सिर की पूजा की जाती है. इन तीनों मंदिरों की कथा राजा विक्रमादित्य से जुड़ी है.

Harsiddhi Mata Temple Harsiddhi Mata Temple

हरसिद्धि माता की भक्ति में उज्जैन के महाराजा का जिक्र आता है. हरसिद्धि माता के चरण , धड़ और सर की आज भी अलग अलग पूजा होती है. हरसिद्धि माता के रायसेन में चरण, भोपाल के वेरसिया के ग्राम तरावली में धड़ और उज्जैन में सिर की पूजा होती है. आखिर ऐसा क्या हुआ कि हरसिध्दि के अंगों की अलग अलग पूजा होती है. मां हरसिद्धि का दरबार रायसेन जिला मुख्यालय से लगभग 10 किलोमीटर दूर ग्राम परवलिया में स्थित है, जहां चरणों की पूजा की जाती हैं. राजा विक्रमादित्य के समय से माँ कर रही है हर भक्तों की मनोकामना पूरी. ऐसा कहा जाता है कि मातारानी लगभग 500 वर्षों से भक्तों की हर मनोकामना पूरी कर रही हैं, जानिए क्या है इस मंदिर की खासियत.

विक्रमादित्य से जुड़ी है कथा-
रायसेन जिला मुख्यालय से लगभग 10 किलोमीटर दूर ग्राम परवरिया में स्थित मां हरसिद्धि का दरबार है. सदियों से मां यहां भक्तों की हर मनोकामना पूरी करती है, तो इस स्थान का इतिहास भी बड़ा रोचक बताया जाता है. कहा जाता है कि राजा विक्रमादित्य ने जब माँ हर सिद्धि की तपस्या की और उसके बाद उनको उत्तराखंड से अपने साथ उज्जैन चलने की प्रार्थना की तो माँ हरसिद्धि तैयार हो गई. लेकिन उन्होंने राजा विक्रमादित्य से कहा कि मैं जहां रुकूंगी, वहां रुकती जाऊंगी और माँ विक्रमादिय के साथ उज्जैन जाते समय गाड़ी के पहिए की धड़ी टूटने के बाद यहां उतरी थी और इस कारण उनके चरण इस स्थान पर सबसे पहले पड़े थे. तब से लेकर आज तक उनके चरणों की पूजा यही होती है.

वहीं, उनके धड़ की पूजा भोपाल जिले के बैरसिया के ग्राम तरावली स्थित मंदिर में और माता के मस्तक की पूजा राजा विक्रमादित्य के उज्जैन में होती है. इस तरह कुल तीन जगह मां हरसिद्धि की पूजा होती है. मां हरसिद्धि सदियों से इन स्थानों पर विराजमान होकर अपने भक्तों की सभी मनोकामना पूरी कर रही हैं. कहा जाता है कि साल में एक बार ग्राम परवरिया में विशाल मेला लगता है और जो भक्त यहां पर नारियल या प्रसाद भेंट कर देता है तो उसे हर साल में एक बार प्रसाद या नारियल भेंट करना ही होता है. कहा जाता है कि यहां प्रदेश के कोने-कोने से ही नहीं, बल्कि देश के कोने कोने भक्त मां हरसिद्धि के दर्शन करने आते हैं. वहीं महिलाएं अपनी सूनी गोद भरने की प्रार्थना करती हैं और उनकी गोद यहां भर जाती है. कहा जाता है कि मां के इस दरबार में सच्चे मन और साफ नीयत से जो भी मांगो मिल जाता है और वर्षों पुराने बिगड़े काम भी यहां बन जाते हैं. देश के कोने-कोने से भक्त हैं और माँ के दर्शन पाकर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं.

3 जगह होती है माता की पूजा-
मध्य प्रदेश में हरसिद्धि माता मंदिर रायसेन के परवलिया, भोपाल के तरावली और उज्जैन में स्थित है. विदिशा और रायसेन के लोग माँ हरसिद्धि माता को अपनी कुलदेवी के रूप में पूजते हैं. इस कारण यहाँ के लोगों के लिए यह विशेष आस्था का केंद्र है. ऐसी मान्यता चली आ रही है कि यदि कोई हिंदू परिवार का सदस्य हरसिद्धि माता का प्रसाद ग्रहण कर लेता है तो उसे हर साल देवी के दर्शन के लिए अपने परिवार सहित यहाँ आकर दरबार में पूजा अर्चना कर प्रसाद चढ़ाना पड़ता है. यह परंपरा सदियों से चली आ रही है. वहीं, एक और कहानी प्रचलित है. कहा जाता है कि उज्जैन के राजा विक्रमादित्य अपने वाहनों के कारवां के साथ बैलगाड़ी से हरसिद्धि माता की प्रतिमा लेकर जा रहे थे. विदिशा से होकर जैसे ही उनके वाहनों का कारवां रायसेन जिले के परवरिया गांव पहुंचा तो एक किले के नजदीक नीम के पेड़ के नीचे हरसिद्धि माता की प्रतिमाएं लेकर वे रुक गए.
 
दाल-बाटी का मिलता है प्रसाद-
सुबह जब रवाना होने लगे तो बैल गाड़ी के पहिये की धुरी टूट गयी. जिसे बदलने के बाद बैलगाड़ी चलाई तो बैलगाड़ी पलट गयी. जिसके कारण राजा विक्रमादित्य ने माता हरसिद्धि की तीन पिंडी रूपी प्रतिमाएं वहीं चबूतरे पर धार्मिक विधि-विधान, हवन पूजन कर विराजित कर दी. बस, तभी से यह मंदिर प्रसिद्ध होता चला गया. यहाँ हर साल नवरात्रि वार्षिक महिला भी लगता है, जो करीब एक महीने तक चलता है और जिसे देखने विदिशा, रायसेन, भोपाल, सीहोर से लोग परिवार सहित पहुंचे हैं और माता के दरबार में पहुँचकर पूजा अर्चना करते हैं. कई लोग तो मंदिर परिसर में ही दाल-बाटी और लड्डू चूरमा का प्रसाद तैयार करके माता को भोग भी लगाते हैं. इस मंदिर की खास बात यह है कि मंदिर परिसर में बाटियाँ सेंकने के लिए एक अलग ही स्थान बना हुआ है जहाँ जाकर सभी श्रद्धालु अपनी बाटियाँ सेक लेते हैं.

(राजेश कुमार रजक की रिपोर्ट)

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