Kaal Bhairav: हर साल मार्गशीर्ष मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान काल भैरव की जयंती मनाई जाती है. काल भैरव की जयंती को भैरव अष्टमी, भैरव जयंती, काल भैरव अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है. ऐसी मान्यता है काल भैरव की पूजा करने से व्यक्ति के भय और अवसाद का नाश होता है. व्यक्ति के अंदर अदम्य साहस का संचार होता है.
काल भैरव की पूजा करने से व्यक्ति को पापों से मुक्ति मिलती है. भगवान काल भैरव की कृपा से जीवन में धन, स्वास्थ्य और समृद्धि आती है. ऐसी मान्यता है कि काल भैरव जयंती पर विधि-विधान से पूजा करने पर भगवान काल भैरव की कृपा बनी रहती है. काल भैरव की पूजा करने से शत्रुओं पर विजय मिलती है. भगवान काल भैरव के सबसे जागृत मंदिर उज्जैन और काशी में हैं. बटुक भैरव का मंदिर लखनऊ में है. इसके अलावा सभी शक्तिपीठों के पास भैरव बाबा के जागृत मंदिर जरूर होते हैं.
कब मनाई जाएगी काल भैरव की जयंती
इस साल मार्गशीर्ष मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि का शुभारंभ 11 नवंबर 2025 को रात 11:08 बजे होगा और इसका समापन 12 नवंबर 2025 को रात 10:58 बजे होगा. ऐसे में काल भैरव जयंती 12 नवंबर 2025 को मनाई जाएगी. भगवान शिव के पांचवें अवतार काल भैरव माने जाते हैं. रुद्रयामल तंत्र में 64 भैरव का जिक्र मिलता है, लेकिन आम तौर पर लोग उनके दो ही स्वरूप का पूजन करते हैं. भगवान भैरव का बटुक स्वरूप जहां सौम्य माना जाता है तो वहीं काल भैरव को उग्र माना जाता है. हाथ में त्रिशूल, तलवार और डंडा होने के कारण इन्हें दंडपाणि के नाम से भी पूजा जाता है. भगवान काल भैरव का वाहन कुत्ता है.
क्या है भगवान काल भैरव की उत्पत्ति से जुड़ी कथा
भगवान काल भैरव की उत्पत्ति को लेकर एक पौराणिक कथा प्रचलित है. माना जाता है कि एक बार भगवान शिव, विष्णु और ब्रह्मा के बीच इस बात को लेकर विवाद हो गया कि कौन श्रेष्ठ है? काफी कोशिश के बाद भी इस समस्या का समाधान नहीं निकला. सभी देवी-देवताओं से पूछा गया कि इन तीनों देवताओं में कौन श्रेष्ठ है? सभी देवताओं और ऋषियों ने विचार-विमर्श के बाद माना कि भगवान शिव ही श्रेष्ठ हैं.
भगवान विष्णु ने इस फैसले को स्वीकार कर लिया. लेकिन ब्रह्मा जी नाराज हो गए और महादेव को बुरा-भला कहने लगे. इससे भगवान शिव शंकर क्रोधित हो गए और इस क्रोध से काल भैरव का जन्म हुआ. भगवान शिव के इस रूप को देखकर सभी देवता घबरा गए. काल भैरव ने ब्रह्मा जी के एक सिर को काट दिया. सभी देवता काल भैरव से शांत होने की विनती करने लगे. इसके बाद ब्रह्मा जी ने काल भैरव से माफी मांगी. जिसके बाद वो शांत हुए. हालांकि काल भैरव पर ब्रह्म हत्या का पाप लगा. जिसकी वजह से उनको दंड भोगना पड़ा. उनको कई सालों तक धरती पर भिखारी का रूप धारण कर भटकना पड़ा. जब वो काशी पहुंचे तो उनका दंड समाप्त हुआ.
काशी के कोतवाल हैं काल भैरव
बाबा काल भैरव को काशी का कोतवाल कहा जाता है. मान्यता है कि काशी नगरी में काल भैरव की मर्जी चलती है. बाबा विश्वनाथ के मंदिर के पास एक कोतवाली भी है, जिसकी रक्षा खुद काल भैरव करते हैं. पौराणिक कथा के मुताबिक ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति के लिए काल भैरव ने अपने नाखून से कुंड की स्थापना की और उसमें स्नान किया. जिसकी उनको ब्रह्म हत्या से मुक्ति मिली.
पाप से मुक्ति मिलने के बाद भगवान शिव प्रकट हुए और काल भैरव को वहीं रहकर तप करने का आदेश दिया. उसके बाद काल भैरव काशी में बस गए. भगवान शिव ने काल भैरव को इस नगरी की कोतवाली करने को भी कहा था. कहा जाता है कि बाबा काल भैरव मंदिर में अर्जी लगाने के बाद ही बाबा विश्वनाथ उसे सुनते है. कहा जाता है कि काशी में जिसने काल भैरव के दर्शन नहीं किए और बाबा विश्वनाथ की पूजा की, उनकी पूजा अधूरी मानी जाती है और उसका फल भक्त को नहीं मिलता है.
भगवान काल भैरव की ऐसे करें पूजा
1. भैरव बाबा कलियुग के जागृत देव और रात के देवता माने जाते हैं.
2. भगवान भैरव की पूजा का विशेष समय आधी रात को होता है.
3. गृहस्थ लोगों को भगवान भैरव की तामसिक पूजा नहीं करनी चाहिए.
4. आमतौर पर बटुक भैरव की ही पूजा करनी चाहिए क्योंकि यह सौम्य पूजा है.
5. काल भैरव की पूजा कभी भी किसी का बुरा करने के लिए न करें.
6. काल भैरव जयंती के दिन व्यक्ति को प्रात:काल स्नान-ध्यान करने के बाद भगवान भैरव के मंदिर में जाकर गंगा जल अर्पित करना चाहिए.
7. इसके बाद भगवान भैरव को फल-फूल, धूप-दीप, मिष्ठान, पान, सुपाड़ी आदि अर्पित करने चाहिए.
8. भगवान भैरव को प्रसन्न करने के लिए आप इमरती या जलेबी भी चढ़ा सकते हैं.
9. भगवान भैरव के सामने एक बड़े से दीए में सरसों के तेल का दीपक जरूर जलाएं.
10. भगवान भैरव की पूजा का पूरा फल पाने के लिए अंत में उनकी आरती जरूर करें.
भगवान भैरव के विशेष मंत्र
1. ॐ भैरवाय नमः
2. ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं ॐ
3. ॐ भं भैरवाय अनिष्टनिवारणाय स्वाहा