
Mulagandha Kuti Vihar 94th Anniversary
Mulagandha Kuti Vihar 94th Anniversary उत्तर प्रदेश के सारनाथ में मूलगंध कुटी विहार की 94वीं वर्षगांठ के पावन अवसर पर भगवान बुद्ध के पवित्र अवशेषों को दर्शनार्थ रखा गया. देश-विदेश से पहुंचे हजारों बौद्ध श्रद्धालुओं ने तथागत के पवित्र अस्थि अवशेषों के दर्शन किए. कार्तिक पूर्णिमा के पावन अवसर पर शहर में भव्य शोभायात्रा निकाली गई, जिसमें भारत के विभिन्न राज्यों सहित थाईलैंड, कंबोडिया, वियतनाम, म्यांमार, श्रीलंका, भूटान, नेपाल और लाओस से आए बौद्ध श्रद्धालु सम्मिलित हुए. यह जानकारी उत्तर प्रदेश के पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री जयवीर सिंह ने दी.
बड़ी संख्या में जुटे श्रद्धालु-
मंत्री ने बताया कि सारनाथ में हर वर्ष कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर भगवान बुद्ध के अस्थि अवशेष दर्शन के लिए रखे जाते हैं, जिसमें बड़ी संख्या में बौद्ध श्रद्धालु एवं तीर्थयात्री सम्मिलित होते हैं. इस वर्ष तीन दिवसीय (03 से 05 नवंबर) आयोजन में पिछले वर्ष से करीब दोगुना श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचे. बौद्ध धर्म में आस्था रखने वाले देशों के अलावा कोलकाता, गुजरात, बिहार, उत्तर प्रदेश, लद्दाख और हिमालयी क्षेत्रों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु सारनाथ पहुंचे. यह आयोजन महाबोधि सोसायटी ऑफ इंडिया, सारनाथ केंद्र और वियतनामी बौद्ध संघ के सहयोग से आयोजित किया गया.
विदेशों से भी आए भक्त-
पर्यटन मंत्री ने बताया कि सारनाथ में कार्तिक पूर्णिमा पर श्रद्धा का सैलाब उमड़ पड़ा. विशेष शोभा यात्रा और पूजा-अर्चना के बीच देश-विदेश से आए 22,000 से अधिक श्रद्धालुओं ने भगवान बुद्ध के पावन अस्थि अवशेषों के दिव्य दर्शन कर आध्यात्मिक अनुभूति प्राप्त की. विदेशी श्रद्धालुओं में श्रीलंका और वियतनाम से सबसे अधिक आगंतुकों ने सहभाग किया. उन्होंने बताया कि सारनाथ वही पुण्य भूमि है जहां भगवान बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश 'धर्मचक्र प्रवर्तन' दिया था.

बुद्धम शरणम गच्छामि...
कार्तिक पूर्णिमा पर सारनाथ में आस्था, भक्ति और संस्कृति की अद्भुत छटा देखने को मिली. 'बुद्धम शरणम गच्छामि' मंत्रोच्चार के बीच भगवान बुद्ध की फूलों से सुसज्जित मूर्ति के साथ भव्य शोभायात्रा निकाली गई. शंख-नाद और वाद्य-ध्वनियों के बीच मूलगंध कुटी विहार से आरंभ यह यात्रा सारनाथ के प्रमुख मार्गों से होकर पुनः विहार में संपन्न हुई. धर्म भाव से ओत-प्रोत श्रद्धालुओं ने पवित्र अवशेषों के दर्शन के बाद अंतिम प्रणाम किया और संकल्प लिया कि वे बुद्ध के उपदेशों को अपने व्यवहार, विचार और जीवन में उतारकर ही सच्ची श्रद्धांजलि दे सकते हैं.
बुद्ध पूर्णिमा और कार्तिक पूर्णिमा पर होते हैं दर्शन-
भगवान बुद्ध के अवशेषों को साल में दो बार बुद्ध पूर्णिमा और कार्तिक पूर्णिमा पर सार्वजनिक दर्शन हेतु रखा जाता है. इस दौरान देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालु भगवान बुद्ध के अस्थि अवशेषों के दर्शन करते हैं. भगवान बुद्ध के अवशेषों और उससे जुड़े आस्था की यात्रा भी उतनी ही प्राचीन है. लगभग 2,600 वर्ष पूर्व भगवान बुद्ध के महापरिनिर्वाण के उपरांत उनके अवशेषों को श्रद्धापूर्वक आठ भागों में विभाजित कर सम्पूर्ण भारत में बने स्तूपों में रखा गया. कालांतर में सम्राट अशोक ने इन पवित्र अवशेषों को पुनः खोजकर अपने विशाल साम्राज्य के विविध स्थलों पर पुनर्स्थापित कराया.
'बुद्ध की धरती पर वापस आए उनके अवशेष'
भगवान बुद्ध के पवित्र पिपरहवा अवशेष के भारत वापसी ने बौद्ध श्रद्धालुओं में नई आस्था और उत्साह का संचार किया है. सारनाथ में महाबोधि सोसायटी ऑफ इंडिया के प्रधान भिक्षु भंते सुमिथानंद थेरो ने इसे अत्यंत हर्ष और आध्यात्मिक गौरव का क्षण बताया. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार के प्रयासों से 127 साल बाद यह संभव हुआ. इस ऐतिहासिक वापसी के स्वागत में इस वर्ष बड़ी संख्या में श्रद्धालु सारनाथ पहुंचे और पवित्र अवशेषों के दर्शन कर स्वयं को धन्य पाया.
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