पौष माह की पुत्रदा एकादशी व्रत सोमवार को किया जा रहा है. यह नए साल 2023 की पहली एकादशी है. आज के दिन भगवान नारायण की विधि विधान से पूजा करने और व्रत रखने से पुत्र की प्राप्ति होती है. संतान के उज्ज्वल भविष्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है. एकादशी व्रत के पारण से पहले व्रती को एकादशी व्रत कथा का पाठ जरूर करना चाहिए. ऐसा माना जाता है कि व्रत कथा का पाठ करने से भगवान विष्णु की कृपा से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं और मृत्यु के पश्चात मोक्ष की प्राप्ति होती है.
राजा सुकेतुमान को पुत्र की हुई थी प्राप्ति
पौराणिक कथाओं के अनुसार राजा सुकेतुमान ने ऋषि मुनियों के बताए व्रत विधि के अनुसार पुत्रदा एकादशी व्रत और पूजन किया था, जिसके परिणाम स्वरूप उनको पुत्र की प्राप्ति हुई थी. जीवन के अंत में उन्हें मोक्ष भी मिला था. भगवान श्रीकृष्ण ने पुत्रदा एकादशी व्रत के महत्व के बारे में युधिष्ठिर को विस्तार से बताया था.
व्रत मुहूर्त
01 जनवरी की शाम 07 बजकर 11 मिनट से पौष शुक्ल एकादशी तिथि का प्रारंभ.
पौष शुक्ल एकादशी तिथि का समापन 02 जनवरी को रात 08 बजकर 23 मिनट पर.
साध्य योग 02 जनवरी को सुबह से लेकर अगले दिन सुबह 06 बजकर 53 मिनट तक.
शुभ योग 03 जनवरी को सुबह 06 बजकर 53 मिनट से पूरे दिन.
रवि योग 02 जनवरी को सुबह 07 बजकर 14 मिनट से दोपहर 02 बजकर 24 मिनट तक.
पौष पुत्रदा एकादशी व्रत पारण समय 03 जनवरी को सुबह 07:14 बजे से सुबह 09:19 बजे तक.
पौष शुक्ल द्वादशी तिथि का समापन 03 जनवरी को रात 10 बजकर 01 मिनट पर.
पौष पुत्रदा एकादशी पर करें ये उपाय
पौष पुत्रदा एकादशी के दिन मंदिर में गेंहू अथवा चावल का दान करें. मान्यता है कि ऐसा करने से व्यक्ति और संतान को लंबी बीमारी से छुटकारा मिल जाता है. एकादशी तिथि के दिन पीपल के पेड़ के नीचे दीपक जलाएं और वृक्ष की पूजा करें. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पीपल के पेड़ में देवी-देवताओं का वास होता है. इसलिए ऐसा करने से व्यक्ति की सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं और देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है. आर्थिक समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए और माता लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए एकादशी व्रत के दिन तुलसी के पौधे की पूजा करें और पौषे के पास शुद्ध घी का दीपक जलाएं. भगवान विष्णु को पीला रंग सर्वाधिक प्रिय है. इसलिए पौष पुत्रदा एकादशी व्रत के दिन पूजा काल में भगवान विष्णु को धूप-दीप के साथ पीले रंग का पुष्प, फल और वस्त्र अर्पित करें. ऐसा करने से श्री हरि अपने भक्तों से सर्वाधिक प्रसन्न होते हैं.