जैसे ही कृष्ण जन्माष्टमी नजदीक आती है, मुंबई की गलियों और मैदानों में हलचल बढ़ जाती है. खासकर दही हांडी उत्सव के लिए होने वाली तैयारियां एक अलग ही उत्साह और उमंग पैदा करती हैं. इस बार दही हांडी 16 अगस्त को है और इसे लेकर गोविंदा पथकों की प्रैक्टिस जोरों पर है.
मुंबई के भांडुप इलाके में स्थित शिवनेरी गोविंदा पथक की टीम भी अपनी कमर कस चुकी है.
कॉर्पोरेट से लेकर पिरामिड तक
इस पथक की सबसे खास बात यह है कि इसके सदस्य सिर्फ शारीरिक रूप से मजबूत ही नहीं, बल्कि पेशेवर रूप से भी मजबूत हैं. अतुल फोपले, जो इस टीम के अध्यक्ष हैं, बताते हैं कि उनकी टीम में आईटी इंजीनियर, सीए (चार्टर्ड अकाउंटेंट), पुलिस कर्मचारी, सरकारी अधिकारी और कॉर्पोरेट प्रोफेशनल्स शामिल हैं.
यह सभी सदस्य दिनभर ऑफिस या फील्ड ड्यूटी में काम करने के बाद हर रात 8 बजे प्रैक्टिस ग्राउंड पर पहुंचते हैं और रात 1 बजे तक कड़ी ट्रेनिंग करते हैं. यह समर्पण बताता है कि दही हांडी केवल एक त्योहार नहीं बल्कि भावना, साहस और परंपरा का प्रतीक है.
दही हांडी
महाराष्ट्र सरकार ने इसे एडवेंचर स्पोर्ट (साहसी खेल) का दर्जा दिया है. और सच में, जब कोई गोविंदा 6 से 9 थर की ऊंचाई पर चढ़ता है, तो वह सिर्फ एक मटकी नहीं तोड़ता, वह साहस, एकता और भरोसे की मूरत बन जाता है.
इस खेल में चोट की संभावना को देखते हुए, ग्राउंड पर मेडिकल टीम, मैट्स, और सेफ्टी गियर का विशेष ध्यान रखा जाता है. शिवनेरी पथक भी इस जिम्मेदारी को समझते हुए पूरी तैयारी के साथ प्रैक्टिस कर रही है.
गोविंदा सिर्फ ‘सड़कछाप’ नहीं, पढ़े-लिखे भी हैं
टीम लीडर अतुल फोपले कहते हैं, “लोग समझते हैं कि गोविंदा बनना केवल अनपढ़ या स्ट्रीट लेवल युवाओं का काम है, लेकिन हकीकत ये है कि हम जैसे पढ़े-लिखे युवाओं ने अपनी श्रद्धा और संस्कृति से जुड़ाव के चलते यह जिम्मेदारी उठाई है.”
दही हांडी अब सिर्फ इनाम जीतने का माध्यम नहीं रहा, यह संस्कृति की विरासत बन चुका है, जिसमें धर्म, मानवता और एकजुटता की झलक मिलती है.
मुंबई की गलियों में चल रही दही हांडी की यह तैयारी इस बात की गवाह है कि हमारी पुरानी परंपराएं आज भी नए युग के युवाओं के दिलों में जीवित हैं. भले ही आज के गोविंदा कॉर्पोरेट लैपटॉप और ईमेल से दिन बिताते हों, लेकिन रात होते ही वे अपने कृष्ण के लिए मटकी फोड़ने उतरते हैं.
(धर्मेंद्र दुबे की रिपोर्ट)