Navratri 2025: तप, संयम और आत्मशक्ति की साक्षात् मूर्ति... मां ब्रह्मचारिणी की कथा

मां ब्रह्मचारिणी हिमालय की पुत्री ‘मैना’ नाम से विख्यात थीं. नारद मुनि के उपदेश पर उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए वर्षो तक कठोर तपस्या की. फल-फूल और सूखे पत्तों पर निर्वाह करते हुए, कभी निराहार रहकर, उन्होंने आत्मबल का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया. उनकी साधना से प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार किया.

Maa Brahmacharini (Photo Pinterest)
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 23 सितंबर 2025,
  • अपडेटेड 11:39 AM IST

आदिशक्ति ‘माँ दुर्गा’ का द्वितीय स्वरूप ‘ब्रह्मचारिणी’ है, जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘ब्रह्म के समान आचरण करने वाली’. ‘ब्रह्म’ शब्द ‘बृह्’ धातु से व्युत्पन्न है, जिसमें विस्तार, महत्ता और अनंतता का भाव निहित है. इसी धातु से ‘ब्रह्मा’ और ‘ब्रह्माण्ड’ जैसे महत्त्वपूर्ण शब्द बने. ‘ब्रह्म’ का एक अर्थ तपस्या भी है, इसीलिए ब्रह्मचारिणी को ‘तपश्चरिणी’ कहा जाता है, जो गहन साधना, संयम और आत्म-साक्षात्कार की मूर्ति हैं.

पौराणिक आख्यानों के अनुसार, वे हिमालय की पुत्री ‘मैना’ नाम से विख्यात थीं. नारद मुनि के उपदेश पर उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए वर्षो तक कठोर तपस्या की. फल-फूल और सूखे पत्तों पर निर्वाह करते हुए, कभी निराहार रहकर, उन्होंने आत्मबल का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया. उनकी साधना से प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार किया.

ब्रह्मचारिणी का श्वेत वस्त्र शुद्धता और सात्त्विकता का प्रतीक है. उनके बाएँ हाथ का कमण्डलु जल-तत्त्व एवं निर्मल संवेदनशीलता का द्योतक है, जबकि दाहिने हाथ की जपमाला निरंतर ध्यान, अनुशासन और आत्मसमर्पण की प्रतीक है. यह स्वरूप साधक को स्वाधिष्ठान चक्र की ओर प्रवृत्त करता है, जहाँ जीवन-ऊर्जा का विस्तार और अंतर्मुखी चेतना का जागरण होता है.

शास्त्रों में कहा गया है “ब्रह्म चारयितुं शीलं यस्या: सा ब्रह्मचारिणी.” अर्थात्, जो आत्मा को सच्चिदानन्द ब्रह्म की ओर प्रवृत्त करे, वही ब्रह्मचारिणी कहलाती हैं. उनका स्वरूप यह प्रतिपादित करता है कि आत्मबल जाग्रत होने पर कोई बाह्य विघ्न साधक को रोक नहीं सकता.

इस प्रकार, ब्रह्मचारिणी की आराधना केवल देवी-पूजन नहीं, बल्कि आत्म-विस्तार का अभ्यास है. यह हमें संयमित जीवन, इन्द्रिय-निग्रह और उच्चतर चेतना के पथ पर अग्रसर होने का संदेश देती हैं. नवरात्र के दूसरे दिन इनकी उपासना साधक को यह बोध कराती है कि सच्ची साधना वही है, जो अंतर्मन के ब्रह्मतत्त्व को प्रकट कर जीवन में स्थिरता, प्रसन्नता और शांति का संचार करे.

(लेखक: कमलेश कमल)
(लेखक चर्चित भाषाविद् हैं और सनातन से संबद्ध विषयों के जानकार हैं.)

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