नवरात्रि शक्ति की उपासना का महापर्व है, जिसमें मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है. सनातन धर्म के अनुयायी इन नौ दिनों में व्रत, उपवास, मंत्र जाप और देवी पूजन के माध्यम से आध्यात्मिक शक्ति का संचार करते हैं.
यह पर्व महिषासुर नामक राक्षस के वध की कथा से जुड़ा है. मार्कंडेय पुराण के अनुसार मां दुर्गा ने नौ दिनों तक महिषासुर से युद्ध किया और दसवें दिन उसका वध किया. भगवान राम ने भी विजयादशमी के दिन रावण का संहार किया था. यही कारण है कि विजयादशमी पर्व को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है.
रामलीला का आयोजन और उसका महत्व
नवरात्रि के दौरान रामलीला का मंचन भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया के कई देशों में किया जाता है. देवी भागवत के अनुसार, वनवास के दौरान सीता हरण के बाद भगवान राम ने मां दुर्गा की साधना की. नारद मुनि की सलाह पर उन्होंने नवरात्र के नौ दिनों तक उपवास, मंत्र जाप और हवन किया. महाष्टमी की रात मां दुर्गा ने प्रकट होकर उन्हें रावण विजय का आशीर्वाद दिया. यही परंपरा रामलीला के आयोजन और विजयादशमी पर रावण वध की शुरुआत का आधार बनी.
महिषासुर और रावण वध का प्रतीकात्मक महत्व
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मां दुर्गा ने महिषासुर का वध किया और भगवान राम ने रावण का. दोनों घटनाएं बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक हैं. यही कारण है कि नवरात्र और विजयादशमी के दौरान शक्ति और शक्तिमान के अद्भुत समन्वय को दर्शाया जाता है.
रामलीला का वैश्विक प्रभाव
रामलीला का मंचन भारत के अलावा बाली, जावा, श्रीलंका, नेपाल, थाईलैंड, मॉरिशस, कनाडा और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों में भी प्राचीन काल से होता आ रहा है. यह सनातन धर्म की विविधता और समन्वय का प्रतीक है.
अयोध्या की रौनक
नवरात्र के दौरान भगवान राम की जन्मभूमि अयोध्या में विशेष उत्सव का माहौल रहता है. मंदिरों में घंटों की ध्वनि, वैदिक मंत्रोच्चारण और भक्तिमय वातावरण से मन को शांति और आध्यात्मिक सुकून मिलता है.
नवरात्रि का आध्यात्मिक महत्व
नवरात्र का पर्व मानसिक शुद्धि और आत्मिक उत्थान का अवसर है. व्रत और उपवास के जरिए शरीर की शुद्धि होती है. यह परंपरा अनादि काल से चली आ रही है और आज भी अखंड बनी हुई है.