भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम जी की जयंती 30 मई को धूमधाम से मनाई जा रही है. ऐसी धार्मिक मान्यता है कि वैशाख माह में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को भगवान परशुराम का जन्म माता रेणुका और महर्षि जमदग्नि के घर हुआ था. परशुराम जी को चिरंजीवी माना गया है. इनका जन्म धरती पर जन्म मानव कल्याण के लिए हुआ है. भगवान परशुराम से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं हैं. हम आपको बता रहे हैं कि क्यों परशुराम जी ने अपनी मां की गर्दन काट दी थी और क्यों क्षत्रियों का 21 बार संहार किया था?
पिता के आदेश पर मां का किया था वध
एक कथा के मुताबिक भगवान परशुराम ने अपने माता की गर्दन पिता के आदेश पर काट दी थी. दरअसल, महर्षि जमदग्नि की पत्नी रेणुका एक बार सरोवर में स्नान करने गईं थी. उसी समय राजा चित्ररथ उसी सरोवर में नौका विहार कर रहे थे. रेणुका के मन में राजा चित्ररथ को देखकर क्षणिक विकार उत्पन्न हो गया. इसके बाद जब रेणुका आश्रम लौटीं तो महर्षि जमदग्नि ने उनकी मनोदशा भांप ली और क्रोधित हो उठे. उन्होंने अपने पुत्रों को आदेश दिया कि वे अपनी मां का वध कर दें. परशुराम को छोड़ कोई पुत्र इसके लिए तैयार नहीं हुए.
जमदग्नि के सबसे छोटे पुत्र परशुराम ने पिता का आदेश मान अपनी मां की गर्दन काटकर धड़ से अलग कर दिया था. पिता की आज्ञा न मानने वाले अन्य पुत्रों को ऋषि जमदग्नि ने विवेकहीन होने का श्राप दिया. वहीं, आज्ञाकारी परशुराम से प्रसन्न होकर उन्होंने वरदान मांगने को कहा. परशुराम जी ने अपनी माता को पुनर्जीवित करने का वर मांगा. उनकी इच्छा पूरी हुई और रेणुका को नया जीवन मिला. हालांकि, अपनी मां का वध करने के कारण परशुराम को 'मातृहत्या' का पाप लगा था. इस पाप से मुक्ति पाने के लिए उन्होंने भगवान शिव की घोर तपस्या की. भोलेनाथ ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें पाप से मुक्त किया. शंकर जी ने प्रसन्न होकर उन्हें दिव्य अस्त्र परशु यानी फरसा दिया था. परशु को धारण करने के बाद ही वह परशुराम कहलाए.
भगवान परशुराम ने क्यों किया क्षत्रियों का संहार
पौराणिक कथा के मुताबिक महिष्मती नगर के क्षत्रिय हैहय वंश के राजा कार्तवीर्य और रानी कौशिक का पुत्र सहस्त्रार्जुन था. उसने भगवान दत्तात्रेय को अपनी तपस्या से प्रसन्न करके 10,000 हाथों का आशीर्वाद प्राप्त किया था. कहा जाता है महिष्मती सम्राट सहस्त्रार्जुन अपने घमंड में चूर होकर धर्म की सभी सीमाओं को लांघ चूका था.
उसके अत्याचारों से जनता त्रस्त हो चुकी थी. एक बार सहस्त्रार्जुन अपनी पूरी सेना के साथ जंगलों से होता हुआ जमदग्नि ऋषि के आश्रम में विश्राम करने के लिए पहुंचा. महर्षि जमदग्रि ने सहस्त्रार्जुन का स्वागत किया. ऋषि जमदग्रि के पास देवराज इंद्र से प्राप्त दिव्य गुणों वाली कामधेनु नामक चमत्कारी गाय थी. सहस्त्रार्जुन ने ऋषि जमदग्नि से कामधेनु को मांगा, लेकिन उन्होंने देने से मना कर दिया. सहस्त्रार्जुन ने क्रोध में आकर ऋषि जमदग्नि के आश्रम को उजाड़ दिया और कामधेनु गाय को अपने साथ ले जाने लगा, लेकिन तभी कामधेनु सहस्त्रार्जुन के हाथों से छूट कर स्वर्ग की ओर चली गई.
सहस्त्रार्जुन की हजारों भुजाएं और धड़ फरसा से काट कर दिया अलग
इसके बाद जब भगवान परशुराम अपने आश्रम पहुंचे तो अपने आश्रम को तहस-नहस देखकर और अपने माता-पिता के अपमान की बातें सुनकर क्रोध में आ गए और उन्होंने उसी वक्त सहस्त्रार्जुन और उसकी सेना का नाश करने का संकल्प लिया. भगवान परशुराम ने सहस्त्रार्जुन की हजारों भुजाएं और धड़ परशु (फरसा) से काटकर कर उसका वध कर दिया. सहस्त्रार्जुन के वध के बाद परशुराम अपने पिता ऋषि जमदग्नि के आदेशानुसार प्रायश्चित करने के लिए तीर्थ यात्रा पर चले गए
...तो इसलिए किया क्षत्रियों का 21 बार संहार
इसी बीच मौका पाकर सहस्त्रार्जुन के पुत्रों ने अपने सहयोगी क्षत्रियों की मदद से तपस्यारत ऋषि जमदग्रि का उनके ही आश्रम में सिर काटकर उनका वध कर दिया. सहस्त्रार्जुन के पुत्रों ने आश्रम के सभी ऋषियों का भी वध करते हुए, आश्रम को जला दिया. माता रेणुका ने सहायतावश अपने पुत्र परशुराम को विलाप स्वर में पुकारा.
जब परशुराम माता की पुकार सुनकर आश्रम पहुंचे तो माता को विलाप करते देखा और वहीं पास ही पिता का कटा सिर और उनके शरीर पर 21 घाव देखे. यह देखकर परशुराम बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने शपथ ली कि वह हैहय वंश का ही नहीं बल्कि समस्त क्षत्रिय वंशों का 21 बार संहार कर भूमि को क्षत्रिय विहिन कर देंगे और उन्होंने अपने इस संकल्प को पूरा भी किया था. इसका उल्लेख पुराणों में भी मिलता है. उस समय भगवान परशुराम के क्रोध को महर्षि ऋचीक ने शांत किया था.