माता पार्वती के पुत्र गणपति को पूरी सृष्टि में प्रथम पूजनीय का दर्जा हासिल है. किसी भी शुभ काम से पहले पहले गणेश जी की ही आराधना की जाती है. गणेश जी संकटमोचन, विघ्नहर्ता है. कहते है कोई भी परेशानी, तकलीफ, संकट में इनकी आराधना करने से परेशानियों का अंत हो जाता है. गणेश जी का व्रत बहुत फलदायी होता है, ये हर पक्ष की चतुर्थी को रखा जाता है.
संकष्टी चतुर्थी व्रत का मुहूर्त-
संकष्टी चतुर्थी का अर्थ है संकट हरने वाली. इस व्रत को करने से जिंदगी में किसी भी तरह की परेशानी हो वो दूर होती है और जीवन में सुख शांति आती है. इस व्रत को कोई भी गणेश जी का विश्वासी रख सकता है. शास्त्रीय मान्यता है कि इस व्रत को रखने वाले को अच्छी बुद्धि, जीवन में सुख सुविधा मिलती है. एक साल में हर महीने की दोनों पक्षों को मिलाकर कुल 13 संकष्टी चतुर्थी के व्रत किए जाते हैं.
व्रत पर सर्वार्थ सिद्ध योग-
आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की संकष्टी तिथि को कृष्णपिंगल संकष्टी व्रत कहते हैं. इस बार सर्वार्थ सिद्धि योग में संकष्टी चतुर्थी का व्रत किया जाएगा.
कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी के दिन चंद्रोदय रात 10 बजकर 03 मिनट पर होगा. इस दिन चंद्रोदय के लिए देर तक प्रतीक्षा करनी होगी. चंद्रमा के निकलने पर उसकी पूजा करें और एक पात्र में जल, गाय का दूध, अक्षत और फूल लेकर अर्घ्य दें. उसके बाद व्रत का पारण करें.
संकष्टी चतुर्थी व्रत का फल-
गणेश जी को मनाना बहुत आसान होता है, वे बहुत सीधे और जल्दी प्रसन्न होने वाले भगवन है. गणेश जी बुद्धि के भी देवता है, उनके पास अत्याधिक ज्ञान है. इसीलिए पढाई करने वाले बच्चे अगर गणेश जी की आराधना करते हैं तो गणपति उनको बुद्धि का वरदान देते हैं. आपको गणेश व्रत की पूजा का शास्त्रीय विधान बताएं, उससे पहले आपको इस व्रत के फल के बारे में बताते हैं...
सकष्टी व्रत का पूजा विधान-
हर साल कुल 24 चतुर्थी की तिथि आती है. विनायक चतुर्थी के व्रत में चंद्र दर्शन से दोष लगता है, जबकि संकष्टी चतुर्थी पर भगवान चंद्र देव का पूजन होता है. तो चलिए अब ये भी जान लीजिए कि 17 जून को इस तिथि पर आपको भगवान गणपति के वरदान के लिए इस व्रत में पूजा उपासना कैसे करनी है...
ज्योतषी और शास्त्रीय मान्यता ये ही है कि अगर बादल के चलते चंद्रमा नहीं दिखाई देता है तो पंचाग के हिसाब से चंद्रोदय के समय में पूजा कर लें. कहते हैं कि इस दिन भगवान श्री गणेश को 21 गाठों वाला दुर्वा घास अर्पित करें. ऐसा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं. मान्यता है कि भगवान श्री गणेश की पूजा करने से जीवन में सुख, समृद्धि, ज्ञान, बुद्धि और ऐश्वर्य का आगमन होता है.
संकष्टी चतुर्थी की कथा-
संकष्टी चतुर्थी की अनेकों कथाएँ पुराणों में कही गई हैं. लेकिन हम आपको वो कता बता रहे हैं जो सबसे ज्यादा महत्ता रखती है. संकष्टी की कथा कहती है कि एक बार मां पार्वती और भगवान शंकर चौसर खेल रहे थे. हार जीत के निर्णय के लिए माता ने एक मिट्टी के बालक के पुतले को जीवित कर दिया और उसे निर्णय का काम सौंपा. कई बार के खेल में हर बार माता जीतती रहीं. लेकिन एक बार बालक के मुख से भूल वश विजेता के रूप में भगवान शिव का नाम निकल गया. तो माता ने बालक को अपाहिज होने का श्राप दे दिया. क्रोध शांत होने पर बालक ने श्राप का प्रायश्चित पूछा तो मां ने कहा गणेश के संकष्टी व्रत करने से मेरा श्राप खत्म हो जागा. बालक ने कुछ कन्याओं को ये व्रत करते देखा तो उसका विधान पूछा. व्रत के कुछ समय बाद ही गणपति बालक से प्रसन्न हुए और दर्शन देकर उसके पैर को ठीक कर दिया. बालक ये बात बताने कैलाश पहुंचा, लेकिन माता पार्वती कुछ रुष्ट होकर भगवान शिव से दूर कैलाश छोड़ चुकी थीं. भगवान शंकर ने श्राप मुक्ति की कथा पूछी तो बालक के पूरी कथा सुनाई. तब भगवान शिव ने भी संकष्टी चतुर्थी का व्रत किया. व्रत करते ही मां स्वत: ही कैलाश वापस आ गई.
इस तरह ये कथा ये बताती है कि गणेश व्रत किस तरह हमारी मनोकामना पूरी होती है और सारे संकट दूर होते है. मान्यता है कि जो भी साधक संकष्टी का व्रत करता है भगवान गणपति उसे 5 महा वरदान देते हैं.
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तो इन सरल उपायों से कीजिए गणपति को खुश क्योंकि बाप्पा आपके सारे कष्ट हरेंगे.
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