Kanwar Yatra: बच्चों के साथ यात्रा, पति-पत्नी की कांवड़ यात्रा... कांवड़ यात्रा में भक्तों के अलग-अलग रंग

शिवभक्तों में सावन के महीने में कांवड़ यात्रा का क्रेज लगातार बढ़ता जा रहा है. बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक कांवड़ यात्रा लेकर चल रहे हैं. महिलाएं भी कांवड़ यात्रा में किसी से कम नहीं है. कांवड़ यात्रा में अलग-अलग रंग देखने को मिल रहे हैं.

Kanwar Yatra
मनीष चौरसिया
  • नई दिल्ली,
  • 21 जुलाई 2025,
  • अपडेटेड 2:27 PM IST

सावन का महीना चल रहा है. शिव भक्त कांवड़ लेकर अपने आराध्य के दर्शन और जल चढ़ाने के लिए यात्रा कर रहे हैं. दिल्ली में भी कांवड़ यात्रा के अलग-अलग रंग देखने को मिल रहे हैं. 

दादा-पोता की कांवड़-
10 साल का तिरिष अपनी कांवड़ को बेहद सावधानी से रखता है. उसका ख्याल रखता है. तिरिष अपने पूरे परिवार के साथ कांवड़ यात्रा पर निकला है. इस परिवार में सबसे बड़े तिरिष के दादा राजू हैं, जो 55 साल के हैं. दादा बताते हैं कि उन्होंने ही पूरे परिवार को कांवड़ ले जाना सिखाया. परिवार में 2 बेटे और दो बहू सब कांवड़ यात्रा पर हैं. दादा और तिरिष की माँ बताती हैं कि जब हम कहीं रुकते हैं तो तिरिष हमारे पैर दबाने लगता है.

बच्चे को प्रैम में रखकर कांवड़ यात्रा-
शिव की भक्ति का रंग लोगों पर ऐसा चढ़ा है कि वो हर हाल में कांवड़ यात्रा करने को तैयार रहते हैं. बहुत सारे लोग हमें ग्रुप में ऐसे मिले जो अपने बच्चों को भी कांवड़ यात्रा पर लेकर आए हैं. बच्चे बेहद छोटे हैं. इसलिए उन्हें प्रैम में रखकर अपनी यात्रा को आगे बढ़ा रहे हैं. माता पिता के साथ साथ ये छोटे बच्चे भी धूप गर्मी बारिश सब को झेलते हुए भोलेनाथ का नाम लेते हुए आगे बढ़ रहे हैं. बच्चों के प्रैम में बिस्किट, जूस और खाने पीने की पूरी व्यवस्था है. माता-पिता कहते हैं कि हम आगे भी अपने बच्चों को लगातार कांवड़ यात्रा करते रहेंगे.

28 साल बाद फिर कांवड़ यात्रा पर निकले गणेश दत्त-
53 साल के गणेश दत्त शर्मा ने लगभग 28 साल बाद फिर से कांवड़ यात्रा शुरू की है. 28 साल पहले वो लगातार 11 साल तक कावड़ यात्रा कर चुके थे. गणेश एक मंदिर में पुजारी हैं. वो बताते हैं कि भगवान की सेवा के चलते कांवड़ यात्रा छोड़ दी थी. लेकिन अब फिर से भोलेनाथ का बुलावा आया है. इसलिए मैं यात्रा कर रहा हूँ. आने से पहले बच्चे बहुत मना कर रहे थे कि अब उम्र हो गई आपकी. लेकिन मैंने कहा कि ठीक है, कांवड़ यात्रा के ज़रिए ही ये चेक कर लिया जाए कि शरीर ठीक से काम कर रहा है या नहीं. गणेश दत्त जी बताते हैं कि 25 साल पहले कांवड़ यात्रा और अब की कांवड़ यात्रा में बहुत फ़र्क हो गया है. पहले रात में रास्तों में लाइट नहीं होती थी, कोई इंतज़ाम नहीं होता था, सुरक्षा की चिंता होती थी. पहले हम सिर्फ़ दिन में ही यात्रा करते थे, लेकिन अब उत्तराखंड सरकार और UP सरकार दोनों ही बहुत अच्छे इंतज़ाम करती हैं.

पति-पत्नी की कांवड़-
आमतौर पर हम महिलाओं को कांवड़ यात्रा में हल्की कांवड़ उठाते हुए देखते हैं. लेकिन फ़रीदाबाद की मोहिनी 20 लीटर जल अपने कंधे में रखकर भागती दिख जाएंगी. उनके साथ उनके पति अमित हैं. अमित पहले भी कांवड़ यात्रा कर चुके हैं. लेकिन मोहिनी की ये पहली कांवड़ यात्रा है. मोहनी बताती हैं कि किसी ने मुझे आने के लिए नहीं कहा, यह मेरे मन में अंदर से आया कि मैं इस बार कांवड़ यात्रा करूं. ससुराल में किसी ने मना नहीं किया. मेरी सास ने भी मुझे रास्ते के लिए पैसे और सामान देकर भेजा.

दोनों बारी बारी से कांवड़ उठाते हैं. कांवड़ यात्रा के ज़रिए दोनों ये भी सीख रहे हैं कि जीवन यात्रा को मिलकर कैसे चलाना है.

ये भी पढ़ें:

 

Read more!

RECOMMENDED