महाराष्ट्र के अकोला ज़िले में स्थित ऐतिहासिक राजराजेश्वर स्वयंभू शिवलिंग मंदिर में इस श्रावण सोमवार को आस्था का अद्वितीय दृश्य देखने को मिला. सुबह से ही मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी और हजारों लोगों ने भोलेनाथ का जलाभिषेक कर पुण्य अर्जित किया.
श्रावण मास का प्रत्येक सोमवार भगवान शिव की पूजा के लिए विशेष माना जाता है, और अकोला का यह जागृत शिवमंदिर हर साल लाखों भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करता है. इस बार भी, विदर्भ के अलग-अलग जिलों से लेकर गुजरात जैसे पड़ोसी राज्यों से भी भक्त यहां दर्शन के लिए पहुंचे.
मंदिर की रहस्यमयी कथा
राजराजेश्वर मंदिर की पहचान केवल एक प्राचीन धार्मिक स्थल के रूप में ही नहीं, बल्कि एक अनूठी ऐतिहासिक और आध्यात्मिक कथा के रूप में भी होती है.
करीब 1500 वर्ष पूर्व, अकोलसिंह नाम के एक राजा और उनकी पत्नी रानी पद्मावती संतान प्राप्ति की कामना से इस शिवलिंग की आराधना किया करते थे.
मान्यता के अनुसार, रानी ने श्रावण मास में रात के 12 बजे अकेले जलाभिषेक करना शुरू किया. इस बात को लेकर पूरे राज्य में चर्चाएं शुरू हो गईं. एक रात राजा ने रानी का पीछा किया और उन्हें शिवलिंग के पास रंगे हाथों पकड़ लिया. तब रानी ने भोलेनाथ से प्रार्थना की "यदि मेरी भक्ति सच्ची है, तो शिव मुझे अपने भीतर समा लें."
कहते हैं कि तभी तेज बिजली चमकी, और शिवलिंग दो भागों में फट गया, जिसमें रानी समा गईं. वर्षों तक शिवलिंग पर रानी की चुनरी और बाल स्पष्ट दिखाई देते रहे.
इस घटना के बाद राजा ने खुद को दोषी मानते हुए मंदिर के पास स्थित असदगढ़ किले में रहना शुरू किया और आजीवन पूजा में लीन रहे. उन्हीं के नाम पर शहर का नाम अकोला पड़ा और इसे राजेश्वर नगरी के रूप में भी जाना जाने लगा.
मंदिर परिसर में गूंजे शिव नाम, उमड़ा जनसैलाब
श्रावण सोमवार के अवसर पर मंदिर परिसर में घंटियों की गूंज, मंत्रोच्चार और भोलेनाथ के जयकारों से वातावरण भक्ति रस में रंग गया. मंदिर प्रशासन के अनुसार, एक दिन में हजारों भक्तों ने जलाभिषेक किया.
एक श्रद्धालु ने कहा, “हम हर साल श्रावण में यहां आते हैं. यहां की ऊर्जा अलौकिक है. बाबा हमारे सारे संकट हरते हैं.”
वहीं, अहमदाबाद से आए एक भक्त ने बताया, “भोलेनाथ की कृपा है, इसीलिए मेरा व्यापार फल-फूल रहा है.”
श्रद्धा, इतिहास और आस्था का संगम
राजराजेश्वर शिवलिंग मंदिर न सिर्फ धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि यह इतिहास, परंपरा और मानवीय विश्वास का प्रतीक भी बन चुका है. हर साल श्रावण में यह स्थान महाराष्ट्र के धार्मिक नक्शे पर एक प्रमुख केंद्र के रूप में उभरता है.
इस बार का श्रावण सोमवार साबित हुआ कि भक्ति का ज्वार समय और दूरी की सीमाएं लांघ कर आस्था के मंदिरों तक पहुंच ही जाता है.
(धनंजय साबळे की रिपोर्ट)