अकोला की रेवती भांगे का अनोखा संकल्प! इको-फ्रेंडली गणपति से पर्यावरण संरक्षण का संदेश, 30,000 पौधों के बीज बांटेंगी

इस साल रेवती ने एक और बड़ा कदम उठाया है. वह 30,000 से अधिक पौधों और फूलों के बीज गणपति प्रतिमाओं के साथ मुफ्त में बांट रही हैं. साथ ही लोगों को शपथ दिलाएंगी कि हर कोई अपने घर के गमले में गणपति का विसर्जन करें और उसी में पौधा लगाए.

रेवती
gnttv.com
  • अकोला ,
  • 19 अगस्त 2025,
  • अपडेटेड 4:46 PM IST

महाराष्ट्र के अकोला में गणपति उत्सव इस बार कुछ अलग और खास है. यहां की रेवती भांगे ने पिछले 10 सालों से एक अनोखा संकल्प लिया है- गणपति बप्पा की प्रतिमाएं बनाना तो है, लेकिन केवल इको-फ्रेंडली तरीके से. रेवती भक्ति को प्रकृति से जोड़कर एक नया अध्याय लिख रही हैं.

10 साल से बना रहीं इको-फ्रेंडली बप्पा

रेवती भांगे पिछले एक दशक से लाल और काली मिट्टी के मिश्रण से गणपति प्रतिमाएं तैयार कर रही हैं. अब तक वह 1000 से अधिक मूर्तियां बना चुकी हैं. उनका मानना है कि गणपति बप्पा की सच्ची पूजा तभी पूरी होती है जब प्रकृति को नुकसान न पहुंचे.

घर में ही करती हैं मूर्ति विसर्जन

रेवती का तरीका बाकी सब से अलग है. वह घर में ही गमले में बप्पा का विसर्जन करती हैं और उसी मिट्टी में फूल-पौधों के बीज बोकर हरियाली उगाती हैं. उनके अनुसार यह परंपरा न सिर्फ पर्यावरण को बचाती है, बल्कि नए जीवन का भी प्रतीक है.

30,000 पौधों के बीज बांटेंगी

इस साल रेवती ने एक और बड़ा कदम उठाया है. वह 30,000 से अधिक पौधों और फूलों के बीज गणपति प्रतिमाओं के साथ मुफ्त में बांट रही हैं. साथ ही लोगों को शपथ दिलाएंगी कि हर कोई अपने घर के गमले में गणपति का विसर्जन करें और उसी में पौधा लगाए. उनका कहना है कि यह उत्सव सिर्फ भक्ति का नहीं, बल्कि पर्यावरण की रक्षा का सामूहिक संकल्प होना चाहिए.

रेवती का संदेश

रेवती भांगे कहती हैं, “गणपति बप्पा की मूर्ति को घर लाकर अगर हम प्रकृति को नुकसान पहुंचाते हैं तो भक्ति अधूरी रह जाती है. मेरे लिए पर्यावरण ही सबसे बड़ा भगवान है. बप्पा की सच्ची पूजा तभी है जब हम प्रकृति का भी संरक्षण करें.”

रेवती की यह पहल अब समाज में एक बड़ा संदेश बन चुकी है. अकोला और आसपास के लोग उनके प्रयास से प्रेरित होकर गणपति उत्सव को हरियाली और पर्यावरण प्रेम का उत्सव बनाने की ओर बढ़ रहे हैं. यह पहल बच्चों से लेकर बड़ों तक सबको प्रकृति से जोड़ रही है.

(धनञ्जय साबले की रिपोर्ट)

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