वाराणसी बनने जा रहा है विश्व स्तरीय पर्यटन हब! तीर्थस्थलों का होगा कायाकल्प, बढ़ेगा सांस्कृतिक सौहार्द और कारोबार!

पर्यटन विभाग ने इस परियोजना को तेजी से लागू करने के लिए समयसीमा तय की है. तीर्थस्थलों का सर्वे जुलाई 2025 तक पूरा होगा, जिसके बाद एक विस्तृत अनुमान तैयार किया जाएगा. इस सर्वे में तीर्थस्थलों की स्थिति, बुनियादी सुविधाओं की कमी और विकास की संभावनाओं का आकलन किया जा रहा है.

वाराणसी पर्यटन विकास
gnttv.com
  • वाराणसी,
  • 10 जून 2025,
  • अपडेटेड 2:48 PM IST

काशी, बनारस, वाराणसी... ये वो पवित्र नगरी है, जहां गंगा के घाटों पर आस्था की लहरें हिलोरें लेती हैं और हर गली में अध्यात्म की खुशबू बिखरी है. लेकिन अब ये प्राचीन शहर न केवल तीर्थयात्रियों का केंद्र रहेगा, बल्कि एक चमकता हुआ पर्यटन हब भी बनने जा रहा है! उत्तर प्रदेश सरकार ने वाराणसी मंडल को पर्यटन परिपथ के रूप में विकसित करने का भव्य रोडमैप तैयार किया है. इसके तहत वाराणसी, जौनपुर, गाजीपुर और चंदौली के तीर्थस्थलों का कायाकल्प होगा, जिससे न सिर्फ धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि सांस्कृतिक समरसता और स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी नए पंख लगेंगे. 

तीर्थस्थलों का होगा विकास
वाराणसी को धर्म और अध्यात्म की नगरी के रूप में तो दुनिया जानती है, लेकिन अब इसे विश्व स्तरीय पर्यटन स्थल बनाने की कवायद शुरू हो चुकी है. पर्यटन विभाग ने वाराणसी मंडल के तीर्थस्थलों को पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने के लिए कमर कस ली है. इसके लिए सूफी संत स्थल, वाल्मीकि आश्रम, जैन तीर्थ, कबीरपंथ स्थल, रविदास जन्मस्थल और गुरुद्वारों का सर्वे शुरू हो गया है. इन स्थानों को पर्यटन विकास योजना में शामिल करने के लिए संस्कृति विभाग और जिला प्रशासन से तीर्थस्थलों की सूची मांगी गई है.

उपनिदेशक पर्यटन (वाराणसी और विंध्याचल मंडल) राजेंद्र कुमार रावत ने बताया, “वाराणसी दुनिया की सबसे प्राचीन जीवित नगरी है. काशी विश्वनाथ कॉरिडोर, गंगा घाट और सारनाथ जैसे स्थल पहले से ही पर्यटकों को आकर्षित करते हैं. अब हमारा लक्ष्य है कि कबीर प्राकट्य स्थल, रविदास जन्मस्थल, जैन तीर्थ और गुरुद्वारों जैसे कम चर्चित स्थानों को भी पर्यटन के नक्शे पर लाया जाए.” उन्होंने कहा कि इन स्थानों पर बुनियादी सुविधाएं जैसे एप्रोच रोड, साइनेज, लाइटिंग, बैठने के लिए बेंच, शौचालय और पेयजल की व्यवस्था की जाएगी.

सांस्कृतिक समरसता और अर्थव्यवस्था को मिलेगा बल
इस महत्वाकांक्षी योजना का मकसद सिर्फ पर्यटन को बढ़ावा देना नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक समरसता को मजबूत करना भी है. रावत ने बताया, “ये तीर्थस्थल विभिन्न धर्मों और संप्रदायों से जुड़े हैं. इनका विकास न केवल धार्मिक सौहार्द को बढ़ाएगा, बल्कि स्थानीय कला, शिल्प और संस्कृति को भी वैश्विक मंच मिलेगा.” पर्यटन विभाग की योजना में स्थानीय कारीगरों के लिए प्रदर्शनी क्षेत्र और दुकानें बनाने की भी बात है, जिससे उनकी आजीविका को बल मिलेगा.

इस परियोजना से स्थानीय अर्थव्यवस्था में भी उछाल की उम्मीद है. पर्यटकों की बढ़ती संख्या से होटल, रेस्तरां, परिवहन और गाइड सेवाओं की मांग बढ़ेगी. युवाओं के लिए पर्यटन, हस्तशिल्प और आतिथ्य क्षेत्र में रोजगार के नए अवसर खुलेंगे. रावत ने कहा, “हम चाहते हैं कि वाराणसी आने वाला हर पर्यटक यहां ज्यादा समय बिताए और उसे नई-नई जानकारियां मिलें. इसके लिए हम एक पर्यटन हब और परिपथ विकसित कर रहे हैं.”

जुलाई तक पूरा होगा सर्वे
पर्यटन विभाग ने इस परियोजना को तेजी से लागू करने के लिए समयसीमा तय की है. तीर्थस्थलों का सर्वे जुलाई 2025 तक पूरा होगा, जिसके बाद एक विस्तृत अनुमान तैयार किया जाएगा. इस सर्वे में तीर्थस्थलों की स्थिति, बुनियादी सुविधाओं की कमी और विकास की संभावनाओं का आकलन किया जा रहा है. रावत ने बताया, “हमारी कोशिश है कि पर्यटकों को इन स्थानों तक पहुंचने में कोई दिक्कत न हो. इसके लिए साइनेज पर ऐतिहासिक और धार्मिक जानकारी भी दी जाएगी, ताकि पर्यटक इन स्थलों के महत्व को समझ सकें.”

पहले से ही पर्यटकों का पसंदीदा
वाराणसी पहले से ही काशी विश्वनाथ कॉरिडोर, गंगा आरती और सारनाथ जैसे स्थानों के लिए पर्यटकों का पसंदीदा गंतव्य है. गंगा के घाटों पर होने वाली भव्य गंगा आरती और सूर्योदय के समय नाव की सैर पर्यटकों के लिए अविस्मरणीय अनुभव है. लेकिन अब इस नई योजना के साथ, पर्यटक उन स्थानों को भी देख सकेंगे, जो अब तक कम चर्चित रहे हैं. जैन तीर्थ, कबीर और रविदास से जुड़े स्थल, और गुरुद्वारे वाराणसी की सांस्कृतिक विविधता को दर्शाते हैं. इनका विकास पर्यटकों को एक समग्र अनुभव देगा.

(रोशन कुमार की रिपोर्ट)


 

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