
भगवान शिव को सोमनाथ भी कहते हैं और भगवान सोमनाथ का एक ही धाम है, जिसकी सुरक्षा स्वयं समुद्र देव करते हैं. मान्यता है कि उस शिवधाम की पहली स्थापना सतयुग में चंद्रदेव ने की थी. जिसे त्रेता युग में रावण ने चांदी से मंडवाया था तो द्वापर में भगवान कृष्ण ने उस धाम को चंदन से बनवाया. कहते हैं कि इस धाम में जो भी पूरी श्रद्धा के साथ भगवान शिव को प्रसन्न करता है, शिव उसके जीवन के सारे संकट दूर कर देते हैं.
12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है सोमनाथ
ब्रह्मांड के कण-कण में शंकर का वास माना गया है, शिव अनादि है आदि है, मध्य है और अनंत है. शिव ही प्रथम है और शिव ही अंत. शिव से ही धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष है. पूरी सृष्टि शिव की शरण में है, शिव जगत के गुरु और परमेश्वर हैं. शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों की महिमा तो आप जानते ही हैं. 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है सोमनाथ. भगवान शिव का सोमनाथ मंदिर का दरबार अरब सागर की सीमा पर स्थित सोमनाथ जिले में स्थापित है. यहां समुंदर की लहरों में जय-जय सोमनाथ गूंजता हैं. यहां घंटों की ध्वनि भी ओम नमः शिवाय जपती है. यहीं पर भगवान शिव ने चंद्रदेव के श्राप का निवारण किया था. यह धाम सतयुग में बना था.
भगवान शिव की शक्ति के आगे सब बेकार
17 बार सोमनाथ धाम में शिव की शक्ति को चुनौती दी गई, लेकिन हर बार शिव की शक्ति के आगे सब बेकार हो गया. वक्त सतयुग का हो या त्रेतायुग का, द्वापर का हो या फिर कलयुग का भगवान सोमनाथ, आशुतोष के इस धाम का जिक्र हर काल में मिलता है. भगवान शंकर इस धाम में सोमेश्वर यानी चंद्र देव के आराध्य के रूप में विराजते हैं. सोमनाथ मंदिर की महिमा बहुत है, गरिमा बहुत है. 12 ज्योतिर्लिंगों में सोमनाथ महादेव का ज्योतिर्लिंग प्रथम ज्योतिर्लिंग है. भगवान चंद्रदेव ने यहां तप किया था इसीलिए उनका नाम सोमनाथ रखा. यहां देश-विदेश से लोग आते हैं, अपनी मन्नतें मांगते हैं.
गूंजते रहता है जय सोमनाथ
भारत का इतिहास किसी भी युग का लिखा जाए, भगवान शंकर की सोमनाथ का जिक्र किए बिना नहीं लिखा जा सकता. सोमनाथ मंदिर के चारों तरफ जय सोमनाथ, जय सोमनाथ का जयकारा गूंजते रहता है. समंदर की बड़ी बड़ी लहरें भी जब मंदिर की सीढ़ियों पर आकर टकराती हैं तो लहरों से निकलने वाली जय शिवशंकर, जय शिवशंकर की ध्वनि पूरे इलाके को शिवमय कर जाती है. इस मंदिर के सोने के चमकते हुए घंटों से निकलने वाली ओम नमः शिवाय ओम नमः शिवाय की ध्वनि से मंदिर का वातावरण भक्तिपूर्ण हो जाता था.
200 मन सोने से बना था सोमनाथ मंदिर का विशाल घंटा
कहते हैं कभी भगवान सोमनाथ के इस दरबार का विशाल सोने का घंटा ही करीब 200 मन सोने से बना था. मंदिर के 56 खंभों में हीरे, माणिक्य और मोती जैसे रत्न जड़े हुए थे. रत्न दीपों की जगमगाहट से मंदिर का प्रकाशमान रहता था. शिवलिंग के पूजन और अभिषेक के लिए कश्मीर से फूल और पूजन सामग्री हरिद्वार, प्रयाग, काशी से प्रतिदिन लाई जाती थी. प्रतिदिन की पूजा के लिए 1000 वेदपाठी ब्राह्मणों की नियुक्ति की गई थी, जिनके शिव मंत्रों के उच्चारण से पूरा इलाका कैलाश सा पवित्र पावन हो जाया करता था. ऋग्वेद से लेकर शिव महापुराण, स्कंद पुराण, श्रीमद्भागवत गीता के साथ, महाभारत में भी इस सोमनाथ मंदिर का जिक्र मिलता है. अरब सागर के किनारे स्थापित इस पहले ज्योतिर्लिंग के दर्शन पूजन करने से साधक की न केवल जन्म जन्मांतर के सारे पाप कट जाते हैं बल्कि भगवान सोमनाथ के पास जो अपने रोग के निवारण के लिए आते हैं, उनका निवारण हो जाता है.
सोमनाथ को बताया गया है चंद्रदेव का स्वामी
ऋग्वेद में सोमनाथ को चंद्रदेव का स्वामी बताया गया है. कहते हैं कि द्वापर युग में शिव की शरण में ही भगवान कृष्ण ने अपनी लीला का अंत किया था. स्कंद पुराण के प्रभास खंड में जिक्र मिलता है कि पहली बार इस धाम में भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग को प्राण प्रतिष्ठित किया गया था. जिसे 12 ज्योतिर्लिंगों में से पहला ज्योतिर्लिंग माना गया. यह अनेकों आक्रमण झेलने के बाद आज भी स्वर्ण आभा से जगमगाता रहता है. धाम की गाथा प्राणों में दर्ज है. शिव महापुराण में सभी ज्योतिर्लिंगों के बारे में बताया गया है, लेकिन सोमनाथ के ज्योतिर्लिंग की मान्यता है कि इस शिवलिंग की स्थापना खुद चंद्रदेव ने की थी.
क्यों की चंद्रदेव ने सोमनाथ के शिवलिंग की स्थापना
सोमनाथ के शिवलिंग की स्थापना की कथा भी बड़ी रोचक है. इस कथा से जुड़ा है चंद्रदेव को मिला श्राप और उसका निवारण. पौराणिक कथा के अनुसार सोमनाथ मंदिर में चंद्र देव ने दक्ष प्रजापति की 27 कन्याओं के साथ विवाह किया था. भगवान चंद्र रोहिणी नाम की कन्या को बहुत प्यार करते थे और 26 का अनादर करते थे तो 26 ने अपने पिता दक्ष प्रजापति के पास जाकर फरियाद किया तो दक्ष प्रजापति ने चंद्र देव को क्षय होने का श्राप दिया. भगवान चंद्रमा को दिन-प्रतिदिन क्षय होता जा रहा था. उनका तेज कम होता जा रहा था.भगवान चंद्रमा ने अभी जो सोमनाथ मंदिर है, उसी जगह बैठ के शिव जी की तपस्या की. बाद में भगवान महादेव ने ज्योति रूप से वहां प्रकट होकर उनको दर्शन दिया और चंद्र देव के क्षय रोग का निवारण किया. श्राप से मुक्ति मिलने के बाद चंद्रमा ने भगवान शिव को और माता पार्वती के साथ सोमनाथ में ही रहने की प्रार्थना की. तब से भगवान शिव सोमनाथ में ज्योतिर्लिंग के रूप में निवास करते हैं. मान्यता है कि चंद्रदेव ने यहां शिवलिंग स्थापना की थी, इसलिए इनका नाम सोमनाथ पड़ा.
क्षय रोग से पीड़ित रोगी हो जाते हैं ठीक
मान्यता है कि सोमनाथ मंदिर के दर्शन करने और यहां पूजा करने से क्षय रोग से पीड़ित रोगी ठीक हो जाते हैं. यह एक प्राकृतिक सोम कुंड है, जिसकी मान्यता है कि इस कुंड में स्वयं शिव तथा ब्रह्मा अंश रूप में सदैव विद्यमान हैं. इसे चंद्र कुंड के नाम से भी जाना जाता है. इस सोम कुंड में स्नान करने से मनुष्य अपने समस्त पापों से मुक्ति पाता है. सोमनाथ को पाप नाशक तीर्थ भी कहा जाता है. कहते हैं कि यहां तीन नदियों हिरण, सरस्वती और कपीला का संगम होता है, जिसमें किया गया स्नान त्रिवेणीय स्नान कहलाता है. सोमनाथ मंदिर में एक खंभा है जो किसी अजूबे से कम नहीं है. ये पिल्लर मंदिर के दक्षिण क्यारे पर स्थित है. इस पिलर पर एक तीर बनाकर एक संकेत दिया गया है, जो कि ये बतलाता है कि सोमनाथ और दक्षिणी ध्रुव के बीच में पृथ्वी का कोई भू भाग नहीं है. मान्यता है कि सावन के महीने में जो व्यक्ति प्रतिदिन सोमनाथ के शिवलिंग का जाप करता है, उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं.
इतने घंटे तक खुला रहता है मंदिर
सोमनाथ मंदिर में रोज रात को 1 घंटे का लाइट शो होता है जो शाम को 7:30 बजे से 8:30 बजे तक होता है. इस शो में मंदिर के इतिहास को दिखाया जाता है. मंदिर में तीन बार आरती होती है एवं पर्यटकों के लिए मंदिर सुबह 6:00 बजे से रात 9:00 बजे तक खुला रहता है. सोमनाथ मंदिर की वास्तु कला सभी को आकर्षित करती है. इन्हें देखने के लिए लाखों लोग हर रोज यहां आते हैं. मंदिर परिसर में ही सोमनाथ प्रदर्शनी केंद्र भी बनाया गया है. सोमनाथ ट्रस्ट ने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाने वाली रानी अहिल्याबाई के नाम पर बनी प्राचीन सोमनाथ मंदिर परिसर का भी पुनर्निर्माण करवाया है. आज सोमनाथ मंदिर के स्वरूप पूरी तरह बदल चुका है. इस नए स्वरूप में अब यह भक्तों की श्रद्धा और आस्था का केंद्र होने के साथ-साथ गुजरात का एक मुख्य पर्यटन केंद्र भी बन चुका है.