Replay of life: मरते वक्त हमारे दिमाग में क्या चलता है? पहली बार जान पाएंगे इंसान

एस्टोनिया की टार्टू यूनिवर्सिटी के डॉ. राउल विसेंटे और उनकी टीम एक 87 वर्षीय बुजुर्ग मरीज का इलाज कर रहे थे, इस मरीज को मिर्गी की समस्या थी. उसकी निगरानी के लिए लगातार ईईजी (EEG) रिकॉर्डिंग की जा रही थी.

dying brain activity
gnttv.com
  • नई दिल्ली ,
  • 17 सितंबर 2025,
  • अपडेटेड 12:46 PM IST
  • मौत से ठीक पहले दिखे खास ब्रेन वेव पैटर्न
  • इंसानों में पहली स्टडी, लेकिन चूहों में पहले दिख चुका है ऐसा पैटर्न

मौत के वक्त इंसान को क्या महसूस होता है? क्या सचमुच मौत के वक्त गुजरे पल एक-एक कर आंखों के सामने आते हैं? यह सवाल सदियों से वैज्ञानिकों और डॉक्टरों को हैरान करता रहा है. अब न्यूरोसाइंटिस्ट्स ने इंसान के मरते वक्त दिमाग की गतिविधि रिकॉर्ड की है. इसमें पाया गया कि मौत के दौरान भी दिमाग उतना ही एक्टिव हो सकता है, जितना सपने देखते या ध्यान करते वक्त होता है.

पहली बार इंसान के मरते वक्त दिमाग रिकॉर्ड हुआ
एस्टोनिया की टार्टू यूनिवर्सिटी के डॉ. राउल विसेंटे और उनकी टीम एक 87 वर्षीय बुजुर्ग मरीज का इलाज कर रहे थे, इस मरीज को मिर्गी की समस्या थी. उसकी निगरानी के लिए लगातार ईईजी (EEG) रिकॉर्डिंग की जा रही थी. इसी दौरान मरीज को दिल का दौरा पड़ा और उसकी मौत हो गई. यह घटना वैज्ञानिकों के लिए मौका बन गई. पहली बार इंसान के मरते वक्त दिमाग की गतिविधि रिकॉर्ड हो सकी.

मौत से ठीक पहले दिखे खास ब्रेन वेव पैटर्न
स्टडी को लीड करने वाले अमेरिका के लुइसविल यूनिवर्सिटी के न्यूरोसर्जन डॉ. अजलम जेम्मर ने बताया- हमने मौत के करीब 900 सेकंड (करीब 15 मिनट) का डेटा रिकॉर्ड किया. इसमें खास फोकस 30 सेकंड पहले और बाद के समय पर था, जब दिल की धड़कन रुक गई.

वैज्ञानिकों ने पाया कि मौत के समय दिमाग में गामा ऑस्सिलेशन नामक ब्रेन वेव पैटर्न उभरते हैं. ये वही पैटर्न हैं जो इंसान के सपने देखने, ध्यान करने, यादें ताजा करने और गहरी सोच में डूबने के दौरान दिखते हैं. इसके साथ ही डेल्टा, थीटा, अल्फा और बीटा वेव्स में भी बदलाव दर्ज किए गए. ब्रेन वेव्स यानी दिमाग की लहरें हमारे सोचने-समझने, याद करने और ध्यान केंद्रित करने जैसी गतिविधियों से जुड़ी होती हैं.

डॉ. जेम्मर के मुताबिक- संभव है कि मौत के वक्त दिमाग इन ब्रेन वेव्स के जरिए जीवन के बिताए खास पलों को एक बार फिर ताजा करता हो. यह वही अनुभव हो सकता है जिसे लोग लाइफ रिकॉल या नियर-डेथ एक्सपीरियंस के रूप में बताते हैं.

इंसानों में पहली स्टडी, लेकिन चूहों में पहले दिख चुका है ऐसा पैटर्न
यह इंसानों पर पहली स्टडी है, लेकिन इससे पहले वैज्ञानिक चूहों पर ऐसे ही बदलाव देख चुके हैं. हालांकि यह खोज बड़ी है, लेकिन वैज्ञानिकों ने साफ किया है कि यह सिर्फ एक मरीज पर आधारित है. उस मरीज को पहले से दिमागी चोट और दौरे की समस्या थी.

 

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