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वैज्ञानिकों ने बना डाली 3D-प्रिंटेड वाली स्किन, जिसमें ब्लड सर्कुलेशन भी होगा मुमकिन, जली हुई त्वचा के इलाज में मिलेगी बड़ी मदद

स्वीडन की Linköping University के वैज्ञानिकों ने 3D प्रिंटिंग तकनीक से Artificial Skin तैयार की है, जिसमें खून की नलियां (blood vessels) भी होती हैं. यह खास तकनीक गंभीर जलने या त्वचा की गहरी चोटों का इलाज करने में सक्षम है.

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बड़ी जलन या गहरे जख्मों के बाद त्वचा की मरम्मत करना डॉक्टरों के लिए बहुत चुनौती भरा होता है. अभी तक ऐसे मरीजों का इलाज शरीर के दूसरे हिस्से की ऊपर की त्वचा (एपिडर्मिस) को ट्रांसप्लांट करके किया जाता है. लेकिन इससे न तो त्वचा का असली रूप वापस आता है और न ही वो पूरी तरह से काम करता है.

स्वीडन के वैज्ञानिकों की दो नई तकनीक
स्वीडन की Linköping University के वैज्ञानिकों ने 3D प्रिंटिंग तकनीक से Artificial Skin तैयार की है, जिसमें खून की नलियां (blood vessels) भी होती हैं. यह खास तकनीक गंभीर जलने या त्वचा की गहरी चोटों का इलाज करने में सक्षम है.

वैज्ञानिकों ने दो नई तकनीकें विकसित की हैं

  • μInk (माइक्रो इंक)- जिससे सेल्स से भरी हुई मोटी त्वचा तैयार की जा सकती है.

  • REFRESH तकनीक- जिससे स्किन में खून की नसों जैसे नेटवर्क बनाए जा सकते हैं.

क्या है μInk टेक्नोलॉजी?
इस तकनीक में वैज्ञानिकों ने एक खास जैल तैयार किया जिसमें फाइब्रोब्लास्ट सेल्स (जो कोलेजन, इलास्टिन और हायल्यूरोनिक एसिड जैसे जरूरी तत्व बनाते हैं) को छोटे-छोटे जैल ग्रेन्यूल्स पर उगाया गया है. इसे 3D प्रिंटर से एक मोटी लेयर के रूप में छापा जाता है, जिससे असली त्वचा जैसी बनावट तैयार होती है.

चूहों पर किए गए टेस्ट में देखा गया कि इस "इंक" से बनी त्वचा में सेल्स जिंदा रहे, कोलेजन बनाए और डर्मिस जैसी परत बनानी शुरू कर दी. साथ ही खून की नई नसें भी बनने लगीं, जिससे यह साबित हुआ कि यह टेक्नोलॉजी असली त्वचा के नजदीक पहुंच चुकी है.

क्या है REFRESH तकनीक
REFRESH तकनीक में वैज्ञानिकों ने एक ऐसा हाइड्रोजेल तैयार किया जो 98% पानी से बना है लेकिन इतना मजबूत है कि इसे बांधा या मोड़ा जा सकता है. इस जैल की खास बात ये है कि यह मेमोरी रखता है यानी दबाने पर भी अपनी असली शेप में लौट आता है.

इस जैल को बाद में एक एंजाइम से पूरी तरह खत्म किया जा सकता है, जिससे उसके स्थान पर एक खोखली नली बन जाती है जो खून की नस की तरह काम करती है. इन नलियों को किसी भी डिजाइन में बनाकर पूरे स्किन टिशू में फैलाया जा सकता है. वैज्ञानिकों ने इन हाइड्रोजेल धागों को गांठ और चोटी की तरह भी बनाया है ताकि नसों का नेटवर्क और भी जटिल और असरदार हो. 

अगर यह तकनीक इंसानों पर भी काम करने लगे, तो यह बर्न के मरीजों, सर्जरी के बाद रिकवरी और यहां तक कि आर्टिफिशियल अंग बनाने में एक क्रांतिकारी बदलाव ला सकती है. यह शोध Advanced Healthcare Materials नामक जर्नल में प्रकाशित हुआ है और आने वाले वर्षों में यह तकनीक दुनिया भर के अस्पतालों में देखने को मिल सकती है.