वैज्ञानिकों ने बताया दिमाग पर कैसे पड़ता है माइग्रेन का असर, इलाज में हो सकती है मदद 

पहली बार वैज्ञानिकों ने यह जाना है कि माइग्रेन हमारे मस्तिष्क को कैसे प्रभावित करता है. इस रिसर्च से ट्रीटमेंट में मदद मिल सकती है. बता दें, अभी तक दुनिया में माइग्रेन का कोई इलाज नहीं है.

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gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 23 नवंबर 2022,
  • अपडेटेड 7:16 PM IST
  • दिमाग की ब्लड वेसल को नुकसान पहुंचाती हैं 
  • पहली बार ऐसी रिपोर्ट की गई है

दुनिया में की लोग हैं जो माइग्रेन से जूझ रहे हैं. माइग्रेन में व्यक्ति को न केवल खतरनाक सिर दर्द का सामना करना पड़ता है बल्कि इससे उनकी रोजमर्रा की जिंदगी भी प्रभावित होती है. माइग्रेन का एक एपिसोड भी आमतौर पर अलग-अलग स्टेज पर होता है और कई दिनों तक चल सकता है. गंभीर मामले में इससे किसी व्यक्ति के काम करने या अध्ययन करने की क्षमता भी प्रभावित हो सकती है. हालांकि, ऐसा पहली बार है जब वैज्ञानिक यह पहचानने में सफल हुए हैं कि माइग्रेन हमारे मस्तिष्क को कैसे प्रभावित करता है. 

दिमाग की ब्लड वेसल को नुकसान पहुंचाती हैं 

साइंस अलर्ट के अनुसार, अल्ट्रा-हाई एमआरआई का उपयोग करते हुए, लॉस एंजिल्स में साउदर्न  कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने पाया कि माइग्रेन का अनुभव करने वाले लोगों में पेरिवास्कुलर स्पेस असामान्य रूप से बढ़े हुए हैं. अमेरिकी सरकार के नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के अनुसार पेरिवास्कुलर स्पेस मस्तिष्क की ब्लड वेसल के आसपास फ्लूइड से भरे स्ट्रक्चर हैं. हाल ही के निष्कर्षों के मुताबिक, माइग्रेन दिमाग की इन्हीं ब्लड वैसल को नुकसान पहुंचाती हैं.

हालांकि शोधकर्ता अभी भी माइग्रेन के साथ इसके लिंक का पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं. अगर ऐसा कर लिया जाता है तो इसके ट्रीटमेंट में काफी मदद मिल सकती है. 

पहली बार ऐसी रिपोर्ट की गई है

इस रिसर्च को करने वाले विल्सन जू ने कहा, "क्रॉनिक माइग्रेन और बिना ऑरा वाले एपिसोडिक माइग्रेन वाले लोगों में ब्रेन रीजन के पेरिवास्कुलर स्पेस में महत्वपूर्ण परिवर्तन होते हैं, जिन्हें सेंट्रम सेमिओवेल कहा जाता है. ऐसे पहली बार है जब इन परिवर्तनों के बारे में रिपोर्ट किया गया है. ऐसा पहले कभी नहीं किया गया."

विल्सन ने आगे कहा, "हालांकि हमें माइग्रेन से पीड़ित और स्वस्थ लोगों में कोई महत्वपूर्ण बदलाव नहीं मिला है. लेकिन इन सफेद पदार्थों को बड़े पेरिवास्कुलर स्पेस की उपस्थिति से महत्वपूर्ण रूप से जोड़ा गया है. इससे पता चलता है कि पेरिवास्कुलर स्पेस में परिवर्तन भविष्य में हो सकता है.”


 

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