क्या आपने कभी सोचा कि कोई ऐसी जगह हो, जहां तारे, सूरज और ग्रह आपसे बातें करें? मध्यप्रदेश के उज्जैन में डोंगला की वराहमिहिर खगोलीय ऑब्जर्वेटरी(Astronomical Observatory) ऐसी ही जादुई जगह है! यह कोई आम लैब नहीं, बल्कि ब्रह्मांड के रहस्य खोलने वाला मंदिर है. यहां 20 इंच की सुपर पावर वाली दूरबीन तारों की हरकतों पर नजर रखती है, तो हजारों साल पुराने यंत्र सूरज की छाया से समय बताते हैं. लेकिन रुकिए, इस ऑब्जर्वेटरी का सबसे बड़ा रहस्य है- यह कर्क रेखा और शून्य देशांतर के मिलन बिंदु के पास बनी है!
तारों का अनोखा घर
डोंगला में बनी वराहमिहिर को मध्यप्रदेश विज्ञान और प्रौद्योगिकी परिषद ने बनाया है. यहां लगी 20 इंच की प्लेनवेव दूरबीन इतनी ताकतवर है कि सूरज, तारों और ग्रहों की हर छोटी-बड़ी गतिविधि को कैद कर लेती है. इसके साथ सीसीडी कैमरे जैसे हाई-टेक गैजेट्स हैं, जो अंतरिक्ष की हर हरकत को रिकॉर्ड करते हैं. लेकिन मजेदार बात ये है कि इस ऑब्जर्वेटरी में प्राचीन भारतीय यंत्र भी हैं, जो आज भी वक्त और तारीखें बताते हैं.
डोंगला क्यों है खास?
इस ऑब्जर्वेटरी की सबसे खास बात है इसकी जगह! यह कर्क रेखा और शून्य देशांतर के उस बिंदु के पास बनी है, जहां सूरज साल में एक बार ठीक सिर के ऊपर चमकता है. यही वजह है कि वैज्ञानिक इसे खगोलीय स्वर्ग कहते हैं.
इस अनोखे स्थान की खोज का क्रेडिट जाता है डॉक्टर विष्णु श्रीधर वाकणकर को. उन्होंने पाया कि पृथ्वी की धुरी में बदलाव के कारण कर्क रेखा और शून्य देशांतर का मिलन अब उज्जैन से हटकर डोंगला में हो रहा है. उन्होंने शंकु नाम की एक साधारण सी छड़ी से सूरज की छाया मापी और साबित किया कि डोंगला ही वह खास जगह है. उनकी खोज ने उज्जैन की पुरानी खगोलीय शान को डोंगला में फिर से जगा दिया.
पुराना विज्ञान, नया जुनून
वराहमिहिर ऑब्जर्वेटरी में पुराने और नए यंत्रों का कमाल का मेल है. 18वीं सदी में जयपुर के महाराजा सवाई जयसिंह ने कुछ ऐसे यंत्र बनाए, जो आज भी पंचांग बनाने में काम आते हैं.
डोंगला है तारों की नई राजधानी
डोंगला को खगोलीय केंद्र बनाने में विक्रम विश्वविद्यालय और MPCST ने खूब मेहनत की. 2023-24 में आजादी का अमृत महोत्सव के दौरान भारत सरकार ने इसे खास केंद्र का दर्जा दिया. 2024 में मध्यप्रदेश सरकार ने एक बड़ा सेमिनार किया, जिसमें ऑब्जर्वेटरी को और बेहतर बनाने की बात हुई.
उज्जैन को खगोलशास्त्र में शून्य देशांतर का बिंदु माना जाता है. पुराने ग्रंथों में लिखा है कि कर्क रेखा और शून्य देशांतर यहीं मिलते थे. कर्क राजेश्वर मंदिर इस मिलन का प्रतीक है. लेकिन अब ये बिंदु डोंगला में खिसक गया है.
वराहमिहिर ऑब्जर्वेटरी राष्ट्रीय पंचांग बनाने में बड़ी भूमिका निभाती है. 1942 से ये हर साल ग्रह-नक्षत्र, त्योहार, और कालगणना का ब्योरा छापती है. हिंदू पंचांग उज्जैन को मानक मानता है. कालनिर्णय जैसे कैलेंडर भी उज्जैन के समय पर चलते हैं.
क्या सिखाती है ये ऑब्जर्वेटरी?
वराहमिहिर ऑब्जर्वेटरी हमें पुराने भारतीय विज्ञान और नए खगोलशास्त्र का मेल सिखाती है. ये शोधकर्ताओं, छात्रों, और सैलानियों के लिए प्रेरणा है. ये बताती है कि भारत का खगोलीय ज्ञान आज भी जिंदा है.
डोंगला की वराहमिहिर ऑब्जर्वेटरी सिर्फ एक इमारत नहीं, बल्कि तारों का जादुई मंदिर है. ये प्राचीन ज्योतिष और आधुनिक विज्ञान को जोड़कर भारत की खगोलीय शान को नई ऊंचाइयों पर ले जा रही है.