Man of the Match Shubhman Gill को मिली शैंपेन की बोतल... क्रिकेट में कहां से शुरू हुआ यह रिवाज़, जीतने वाला अगर नाबालिग़ हो तो क्या करते हैं, जानिए A टू Z

शैंपेन एक तरह की वाइन ही होती है. वही वाइन जो कुछ सदियों पहले तक यूरोप में राजाओं-महाराजाओं की पसंद होती थी. इस शैंपेन ने क्रिकेट में एंट्री कैसे मारी? और मैन ऑफ द मैच को शैंपेन देने का रिवाज़ कहां से शुरू हुआ?

मैन ऑफ द मैच शुभमन गिल (Photo/Getty)
शादाब खान
  • नई दिल्ली,
  • 07 जुलाई 2025,
  • अपडेटेड 6:21 PM IST

भारतीय टीम के कप्तान शुभमन गिल को एजबैस्टन टेस्ट में भारत की जीत के बाद मैन ऑफ द मैच चुना गया. भारत ने इंग्लैंड को 336 रन से मात दी. गिल ने दोनों पारियों में कुल 430 (269, 161) रन बनाए. इसके लिए उन्हें प्लेयर ऑफ द मैच आंका गया और शैंपेन की एक बोतल उनके सुपुर्द की गई.

गिल की उम्र 25 साल है और कानूनी तौर पर उन्हें दुनिया के हर हिस्से में बालिग माना जाएगा. लेकिन अगर गिल नाबालिग होते तो क्या उन्हें शैंपेन की बोतल दी जाती? अगर वह धार्मिक कारणों से शराब न पीते तो उन्हें तोहफे में क्या दिया जाता? आइए जानते हैं कैसे शुरू हुआ प्लेयर ऑफ द मैच को शैंपेन देने का रिवाज़ और इस रिवाज़ ने समय के साथ उठे इन सवालों का जवाब कैसे ढूंढा.

खेलों से पुराना है शैंपेन का रिश्ता
शैंपेन एक तरह की वाइन ही होती है. वही वाइन जो कुछ सदियों पहले तक यूरोप में राजाओं-महाराजाओं की पसंद होती थी. इसी वाइन से शैंपेन ईजाद की गई और खास तरह के जश्नों में इसने वाइन की जगह ले ली. लेकिन खेलों में शैंपेन का स्वागत किसी जश्न में नहीं, बल्कि ओलंपिक की एक दौड़ के दौरान हुआ. फोर्ब्स की एक रिपोर्ट बताती है कि 1896 में स्प्राइडन लुइस ने पहले ओलंपिक की मैराथन जीती थी.

कुछ कहानियों के अनुसार, स्प्राइडन पहले रेस में पिछड़े हुए थे लेकिन बाद में उन्होंने रुककर शैंपेन पी और आखिरकार वह मैराथन जीत गए. इस बात की सच्चाई की पुष्टि तो नहीं की जा सकती लेकिन इतिहास के पन्नों में यह बात साफ तौर पर दर्ज है कि खिलाड़ी शैंपेन को एक एनर्जी ड्रिंक समझते थे. शैंपेन में मौजूद शुगर और उससे उठने वाला जोश-ओ-खरोश खिलाड़ियों को ऊर्जा से भर देता था. जर्नलिस्ट कैथरीन एलेक्स बीवन एटलस ऑब्सक्यूरा के लिए लिखती हैं कि 1908 में शिकागो मैराथन जीतने वाले एलबर्ट कोरी ने अपनी जीत का श्रेय शैंपेन को दिया था. 

विजेता को ऐसे मिलना शुरू हुई शैंपेन
शैंपेन कई लोगों के लिए खेलों में एनर्जी का पर्याय बन गई. लेकिन जश्न के लिए इसका इस्तेमाल एक ऐसे खेल के ज़रिए हुआ जिसमें दौड़ने-भागने का कोई काम नहीं था. दरअसल जब 1966 में एफ-1 ड्राइवर जो सिफर्ट (F-1 Driver Joe Sifert) ने लि मान्स रेस जीती तो उन्हें पोडियम पर शैंपेन की एक बोतल दी गई. वहां गर्मी इतनी थी कि हल्के से झटके से ही बोतल का कॉर्क खुल गया और आसपास मौजूद लोग शैंपेन से भीग गए. 

जब अगले साल अमेरिका के डैन गर्नी ने यह रेस जीती तो उन्होंने अपने साथी कैरल शेल्बी और स्पॉनसर हेनरी फोर्ड को जानबूझकर शैंपेन से भिगो दिया. यहीं से पोडियम पर शैंपेन खोलने का रिवाज़ शुरू हो गया. कुछ सूत्रों के अनुसार, विजेता को शैंपेन देने का चलन 1930 में शुरू हुआ था, जब शैंपेन बनाने वाले फ्रेडरिक चैंडन ने फ्रेंच फॉर्मुला-1 ग्रां प्री जीतने वालों को अपनी कंपनी की एक बोतल भेंट करना शुरू की.

बहरहाल, शैंपेन भेंट करने का यह रिवाज़ धीरे-धीरे क्रिकेट, फुटबॉल और बास्केटबॉल जैसे खेलों पहुंच गया है. सीरीज या आईसीसी टूर्नामेंट जीतने वाली टीम को शैंपेन दिया ही जाता है. इंग्लैंड में विशेष रूप से टेस्ट मैच में प्लेयर ऑफ द मैच जीतने वाले खिलाड़ी को भी शैंपेन दी जाती है. साल 2018 में जब ट्रेंट ब्रिज टेस्ट में भारत की यादगार जीत के बाद विराट कोहली को प्लेयर ऑफ द मैच चुना गया तो उन्होंने कोच रवि शास्त्री को वह बोतल भेंट की थी. 

अगर खिलाड़ी नाबालिग हो तो...
शैंपेन और क्रिकेट के बीच रिश्ता भले ही घनिष्ठ होता जाए लेकिन समाज अपनी नैतिकता को किनारे भी नहीं रख सकता. ऐसे में सवाल उठता है कि अगर मैन ऑफ द मैच किसी नाबालिग क्रिकेटर को मिले, तो क्या उसे भी शैंपेन ही तोहफे में दी जाएगी? अगर खिलाड़ी की धार्मिक मान्यताएं उसे शराब पीने से रोकती हों तो खिलाड़ी को क्या भेंट किया जाएगा? 

क्रिकेट में नाबालिग खिलाड़ियों का आना कोई नई बात नहीं है. आईपीएल में अपनी छाप छोड़ने के बाद 14 साल के वैभव सूर्यवंशी अंडर-19 में भी ताबड़तोड़ रन बना रहे हैं. कोई हैरत न होगी अगर वह सीनियर क्रिकेट में भी जल्द ही उतर आएं. फिलहाल तो क्रिकेट में ऐसा कोई उदाहरण मौजूद नहीं है जब किसी नाबालिग खिलाड़ी को इंग्लैंड में मैन ऑफ द मैच से सम्मानित किया गया हो और आयोजकों को नए गिफ्ट पर विचार करना पड़ा हो.

फुटबॉल में ऐसा ज़रूर हुआ है जब किसी नाबालिग खिलाड़ी ने मैन ऑफ द मैच जीता हो और किसी बड़े को उसके बदले यह उपहार लेने आना पड़ा हो. मिसाल के तौर पर, अप्रैल 2009 में मैनचेस्टर यूनाइटेड के 17 वर्षीय फेडेरिको मशेडा ने एस्टन विल के खिलाफ एक गोल जड़ा जिसके लिए उन्हें मैन ऑफ द मैच चुना गया. जब पुरस्कार देने की बारी आई तो उनकी टीम के साथी गैरी नेविल ने मशेडा के बदले शैंपेन की बोतल स्वीकार की. हालांकि कुछ देर बाद मशेडा उनके हाथ से शैंपेन लेकर ड्रेसिंग रूम की ओर चल पड़े और फिर मैदान पर नहीं दिखे. 

बात अगर धार्मिक पाबंदियों की करें तो उसका लिहाज़ भी खेलों में देखा गया है. इंग्लैंड के फुटबॉल एसोसिएशन ने 2019 में यह फैसला लिया था कि वह धार्मिक मान्यताओं का सम्मान करते हुए टूर्नामेंट फाइनल जीतने वाली टीम को शैंपेन नहीं देगा. इसकी वजह यह थी कि विजेता टीम के खिलाड़ी ट्रॉफी उठाते हुए एक-दूसरे पर शैंपेन स्प्रे करते थे. उसके बाद से फुटबॉल एसोसिएशन ने विजेताओं को शैंपेन की जगह एक नॉन-एल्कोहॉलिक ड्रिंक देना शुरू किया था. 

क्रिकेट की अगर बात करें तो यहां भी खिलाड़ियों को धार्मिक मान्यताओं का सम्मान करते हुए देखा गया है. ऑस्ट्रेलिया के शैंपेन सेलिब्रेशन के वक्त सलामी बल्लेबाज़ उस्मान ख्वाजा अकसर स्टेज से उतर जाया करते थे. इस बात का लिहाज़ करते हुए ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेटरों ने बिना शैंपेन के जश्न मनाना शुरू किया है ताकि ख्वाजा भी जश्न में शामिल हो सकें. 

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