AI query process: AI प्रॉम्प्ट से लेकर जवाब मिलने तक... लाखों कैलकुलेशन के बाद भी जवाब सेकंडों में कैसे दिख जाता है?

अगली बार जब आप Gemini या ChatGPT से पूछें- “मुझे कल का राशिफल बता दो”- तो याद रखिए, आपका यह छोटा-सा सवाल मशीनों की पूरी फौज को दौड़ा देता है, जो कुछ सेकंड तक बिजली, पानी और कंप्यूटिंग पावर झोंककर आपके लिए जवाब बनाती हैं.

AI query process
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 27 अगस्त 2025,
  • अपडेटेड 12:04 PM IST

कभी सोचा है कि जब आप “Gemini, दिल्ली का मौसम बता दो” जैसा छोटा-सा सवाल पूछते हैं, तो आपके मोबाइल स्क्रीन पर सेकंडों में जो जवाब आता है, उसके पीछे कितनी बिजली, पानी और मशीनरी खपती है?

गूगल ने अब इस राज से पर्दा उठा दिया है. कंपनी ने अपनी एक टेक्निकल रिपोर्ट में बताया है कि Gemini पर पूछी गई एक औसत क्वेरी में कितनी ऊर्जा, पानी और कार्बन उत्सर्जन शामिल होता है.

और जवाब हैरान कर देने वाला है- बस माइक्रोवेव को एक सेकंड चलाने जितनी बिजली और 5 पानी की बूँदें!

एक प्रॉम्प्ट = 0.24 वॉट-घंटा बिजली!

गूगल के मुताबिक, Gemini पर दी गई एक मिडियन (औसत) क्वेरी में 0.24 वॉट-घंटा बिजली खर्च होती है. इसे आसान भाषा में समझें तो यह उतनी ही है जितनी एक स्टैंडर्ड माइक्रोवेव ओवन एक सेकंड में खा लेता है.

यानी आपके एक सवाल का जवाब देने के लिए पूरी मशीनरी दौड़ पड़ती है, लेकिन आपको लगेगा जैसे बस हवा से जवाब निकल आया हो.

पानी की खपत- बस पांच बूंदें

AI डेटा सेंटर सिर्फ बिजली ही नहीं खाते, उन्हें ठंडा रखने के लिए पानी भी चाहिए.

गूगल की रिपोर्ट कहती है- Gemini की एक क्वेरी पर 0.26 मिलीलीटर पानी खर्च होता है. यानी आसान भाषा में कहें तो बस 5 बूँदें.

कार्बन फुटप्रिंट- आपकी एक सांस से भी कम

रिपोर्ट बताती है कि हर प्रॉम्प्ट से औसतन 0.03 ग्राम कार्बन डाइऑक्साइड निकलती है.

इसे ऐसे समझिए- आप अगर एक सांस लेते हैं तो उससे ज़्यादा कार्बन निकलती है. यानी Gemini आपके सवालों से फिलहाल धरती को ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचा रहा.

लेकिन आखिर ये प्रोसेस कैसे चलता है?

अब बड़ा सवाल- जब आप कोई प्रॉम्प्ट लिखते हैं तो Gemini या ChatGPT उसे कैसे समझते हैं और उसमें ऊर्जा कहाँ खर्च होती है? चलिए इसे आसान स्टेप्स में समझते हैं:

1. आपका प्रॉम्प्ट दर्ज होता है

  • जब आप कोई सवाल टाइप करते हैं (जैसे- “भारत का प्रधानमंत्री कौन है?”), वह इंटरनेट के जरिए गूगल के विशाल डेटा सेंटर तक पहुंचता है.

2. AI मॉडल एक्टिव होता है

  • डेटा सेंटर में हजारों-लाखों TPUs (Tensor Processing Units) और GPUs (Graphics Processing Units) काम करते हैं. ये चिप्स आपके सवाल को तोड़-फोड़कर समझते हैं- कौन-सा शब्द किस संदर्भ में है.
  • यहीं पर 58% बिजली खर्च होती है.

3. CPU और मेमोरी का सपोर्ट

  • AI मॉडल अकेले नहीं चलता. उसे सपोर्ट करने के लिए कंप्यूटर के CPU और मेमोरी लगातार बैकएंड पर एक्टिव रहते हैं.
  • ये पूरा सिस्टम आपके सवाल को बैकग्राउंड नॉलेज से जोड़कर सही जवाब बनाने में मदद करता है.
  • यहां पर लगभग 25% बिजली खपती है.

4. बैकअप मशीनें हमेशा ऑन रहती हैं

  • अगर कोई चिप या सर्वर फेल हो जाए तो तुरंत दूसरी मशीन काम संभाल ले. इसलिए हज़ारों मशीनें स्टैंडबाय मोड में रहती हैं.
  • ये भी 10% बिजली खा जाती हैं.

5. कूलिंग और पावर सिस्टम

  • इतना बड़ा डेटा सेंटर बेहद गर्म हो जाता है. इसे ठंडा करने के लिए विशाल कूलिंग सिस्टम और पावर कन्वर्टर्स लगातार चलते हैं.
  • यहीं पर बची हुई 8% बिजली और पानी (कूलिंग के लिए) खर्च होता है.
  • जवाब तैयार होकर आपके पास लौट आता है.
  • AI सिस्टम लाखों कैलकुलेशन करके एक जवाब तैयार करता है और वो इंटरनेट के जरिए आपके स्क्रीन पर सेकंडों में दिख जाता है.

यानी जब आपको लगता है कि बस एक लाइन का जवाब मिला, उसके पीछे हज़ारों मशीनें सेकंडों तक दौड़ी हैं.

गूगल का दावा- अब पहले से 33 गुना कम खपत

रिपोर्ट में एक और चौंकाने वाला तथ्य सामने आया- मई 2024 की तुलना में मई 2025 में Gemini की औसत क्वेरी पर लगने वाली ऊर्जा 33 गुना कम हो चुकी है.

गूगल का कहना है कि उसने अपने मॉडल्स को बेहतर और स्मार्ट बनाया है, जिसकी वजह से अब कम बिजली में ज्यादा काम हो रहा है.

भारी-भरकम क्वेरी ज्यादा खपत करेंगी

ध्यान रहे, ये औसत आंकड़े हैं. अगर आप Gemini को छोटा सवाल पूछते हैं तो कम बिजली लगेगी, लेकिन अगर आप उसे 50 किताबें अपलोड करके सारांश लिखने को कहेंगे, तो वह कहीं ज्यादा ऊर्जा खर्च करेगा.

इसी तरह, रीज़निंग मॉडल्स (जो स्टेप बाय स्टेप सोचकर जवाब देते हैं) भी साधारण चैट से ज्यादा ऊर्जा खाएंगे.

तो अगली बार जब आप Gemini या ChatGPT से पूछें- “मुझे कल का राशिफल बता दो”- तो याद रखिए, आपका यह छोटा-सा सवाल मशीनों की पूरी फौज को दौड़ा देता है, जो कुछ सेकंड तक बिजली, पानी और कंप्यूटिंग पावर झोंककर आपके लिए जवाब बनाती हैं.

यानी AI का जादू दिखने में आसान है, पर इसके पीछे खर्च होती है बिजली, पानी और धरती का कीमती संसाधन.

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