भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर (IIT Kanpur) के शोधकर्ताओं ने एक ऐसा सेंसर विकसित किया है, जो आने वाले दिनों में मेडिकल रिसर्च की परिभाषा बदल सकता है. जी हां, जीपीसीआर बायोसेंसर (जी-प्रोटीन कपल्ड रिसेप्टर बायोसेंसर) हमारे शरीर की कोशिकाओं में दवा की गतिविधि को वास्तविक समय पर माप सकता है. यह रिसर्च दवा-विकास को सुरक्षित, सटीक और सस्ता बनाने की दिशा में भारत का बड़ा कदम मानी जा रही है.
क्या है जीपीसीआर बायोसेंसर
जीपीसीआर बायोसेंसर एक एंटीबॉडी-आधारित अनोखा बायोसेंसर है, जो कोशिकाओं के भीतर मौजूद जीपीसीआर की सक्रियता को बिना किसी जेनेटिक मॉडिफिकेशन के माप सकता है. यानी यह देख सकता है कि कोई दवा रिसेप्टर को कब, कितनी देर और कितनी तीव्रता से सक्रिय कर रही है. यह सेंसर किसी भी जीपीसीआर में बदलाव किए बिना ही उसकी गतिविधि को माप सकता है.
कैसे काम करता है जीपीसीआर बायोसेंसर
जीपीसीआर ऐसे प्रोटीन हैं, जो हमारी लगभग हर कोशिका की सतह पर पाए जाते हैं. ये कोशिकाओं की सतह पर मौजूद सिग्नल पकड़ने वाले दरवाजे की तरह काम करते हैं. जब कोई हार्मोन, न्यूरोट्रांसमीटर या दवा हमारे शरीर में पहुंचती है तो यही जीपीसीआर उसे पकड़कर कोशिका के अंदर सिग्नल भेजता है, जिससे शरीर में प्रतिक्रिया होती है जैसे हृदय गति बढ़ना, ब्लड प्रेशर कम होना, दर्द कम होना आदि. लगभग 30% दवाएं इन्हीं जीपीसीआर को टारगेट करती हैं.
नई दवाओं के विकास की दिशा में खुलेंगे बड़े अवसर
इस सेंसर की खूबसूरती यह है कि यह न सिर्फ रिसेप्टर्स की गतिविधि बताता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि वे कोशिका के किस हिस्से में हैं और आगे कौन-सी प्रक्रियाएं शुरू कर रहे हैं. इससे नई दवाओं के विकास की दिशा में बड़े अवसर खुलेंगे. इनकी सही समझ नई दवाओं के विकास में अहम भूमिका निभाएगी. इससे बच्चों और बड़ों में होने वाले दवाओं के साइड इफेक्ट के खतरे को भी कम किया जा सकता है. आपको मालूम हो कि डॉक्टर आज जितनी भी दवाइयां लिखते हैं, उनमें से करीब एक-तिहाई जीपीसीआर पर काम करती हैं.
यह तकनीक प्रयोगशाला स्तर पर हो चुकी है सफल
जीपीसीआर बायोसेंसर तकनीक प्रयोगशाला स्तर पर सफल हो चुकी है. अगले चरण में इसे क्लिनिकल ट्रायल्स में लागू किया जाएगा. डॉक्टरों और विशेषज्ञों के मुताबिक अगले दो वर्षों में इस तकनीक को दवा विकास की प्रारंभिक प्रक्रियाओं में प्रयोग किया जाने लगेगा.