बांग्लादेश में सनसनीखेज बदलाव! शेख मुजीबुर रहमान की विरासत पर हमला! राष्ट्रपिता का दर्जा छीना, नोटों से तस्वीर गायब

शेख मुजीब सिर्फ एक नेता नहीं, बल्कि बांग्लादेश की आत्मा थे. उनकी अगुवाई में लड़ा गया 1971 का मुक्ति युद्ध बांग्लादेश की पहचान का आधार है. उनके धर्मनिरपेक्ष और समावेशी विचारों ने हिंदू, मुस्लिम, और अन्य समुदायों को एकजुट किया.

शेख मुजीबुर रहमान
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 05 जून 2025,
  • अपडेटेड 2:40 PM IST

क्या एक देश अपने इतिहास को मिटा सकता है? क्या एक राष्ट्र अपने “राष्ट्रपिता” को भुला सकता है? बांग्लादेश में कुछ ऐसा ही हो रहा है, जहां शेख मुजीबुर रहमान, जिन्हें बंगबंधु (राष्ट्र का मित्र) और बांग्लादेश की आजादी का सबसे बड़ा नायक माना जाता है, उनकी विरासत को व्यवस्थित रूप से खत्म करने की कोशिश हो रही है. 

शेख मुजीबुर रहमान, जिन्हें प्यार से बंगबंधु कहा जाता है, बांग्लादेश की आजादी की लड़ाई का वो चेहरा थे, जिनके बिना इस देश का इतिहास अधूरा है. 1920 में जन्मे मुजीब ने अपनी जिंदगी का बड़ा हिस्सा बांग्लादेश को पाकिस्तान के चंगुल से आजाद कराने में लगा दिया.

1940 के दशक में, जब पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में बंगाली भाषा और संस्कृति पर हमले हो रहे थे, मुजीब ने आवामी लीग की स्थापना की और बंगाली राष्ट्रवाद को एक नई दिशा दी. 1970 के चुनाव में उनकी पार्टी ने भारी बहुमत हासिल किया, लेकिन पाकिस्तानी शासकों ने सत्ता सौंपने से इनकार कर दिया. इसके बाद शुरू हुआ 1971 का मुक्ति संग्राम, जिसमें मुजीब ने बांग्लादेश की आजादी की घोषणा की.

पाकिस्तानी सेना ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया, लेकिन उनकी आवाज को दबाया नहीं जा सका. भारत की मदद और बंगाली मुक्तिवाहिनी की लड़ाई के दम पर बांग्लादेश ने 16 दिसंबर 1971 को आजादी हासिल की. मुजीब को रिहा किया गया, और वे बांग्लादेश के पहले राष्ट्रपति बने. उनकी नीतियां- धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद, और बंगाली पहचान ने बांग्लादेश को एक नई दिशा दी. लेकिन 1975 में एक सैन्य तख्तापलट में उनकी और उनके परिवार की हत्या कर दी गई. उनकी बेटी शेख हसीना ने बाद में उनकी विरासत को आगे बढ़ाया और आवामी लीग को सत्ता में लाई.

बांग्लादेश की रीढ़
शेख मुजीब सिर्फ एक नेता नहीं, बल्कि बांग्लादेश की आत्मा थे. उनकी अगुवाई में लड़ा गया 1971 का मुक्ति युद्ध बांग्लादेश की पहचान का आधार है. उनके धर्मनिरपेक्ष और समावेशी विचारों ने हिंदू, मुस्लिम, और अन्य समुदायों को एकजुट किया. बांग्लादेश की मुद्रा पर उनकी तस्वीर, स्कूलों की किताबों में उनकी कहानी, और ढाका के धनमंडी 32 में उनका घर (जो बाद में म्यूजियम बना) उनकी विरासत के प्रतीक थे. उनकी बेटी शेख हसीना ने 2009 से 2024 तक सत्ता में रहते हुए मुजीब की इस विरासत को और मजबूत किया.

फोटो-गेटी इमेज

लेकिन 2024 में हसीना की सरकार का तख्तापलट और उनके भारत में निर्वासन के बाद बांग्लादेश की सियासत में भूचाल आ गया. नोबेल विजेता मुहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार ने सत्ता संभाली, और अब मुजीब की विरासत पर एक के बाद एक हमले हो रहे हैं.

मुजीब की पहचान पर चोट
2025 में बांग्लादेश की यूनुस सरकार ने नेशनल फ्रीडम फाइटर काउंसिल अमेंडमेंट अध्यादेश लाकर शेख मुजीबुर रहमान की विरासत को सीधे निशाना बनाया. इस कानून ने न सिर्फ स्वतंत्रता सेनानियों की परिभाषा बदली, बल्कि मुजीब को “राष्ट्रपिता” और “स्वतंत्रता सेनानी” (बीर मुक्तिजोद्धा) के दर्जे से भी वंचित कर दिया. नए नियमों के मुताबिक, 1971 के मुक्ति युद्ध के दौरान जो लोग नेशनल असेंबली या प्रांतीय असेंबली के सदस्य थे, उन्हें अब स्वतंत्रता सेनानी नहीं माना जाएगा. चूंकि मुजीब उस समय चुने हुए नेता थे, इसलिए उन्हें इस श्रेणी से बाहर कर दिया गया.

इसके साथ ही, तीन नई श्रेणियां जोड़ी गईं- मुक्तिजोद्धा सहयोगी (स्वतंत्रता सेनानियों के सहयोगी), मुक्तिजोद्धा परिवार (योद्धाओं के परिजन), और मुजीबनगर सरकार के सदस्य. जो लोग सरकारी पदों पर थे, उन्हें अब “मुक्ति युद्ध सहयोगी” कहा जाएगा. सबसे चौंकाने वाला बदलाव यह है कि मुजीब के नाम से पहले “राष्ट्रपिता” शब्द हटा दिया गया. यानी, बांग्लादेश के संस्थापक को अब आधिकारिक तौर पर “राष्ट्रपिता” नहीं माना जाएगा.

नोटों से तस्वीर गायब, धनमंडी 32 तबाह
यह सिर्फ कानून तक सीमित नहीं है. जून 2025 में बांग्लादेश ने नए बैंकनोट जारी किए, जिनमें मुजीब की तस्वीर की जगह हिंदू-बौद्ध मंदिरों, प्राकृतिक दृश्यों, और ऐतिहासिक स्थलों को जगह दी गई. यह कदम मुजीब की विरासत को कम करने की दिशा में एक और बड़ा झटका था. इसके अलावा, फरवरी 2025 में ढाका के धनमंडी 32 में मुजीब का ऐतिहासिक घर, जहां उन्होंने आजादी की घोषणा की थी, को प्रदर्शनकारियों ने बुलडोजर और आग से तबाह कर दिया. यह घर बांग्लादेश की आजादी का प्रतीक था, लेकिन अब यह खंडहर में बदल चुका है.

फोटो- गेटी इमेज

1971 के गद्दारों की नई परिभाषा
नए कानून ने 1971 के मुक्ति युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना का साथ देने वाली पार्टियों- जैसे मुस्लिम लीग, जमात-ए-इस्लामी, और निजाम-ए-इस्लामी की परिभाषा भी बदल दी. इन पार्टियों को अब “तत्कालीन” मुस्लिम लीग, “तत्कालीन” जमात-ए-इस्लामी, और “तत्कालीन” निजाम-ए-इस्लामी कहा जाएगा. यह बदलाव इन दलों को ऐतिहासिक संदर्भ में सीमित करने की कोशिश है, ताकि उनकी मौजूदा छवि को नुकसान न पहुंचे. यह कदम उन इस्लामी ताकतों को मजबूत करने की दिशा में देखा जा रहा है, जो हसीना सरकार के खिलाफ थीं.

हसीना की सरकार को 2024 में छात्र आंदोलनों ने उखाड़ फेंका था, और तब से मुजीब की मूर्तियों, तस्वीरों, और प्रतीकों पर हमले बढ़ गए. यूनुस सरकार ने आवामी लीग पर प्रतिबंध लगा दिया और मुजीब से जुड़े 8 राष्ट्रीय अवकाश रद्द कर दिए. स्कूल की किताबों से भी मुजीब और 1971 के युद्ध से जुड़े कई हिस्सों को हटाया दिया गया है.

 

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