scorecardresearch

Bangladesh Currency Crisis: बांग्लादेश में ‘नोटों का संकट'! क्या हर देश अपनी मर्जी से छाप सकता है पैसा? जानिए क्यों नहीं होती ऐसी 'नोटों की बरसात'

बांग्लादेश का मौजूदा संकट इस बात की मिसाल है कि किस तरह राजनीति और मुद्रा नीति के टकराव से आम जनता सबसे ज्यादा प्रभावित होती है. किसी भी देश के लिए यह जरूरी है कि वो अपनी आर्थिक नीतियों को विचारशील, संतुलित और दूर के लक्ष्य को ध्यान में रखकर बनाए. नहीं तो "नोट तो होंगे, लेकिन रोटी नहीं!"

Bangladesh currency crisis (Photo/GettyImages) Bangladesh currency crisis (Photo/GettyImages)

क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि किसी देश की सड़कों पर लोग हाथ में नोट लिए घूम रहे हों लेकिन वो दुकानदार उन्हें लेने को तैयार न हों? क्या हो अगर एटीएम से निकला पैसा इतना फटा-पुराना हो कि उससे चाय भी न खरीदी जा सके? बांग्लादेश में कुछ ऐसा ही हो रहा है और इसकी जड़ें महज एक तस्वीर में छुपी हैं!

क्या है बांग्लादेश में 'करंसी क्राइसिस' की असली वजह?
बांग्लादेश में फिलहाल नकदी की भारी किल्लत है. बैंक और एटीएम पुराने, फटे-चिट्ठे नोट दे रहे हैं और कई जगह तो वो भी नहीं मिल रहे. लेकिन यह केवल आर्थिक संकट नहीं है, यह एक राजनीतिक निर्णय की आर्थिक कीमत है.

मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार ने एक चौंकाने वाला फैसला लिया, अब बांग्लादेश के नए नोटों पर देश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान की तस्वीर नहीं होगी.

सम्बंधित ख़बरें

सरकार ने पुराने नोटों को रोका और नए नोट छापने का आदेश दिया, जिन पर धार्मिक स्थलों, बंगाली परंपराओं और विरोध प्रदर्शनों की चित्रकारी होगी. लेकिन इसका असर सीधे बाजार और आम जनता पर पड़ा है.

नोट हैं, लेकिन इस्तेमाल नहीं हो सकते!
बांग्लादेश बैंक के एक पूर्व अधिकारी जियाउद्दीन अहमद ने बताया कि 15,000 करोड़ टका के पुराने नोट अभी भी बैंकों के वॉल्ट में पड़े हैं लेकिन उन्हें बाजार में जारी करने की अनुमति नहीं है. नई मुद्रा छपने में समय लग रहा है और इससे बाजार में नोटों की भारी कमी हो गई है. छोटे दुकानदार, ग्राहक और बैंक सभी पुराने और खराब नोटों से परेशान हैं. एटीएम मशीनें तक गंदे, फटे और बदरंग नोट उगल रही हैं.

फर्स्टपोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, ढाका में एक दुकानदार मकबूल हुसैन बताते हैं, “पहले हर हफ्ते बैंक से नए नोट मिल जाते थे, अब पिछले महीने से सब बंद है. बैंक से जो पुराने नोट मिलते हैं, वो भी इस हालत में हैं कि ग्राहक उन्हें स्वीकार ही नहीं करते.”

(फोटो- गेटी इमेज)
(फोटो- गेटी इमेज)

ग्राहक शफिउल आलम बताते हैं कि उन्होंने 1000 टका का नोट दिया, बदले में मिले छोटे नोट इतने फटे थे कि दुकानदार ने खुद कहा, “अगले महीने आना, बदल देंगे!”

सिर्फ 3 तरह के नोट ही छपेंगे, वो भी धीरे-धीरे!
सरकारी प्रिंटिंग प्रेस में अभी तक नए नोटों की छपाई शुरू नहीं हुई है. मई से छपाई शुरू होगी- पहले 20, 50 और 1000 टका के नोट छापे जाएंगे. लेकिन इसकी प्रक्रिया इतनी धीमी है कि विशेषज्ञों का मानना है कि सभी पुराने नोटों को बाजार से हटाने में 5-7 साल लग सकते हैं.

2023-24 में 1.05 अरब नए नोट छापे गए थे, जबकि हर साल 1.5 अरब नोटों की जरूरत होती है. इससे स्पष्ट है कि आने वाले सालों में भी नकदी संकट बना रहेगा.

मुजीब की तस्वीर हटाने का नतीजा
कहा जा रहा है कि यह फैसला शेख हसीना को सत्ता से हटाने के बाद उनके पिता की विरासत मिटाने के लिए लिया गया था. पर इसका खामियाजा जनता को भुगतना पड़ रहा है.

एक ओर जहां देश का आर्थिक ताना-बाना डगमगा गया है, वहीं दूसरी ओर यह सवाल भी उठता है कि क्या कोई भी देश अपनी मर्जी से जितनी चाहे उतनी करंसी छाप सकता है? अगर हां, तो फिर पैसे की किल्लत क्यों?

(फोटो- गेटी इमेज)
(फोटो- गेटी इमेज)

जब नोट छापने की मशीन है, तो देश पैसे क्यों नहीं छापता?
इसका जवाब आसान है, पैसे छापना आसान है, लेकिन उसकी कीमत देश की अर्थव्यवस्था को चुकानी पड़ती है. अगर कोई देश जरूरत से ज्यादा पैसे छापता है, तो उसके कारण बाजार में नोटों की संख्या बढ़ जाती है लेकिन सामान और सेवाओं की मात्रा उतनी ही रहती है. इससे नोटों की "value" यानी मूल्य घटता है और महंगाई आसमान छूने लगती है.

उदाहरण के लिए- जरा कल्पना कीजिए अगर आज बाजार में सबको 1 लाख रुपये मिल जाएं, तो क्या हर कोई अमीर हो जाएगा? नहीं! दुकानदार तुरंत सब चीजों के दाम बढ़ा देंगे, क्योंकि हर ग्राहक के पास ज्यादा पैसा होगा. पैसा बढ़ेगा, लेकिन खरीदने की शक्ति घटेगी.

कुछ देश जो इस गलती का शिकार हुए
जिम्बाब्वे ने 2008 में सरकार ने ढेरों नोट छापे, नतीजा? महंगाई इतनी बढ़ी कि एक अंडा खरीदने के लिए ट्रॉली भर के नोट देने पड़े. ठीक इसी तरह 2016-2019 में वेनेजुएला सरकार ने कर्ज चुकाने और जनहित योजनाओं के लिए पैसे छापे. लेकिन डॉलर की कमी और महंगाई ने देश की अर्थव्यवस्था को तोड़ दिया.

केंद्रीय बैंक की भूमिका
अब बता दें, हर देश में एक केंद्रीय बैंक होता है जैसे भारत में RBI, अमेरिका में Federal Reserve, बांग्लादेश में Bangladesh Bank. इनका काम होता है:

  • मुद्रा छपाई को कंट्रोल करना
  • महंगाई दर पर नजर रखना
  • देश की GDP, उत्पादन और मुद्रा आपूर्ति के बीच संतुलन बनाए रखना

केंद्रीय बैंक बिना प्लानिंग के पैसे नहीं छापता, हर नया नोट देश की अर्थव्यवस्था, उत्पादन, विदेशी मुद्रा भंडार और आयात-निर्यात पर असर डालता है.

(फोटो- गेटी इमेज)
(फोटो- गेटी इमेज)

सिर्फ पैसा छापना हल नहीं, भरोसे की करेंसी जरूरी
करंसी केवल कागज का टुकड़ा नहीं होती. उसकी value उस देश की अर्थव्यवस्था और सरकार के प्रति भरोसे पर टिकी होती है. जब सरकार राजनीतिक फायदे के लिए नोटों की छपाई रोकती या अचानक बदलती है, तो देश के अंदर और बाहर दोनों जगह उसकी currency पर से विश्वास उठने लगता है.

बांग्लादेश का मौजूदा संकट इस बात की मिसाल है कि किस तरह राजनीति और मुद्रा नीति के टकराव से आम जनता सबसे ज्यादा प्रभावित होती है.
किसी भी देश के लिए यह जरूरी है कि वो अपनी आर्थिक नीतियों को विचारशील, संतुलित और दूर के लक्ष्य को ध्यान में रखकर बनाए. नहीं तो "नोट तो होंगे, लेकिन रोटी नहीं!"