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Success Story: पानी खरीदने जाने पर सबसे पहले जुबां पर नाम आता है बिसलेरी, जानिए इसका इतिहास

हम अपने मोहल्ले की दुकान हो या फिर रेलवे स्टेशन की कैंटीन बोतलबंद पानी खरीदने जाते हैं तो सबसे पहले जुबां पर बिसलेरी का ही नाम आता है. बिसलेरी के चेयरमैन रमेश चौहान अब इस कंपनी को बेचने जा रहे हैं. उनका कहना है कि बेटी जयंती कारोबार में दिलचस्पी नहीं रखती है इसलिए इसे बेचने का फैसला किया है. आइए जानते हैं बिसलेरी का इतिहास.

बिसलेरी के चेयरमैन रमेश चौहान बिसलेरी के चेयरमैन रमेश चौहान
हाइलाइट्स
  • भारत के 60 प्रतिशत बोतल बंद पानी पर बिसलेरी का चलता है राज

  • कभी पानी बेचने के आइडिया को कहा गया था पागलपन 

हम अपने मोहल्ले की दुकान हो या फिर रेलवे स्टेशन की कैंटीन बोतलबंद पानी खरीदने जाते हैं तो सबसे पहले जुबां पर बिसलेरी का ही नाम आता है. बिसलेरी के चेयरमैन रमेश चौहान अब इस कंपनी को बेचने जा रहे हैं. उनका कहना है कि बेटी जयंती कारोबार में दिलचस्पी नहीं रखती है इसलिए इसे बेचने का फैसला किया है. आइए जानते हैं बिसलेरी का इतिहास. बिसलेरी के पानी ब्रांड बनने की शुरुआत होती मुंबई के ठाणे से हुई. मुंबई स्थित बिसलेरी का प्लांट देशी है पर इसका नाम और कम्पनी विदेशी थी और तो और जब इस कंपनी की शुरुआत हुई थी तब ये पानी बेचती भी नहीं थी, बल्कि ये बेचती थी मलेरिया की दवा. इस कंपनी के संस्थापक एक इटेलियन थे जिनका नाम था फ्लाइस बिसलेरी. वर्ष 1921 में इनकी मृत्यु हो गई. इनके बाद बिसलेरी को कम्पनी के नए मालिक के रूप में मिले डॉक्टर रॉसिस जो पेशे से तो डॉक्टर थे पर उनका दिमाग एक बिजनेस मैन की तरह था. इनका एक दोस्त और इस कंपनी के कानूनी सलाहकार थे जो मुंबई के रहने वाले थे. उन्हीं का बेटा जिनका नाम था  खुसरो संतोक वो भी अपने पिता की तरह कानून की पढ़ाई कर वकालत करना चाहते थे लेकिन उनको बिसलेरी कम्पनी के नए मालिक की एक आइडिया इतना पसंद साया की उन्होंने वकालत छोड़ इस पर काम करना शुरू कर दिया. उस समय बिसलेरी के नए मालिक के दिमाग में एक बिजनेस आइडिया वो था बिसलेरी पानी का. उस समय उन्हें लगा कि यह आइडिया आनेवाले समय में नई तरह की क्रांति ला सकता है. फिर क्या था रोसिस और खुसरो संतोक ने इस आइडिया पर काम करना शुरू कर दिया और साल 1965 में ठाणे में एक पानी प्लांट के साथ शुरू किया. हालांकि उस वक्त इसके लिए बहुत सारे लोग उन पर हंस रहे थे.

एक रुपए में एक लीटर पानी खरीदकर पीने की लोग सोचते भी नहीं थे
1965 में भारत के लोगों की आर्थिक स्थिति उतनी अच्छी नहीं थी. उस वक्त में एक रुपए में पानी का बोतल खरीद कर कौन पीने के लिए सोच सकता था, लेकीन वही बोतल आज के भारत में 20 रुपए में आराम से बिक रहा है. उस वक्त में पानी बेचने का विचार काफी कम लोगों को समझ में आ रहा था, लेकीन उन्होंने बड़ी दूर की सोची. दरअसल उस समय मुंबई के कई इलाकों में साफ पानी की काफी दिक्कत थी. बिसलेरी भारतीय बाजार में अपने दो तरह के प्रोडक्ट के साथ आया जिनमें से एक बिसलेरी पानी था और दूसरा बिसलेरी सोडा. शुरुआत में ये दोनों प्रोडक्ट सिर्फ अमीर आदमी तक ही सीमित था. बिसलेरी के नए मालिक को ये पता था कि इसे जब तक आम लोगों के पहुंच तक नहीं बनाया जाएगा बड़े प्रॉफिट कमाना मुश्किल है. जब इसे आम लोगों के पहुंच तक लाया गया तो लोग बिसलेरी पानी की जगह बिसलेरी सोडा खरीदना ज्यादा पसंद कर रहे थे. जिसके बाद इनके मालिक को पानी का बिजनेस अब प्रॉफिटेबल नहीं लग रहा था. अब उन्होंने इसे बेचने का मन बना लिया. चार साल बाद 1969 में  बिस्लेरी को चार लाख रुपए में पारले कंपनी के मालिक चौहान ब्रदर्स ने खरीद लिया. बिसलेरी के तब देशभर में मात्र पांच स्टोर थे. उस वक्त पानी शीशे के बोतल में बेची जाती थी.

1985 के बाद मिली बड़ी कामयाबी
1985 के दौरान पीईटी/पेट यानी प्लास्टिक मटेरियल ने इस बिजनेस को बड़ी कामयाबी दिलाई. पीईटी एक हलका, मजबूत और रीसाइकल किया जा सकने वाला ऐसा पैकेजिंग मटीरियल है, जिसे किसी भी आकार में ढाला जा सकता है. पैकेजिंग की समस्या हल हुई तो दाम कम हुए. जिसके बाद बिसलेरी आम लोगों की पसंद बन गई.135 प्लांट के दम पर दो करोड़ लीटर पानी रोज बेचने वाली बिसलेरी देश-दुनिया में छा गई है.