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Explainer: वोडाफोन-आइडिया और टाटा टेलीसर्विसेज में सरकार की हिस्सेदारी के क्या हैं मायने, जानिए

अक्टूबर में, टेलीकॉम विभाग (DoT) ने एक राहत पैकेज की घोषणा की थी, जिसके तहत ऑपरेटरों को स्पेक्ट्रम और बकाया एजीआर के भुगतान पर चार साल की मोहलत दी गई थी. टेलीकॉम कंपनियों को चार साल के लिए देय ब्याज को इक्विटी में बदलने का विकल्प भी दिया गया था.

वोडाफोन-आइडिया और टाटा टेलीसर्विसेज में सरकार की हिस्सेदारी वोडाफोन-आइडिया और टाटा टेलीसर्विसेज में सरकार की हिस्सेदारी
हाइलाइट्स
  • टाटा टेलीसर्विसेज को सरकार को 850 करोड़ रुपये चुकाने थे

  • वोडाफोन-आइडिया को भी केंद्र को 16,000 करोड़ रुपये चुकाने थे

टाटा टेलीसर्विसेज ने मंगलवार को बड़ी घोषणा की है. टाटा वोडाफोन-आइडिया की ही तरह अडजस्टिड ग्रॉस रेवेन्यू (AGR) से निजात पाने के लिए टाटा टेलीसर्विसेज ने भी अपनी हिस्सेदारी सरकार को बेचने का फैसला किया है. दरअसल, टाटा टेलीसर्विसेज को सरकार को 850 करोड़ रुपये चुकाने थे, जिसकी बजाय उन्होंने इस बकाया इंटरेस्ट को चुकाने के लिए इक्विटी में बदलने का बड़ा निर्णय लिया है.

सरकार की कितने प्रतिशत हिस्सेदारी? 

इस फैसले के बाद अब टाटा टेलीसर्विसेज कंपनी में सरकार की 9.5 प्रतिशत हिस्सेदारी होगी. जिसकी बदौलत कंपनी को ये बकाया शुल्क अदा नहीं करना होगा. ये शुल्क कंपनी के 9.5 फीसदी के बराबर हो जाएगा.  

वोडा-आइडिया ने क्या लिया फैसला?

गौरतलब है कि वोडाफोन-आइडिया को भी केंद्र को 16,000 करोड़ रुपये चुकाने थे, जिसके बदले में उन्होंने इसे इक्विटी में बदलने का फैसला किया है. बता दें, ये कंपनी में 35.8 फीसदी हिस्सेदारी के बराबर है. यानि अब वोडाफोन-आईडिया में सरकार की 35.8 फीसदी की हिस्सेदारी होगी.  इसका साफ-सा मतलब है कि कंपनी में अब सरकार की सबसे ज्‍यादा शेयर होल्डिंग होगी.  

क्या है बैकग्राउंड?

दरअसल, अक्टूबर में, टेलीकॉम विभाग (DoT) ने एक राहत पैकेज की घोषणा की थी, जिसके तहत ऑपरेटरों को स्पेक्ट्रम और बकाया एजीआर के भुगतान पर चार साल की मोहलत दी गई थी. टेलीकॉम कंपनियों को चार साल के लिए देय ब्याज को इक्विटी में बदलने का विकल्प भी दिया गया था.

हालांकि, एयरटेल, रिलायंस जैसी कंपनियों को भी ये ऑफर दिया गया था, लेकिन उन्होंने इसे नहीं चुना. वे अपने हिस्से के बकाया शुल्क को चुकाएंगी. वहीं, वोडाफोन-आइडिया और टाटा टेलीसर्विसेज ने सरकार को अपनी कंपनी में हिस्सेदार बनाने का फैसला किया है.

टाटा ने दोनों विकल्पों का प्रयोग करने का लिया फैसला 

टाटा टेलीसर्विसेज, जो मुख्य रूप से महाराष्ट्र में फिक्स्ड लाइन ब्रॉडबैंड सेवाएं प्रदान करती है, ने कहा कि उसने दोनों विकल्पों का प्रयोग करने का फैसला किया है. कंपनी ने देय ब्याज का नेट प्रेजेंट वैल्यू (NPV) 850 करोड़ रुपये होने का अनुमान लगाया है. टेलीकॉम विभाग द्वारा निर्धारित 14 अगस्त, 2021 की कट-ऑफ तारीख के अनुसार कंपनी के शेयरों की औसत कीमत ₹41.50 प्रति पीस है.

वहीं, वोडाफोन आइडिया के मामले में, देय ब्याज का एनपीवी लगभग ₹ 16,000 करोड़ होने की उम्मीद है, जिसके लिए ऑपरेटर ने सरकार को 35.8 प्रतिशत हिस्सेदारी की पेशकश की है.

क्या हैं इस कदम के मायने?

बिजनेस लाइन की रिपोर्ट के अनुसार, जानकारों का कहना है कि वोडाफोन-आइडिया का ये कदम कंपनी के लिए अच्छा नहीं है. भारती एयरटेल के पूर्व सीईओ संजय कपूर ने कहा, "जहां तक ​​निवेशकों का सवाल है, वोडाफोन आइडिया के कदम से बाजार को संकेत मिलता है कि वे जितना पैसा उन्हें चाहिए उतना जुटाने में सक्षम नहीं हैं, और इसलिए उन्हें सरकार की मदद की जरूरत है. ये ग्राहकों के सामने उन्हें कमजोर दिखाती है. 

उन्होंने बीएसएनएल और एमटीएनएल का उदाहरण देते हुए बताया कि उनके मामले में सरकार का पुराना रिकॉर्ड अच्छा नहीं रहा है, ऐसे में वोडाफोन की फलने-फूलने की संभावना बेहद कम नजर आ रही है. 

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