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Work from Home: चार साल की स्टडी में खुलासा, वर्क फ्रॉम होम में खुश रहते हैं एम्प्लॉय, करते हैं ज्यादा काम... जानिए क्या कहती है रिसर्च

कोविड काल में कॉर्पोरेट जगत के सामने प्रकट हुआ वर्क फ्रॉम होम कई एम्प्लॉईज़ के लिए वरदान बनकर आया. हालांकि कोविड के जाते ही ज़्यादातर कंपनियों ने इसे अपनी पॉलिसी से बाहर कर दिया. लेकिन अब एक नई रिसर्च के अनुसार, वर्क फ्रॉम होम काम करवाने वालों और करने वालों, दोनों के लिए बेहतर है.

प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo/Getty) प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo/Getty)

कोविड-19 के जाते ही कॉर्पोरेट जगत में काम करने वालों को वर्क फ्रॉम होम से ऐसे दूर कर दिया गया जैसे किसी नन्हे परिंदे को घोंसले से कर दिया जाता है. कई कंपनियों की दलील थी कि घर से काम करते हुए कर्मचारी अपनी प्रोडक्टिविटी बरकरार नहीं रख पा रहे. लेकिन एक हालिया रिसर्च यह दावा करती है कि वर्क फ्रॉम होम में कर्मचारी ज्यादा खुश थे और बेहतर काम कर पा रहे थे. 

ऑस्ट्रेलिया से सामने आई रिसर्च
साउथ ऑस्ट्रेलिया विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने टेलीवर्कर्स पर की गई एक स्टडी में कोविड-19 महामारी के बाद से वर्क फ्रॉम होम के प्रभावों को ट्रैक किया है. चार साल की इस रिसर्च में यह बात सामने आई है कि घर से काम करने से लोगों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर पॉजिटिव असर पड़ा है. रिसर्च के अनुसार, जब कर्मचारियों को घर और ऑफिस दोनों से काम करने की आज़ादी दी गई तो उनके अंदर खुशी के स्तर में इज़ाफ़ा हुआ था.

आना-जाना बंद तो स्ट्रेस हुआ कम
इस अध्ययन में सबसे शुरुआती निष्कर्षों में से एक यह था कि घर से काम करने वाले बेहतर नींद ले पा रहे थे. महामारी से पहले की तुलना में टेलीवर्कर्स ने हर रात लगभग आधे घंटे ज्यादा नींद ली. शोधकर्ताओं का मानना है कि क्योंकि अब उन्हें ऑफिस आने-जाने में समय नहीं लगाना था, इसलिए वे बेहतर नींद ले पा रहे थे. रिसर्च में यह भी जिक्र किया एक ऑस्ट्रेलियाई नागरिक हर हफ्ते आवागमन में औसत 4.5 घंटे खर्च कर रहा था. 

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वर्क फ्रॉम होम से सबसे बड़ा फर्क यह पड़ा कि लोगों का स्ट्रेस कम हो गया.

अध्ययन में इस बात पर भी रोशनी डाली गई कि आवागमन में बिताया गया समय अक्सर खराब मानसिक स्वास्थ्य और स्वास्थ्य से जुड़ी दूसरी नकारात्मक धारणाओं का कारण था. यह टेलीवर्कर्स के लिए तनाव का कारण था और इससे छुटकारा पाकर उनकी मेंटल हेल्थ में भी सुधार देखा गया था.

परिवार के लिए निकाल पाए ज़्यादा समय
सफर न करके टेलीवर्कर्स ने जो समय बचाया, उसे उन्होंने सही कामों में लगाया. रिसर्च के अनुसार टेलीवर्कर्स ने हर साल 10 दिन से ज्यादा का समय बचाया. इसमें से एक तिहाई समय यानी करीब 80 घंटे उन्होंने शौकिया कामों में लगाए. उन्होंने न सिर्फ परिवार के साथ ज्यादा समय बिताया, बल्कि उनका खानपान भी सुधर गया. क्योंकि वे घर पर समय बिताते थे, इसलिए वे सब्जियां, फल और डेयरी प्रोडक्ट ज्यादा मात्रा में खाते थे और उनके खाने में पोषण भी ज्यादा था.

प्रोडक्टिविटी भी नहीं हुई कम
कई कंपनियों ने वर्क फ्रॉम होम यह कहते हुए बंद कर दिया कि घर पर रहते हुए कर्मचारी अच्छी तरह काम नहीं कर रहे थे. लेकिन रिसर्च से साबित हुआ है कि यह बात बेबुनियाद है. अध्ययन से पता चलता है कि जब कर्मचारी घर से काम करते हैं तो पेशेवर प्रदर्शन और उत्पादकता बनी रहती है. बल्कि उसमें सुधार ही होता है. 

यह सकारात्मक प्रभाव तब और भी मजबूत होता है जब कर्मचारी अपने सहकर्मियों और नियोक्ताओं से समर्थन महसूस करते हैं. दूर से सामाजिक बंधनों को दोहराने में चुनौतियों के बावजूद, अध्ययन इस बात पर जोर देता है कि टीम के सामंजस्य को कोई नुकसान नहीं होता है और समग्र प्रदर्शन स्थिर रहता है. 

भारत में भले ही वर्क फ्रॉम होम की वापसी मुश्किल हो, लेकिन इस रिसर्च ने यह तो दिखा ही दिया है कि आने वाले समय में ऑफिस कल्चर को किस दिशा में बदलने की ज़रूरत है. यह काम करने वालों और करवाने वालों, दोनों के ही हित में बेहतर होगा.