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Green Gold Bamboo Farming: खाली पड़ी है ज़मीन तो बांस उगाना है बेस्ट ऑप्शन, करोड़पतियों का भी फेवरेट है बैम्बू... जानिए क्यों फायदेमंद है इसकी खेती

अगर आपके पास थोड़ी सी भी जमीन है, चाहे गांव में हो या खाली पड़ी पुश्तैनी ज़मीन तो बांस लगाना एक स्मार्ट इनवेस्टमेंट साबित हो सकता है. इसकी खेती आपकी जेब भी भर देगी और धरती का भला भी होगा!

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आपने गोल्ड, रियल एस्टेट और शेयर मार्केट में इनवेस्टमेंट की कहानियां तो बहुत सुनी होंगी. लेकिन आजकल एक ऐसी “ग्रीन इनवेस्टमेंट” की चर्चा है जिसपर करोड़पति चुपचाप पैसा लगा रहे हैं. यह 'ग्रीन गोल्ड' है बांस जिसकी खेती भारत से लेकर अमेरिका और अफ्रीका तक लोकप्रिय हो रही है. हाल ही में ज़ेरोधा के फाउंडर नितिन कामत ने भी बैम्बू की खेती में अपनी दिलचस्पी ज़ाहिर की थी. 

यह वही बांस है जो गांवों में बाड़ बनाने, मचान लगाने या फर्नीचर बनाने में इस्तेमाल होता है. अब इसे ही “ग्रीन गोल्ड” के नाम से पुकारा जाने लगा है. लेकिन ऐसा क्या है कि यह कई करोड़पतियों की रूचि का केंद्र बन गया है? आइए जानते हैं. 

तेज़ ग्रोथ - झंझट कम, रिटर्न ज्यादा
जहां पेड़ों को बड़ा होने में 15-20 साल लग जाते हैं, वहीं बांस सिर्फ 3-5 साल में कटाई लायक हो जाता है. सबसे बड़ी बात यह है कि एक बार लगा देने के बाद इसे बार-बार लगाने की जरूरत नहीं पड़ती. यह खुद-ब-खुद बढ़ने (regenerate) लगता है. यही वजह है कि बिज़ी इन्वेस्टर्स इसे लॉन्ग-टर्म गेन वाला क्रॉप मान रहे हैं.

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हर पार्ट बिकता है, 1500 से ज़्यादा यूज़
बांस से फर्नीचर, फ्लोरिंग, पेपर, अगरबत्ती, टिश्यू, कपड़े, शूट्स (खाने में) और यहां तक कि बायोफ्यूल भी बनाया जाता है. मार्केट में इसकी इतनी डिमांड है कि आप चाहे रॉ बांस बेचें या वैल्यू-एडेड प्रोडक्ट्स, हर जगह प्रॉफिट मिलेगा.

मार्केट की तगड़ी ग्रोथ
एक रिपोर्ट के मुताबिक, ग्लोबल बांस मार्केट 2025 तक करीब 100 अरब डॉलर तक पहुंचने वाला है. भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बांस प्रोड्यूसर है और 136 से ज़्यादा नस्लें यहां पाई जाती हैं. यानी किसान और निवेशक दोनों के लिए ये बड़ा मौका है. 

सरकार भी दे रही है सपोर्ट
2017 में भारत सरकार ने बांस को “पेड़” की बजाय “घास” की कैटेगरी में डाल दिया. इससे काटने और बेचने के नियम आसान हो गए. ऊपर से नेशनल बैम्बू मिशन (National Bamboo Mission) के तहत सब्सिडी, ट्रेनिंग और मार्केटिंग सपोर्ट भी मिल रहा है.

भारत में कई किसान बैम्बू की खेती कर सफलता की कहानी भी लिख रहे हैं. महाराष्ट्र के पचगांव की मिसाल लीजिए. द गार्जियन की एक रिपोर्ट बताती है कि यहां आदिवासी लोगों ने बांस से बास्केट, फर्नीचर और दूसरी चीजें बनाकर बेचनी शुरू कीं. सिर्फ एक साल में गांव ने 37 लाख रुपए कमाए और 10 साल में ये आंकड़ा 3.4 करोड़ तक पहुंच गया.

पर्यावरण के लिए बोनस
बांस न सिर्फ कमाई का जरिया है बल्कि यह क्लाइमेट चेंज से लड़ने में भी मदद करता है. यह तेज़ी से कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है और खराब मिट्टी को उपजाऊ बनाने में भी काम आता है. मौजूदा दौर में कई किसान कार्बन क्रेडिट्स से भी किसान एक्स्ट्रा इनकम कमा रहे हैं. 

क्यों करोड़पति कर रहे हैं बैम्बू में इनवेस्टमेंट?

  • लॉन्ग-टर्म और सस्टेनेबल प्रॉफिट
  • कई तरह की प्रोडक्ट लाइन (कपड़े से लेकर हाउसिंग तक)
  • भारत में सरकार का सपोर्ट
  • इको-फ्रेंडली बिज़नेस टैग
  • असली सक्सेस स्टोरीज़ जिनसे भरोसा बढ़ता है

यानी अगर आपके पास थोड़ी सी भी जमीन है, चाहे गांव में हो या खाली पड़ी पुश्तैनी ज़मीन तो बांस लगाना एक स्मार्ट इनवेस्टमेंट साबित हो सकता है. इसकी खेती आपकी जेब भी भर देगी और धरती का भला भी होगा!