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झारखंड के इस गांव को कहा जाता है 'फूलों का गांव', हर किसान करता है सिर्फ फूलों की खेती

गांव के किसान को अपनी उपज बेचने के लिए कहीं दूर नहीं जाना पड़ता. देवघर के बाजारों, बाबा मंदिर और बासुकीनाथ धाम तक फूलों की सीधी सप्लाई होती है.

Marigold Flower Farming (Photo/Meta AI) Marigold Flower Farming (Photo/Meta AI)
हाइलाइट्स
  • फूलों की सीधी सप्लाई होती है.

  • गेंदा फूल की खुशबू से आत्मनिर्भरता की राह पर मलहरा गांव

देवघर से महज 7 किलोमीटर दूर स्थित मलहरा गांव किसी पहचान का मोहताज नहीं है. इसे लोग "फूलों का गांव" कहते हैं और यह नाम यूं ही नहीं पड़ा. यहां की करीब 3,000 आबादी वाले इस छोटे से गांव में हर किसान सिर्फ गेंदा की खेती करता है. यहां गेहूं-धान नहीं, बल्कि श्रद्धा, आस्था और पूजा के फूल उगते हैं.

मलहरा गांव के लोग सदियों से बाबा बैद्यनाथ की पूजा में इस्तेमाल होने वाले फूल उगा रहे हैं और इससे न सिर्फ अपनी आजीविका चला रहे हैं, बल्कि देवघर के धार्मिक माहौल में भी अहम भूमिका निभा रहे हैं.

लंबे समय से कर रहे फूलों की खेती
गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि उनके पूर्वजों के समय से ही गेंदा फूल की खेती होती आई है. बाबा बैद्यनाथ धाम, जो द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है, वहां पूरे साल पूजा-पाठ के लिए फूलों की जरूरत रहती है. इस जरूरत को पूरा करने का काम मलहरा गांव के किसान सालो से करते आ रहे हैं.

गांव के किसान को अपनी उपज बेचने के लिए कहीं दूर नहीं जाना पड़ता. देवघर के बाजारों, बाबा मंदिर और बासुकीनाथ धाम तक फूलों की सीधी सप्लाई होती है.

सावन में होती है मोटी कमाई
गांव के लिए सावन सबसे खास महीना होता है. इस दौरान देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु बाबा की नगरी पहुंचते हैं. मंदिरों में पूजा के लिए फूलों की डिमांड कई गुना बढ़ जाती है. किसान बताते हैं कि सावन में गेंदा फूल की बिक्री चरम पर होती है, और कई बार डिमांड इतनी अधिक होती है कि सप्लाई भी कम पड़ जाती है. यह महीना गांव के लिए कमाई का पीक सीजन होता है, जिससे पूरे साल की अर्थव्यवस्था को सहारा मिलता है.

अब चाहते हैं सरकारी सहयोग
हालांकि, किसानों की कुछ परेशानियां भी हैं. गेंदा फूल का बीज उन्हें कोलकाता से मंगवाना पड़ता है, जो न सिर्फ महंगा है बल्कि ट्रांसपोर्टेशन भी एक चुनौती है. किसान कहते हैं कि अगर सरकार तकनीकी सहायता, सब्सिडी और मार्केटिंग की सुविधा दे, तो वे गेंदा के साथ-साथ अन्य फूलों की किस्में भी उगा सकते हैं और राज्य से बाहर भी सप्लाई कर सकते हैं. उनकी मांग है कि सरकार इस गांव को 'फ्लोरल क्लस्टर' के रूप में विकसित करे और फूलों की प्रोसेसिंग व मार्केटिंग के लिए सुविधाएं मुहैया कराए.

सिर्फ मंदिर तक सीमित नहीं रहना चाहते
गांव के युवाओं और किसानों की नई पीढ़ी अब सिर्फ मंदिरों पर निर्भर नहीं रहना चाहती. वे कहते हैं कि अगर सही दिशा और समर्थन मिले, तो मलहरा गांव झारखंड ही नहीं, पूरे देश के लिए एक मॉडल बन सकता है. गांव के एक किसान ने कहा, हमारी खेती पूजा से जुड़ी है, लेकिन अब हमें बाजार से भी जुड़ना है.

-शैलेंद्र मिश्रा की रिपोर्ट