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Exclusive: खेती को बिजनेस की तरह करता है यह MA पास किसान, लगाए ऐसे आइडियाज कि आज 1 करोड़ रुपए है कमाई

हरियाणा के किसान सुरेंद्र सिंह इंटरक्रॉपिंग से साल में 9 महीने फसल लेते हैं. वह स्ट्रॉबेरी के साथ तरबूज, खरबूज और लिलियम जैसी फसलों की खेती भी कर रहे हैं.

Surendra Singh Surendra Singh
हाइलाइट्स
  • पिछले 22 सालों से खेती कर रहे हैं MA पास सुरेंद्र सिंह

  • वह स्ट्रॉबेरी से जूस, जैम, स्कवॉश, कैंडी, ड्राई स्ट्रॉबेरी, और साबून आदि बना रहे हैं

हरियाणा के हिसार के स्याहड़वा गांव के रहने वाले सुरेंद्र सिंह आज उन सभी किसानपुत्रों के लिए मिसाल हैं जिनका मानना है कि खेती में पैसा नहीं है. सुरेंद्र सिंह पिछले 22 सालों से खेती कर रहे हैं. खेती में नए-नए प्रयोग करके सुरेंद्र ने साबित किया है कि अगर आप आधुनिक तरीकों से काम करें तो आप खेती में बढ़िया कमा सकते हैं. 

आज खेती से उनकी कमाई सालाना 1 करोड़ रुपए है जिसमें 20 लाख रुपए से ज्यादा सिर्फ उनका मुनाफा है. GNT डिजिटल से बात करते हुए सुरेंद्र सिंह ने खेती में अपनी कामयाबी के बारे में बात की. 

हॉर्टिकल्चर से की शुरुआत 

सुरेंद्र सिंह ने साल 2000 में अपनी पढ़ाई के साथ-साथ खेती की शुरुआत की. उनका परिवार पारंपरिक खेती करता था. पर सुरेंद्र सिंह कुछ अलग करना चाहते थे. इसलिए ही गणित विषय में MA करने के बावजूद वह खेती से जुड़े रहे. उन्होंने एक एकड़ में हरी मिर्च की खेती से अपनी शुरुआत की. 

सुरेंद्र का कहना है कि वह खेती में प्रयोग करने से कभी भी चुके नहीं. पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने एक निजी स्कूल में बतौर शिक्षक नौकरी ले ली और साथ में, अपना खेत संभालते रहे. साल 2002 से उन्होंने स्ट्रॉबेरी की खेती करना शुरू किया. वह बताते हैं, "हमारे गांव में कृषि विश्वविद्यालय में कार्यरत एक वैज्ञानिक ने स्ट्रॉबेरी लगाने की शुरुआत की. मैंने उनसे इसकी खेती के बारे में जाना और फिर इसमें हाथ आजमाया. स्ट्रॉबेरी का उत्पादन अच्छा हुआ और इसका मार्केट भी अच्छा मिलता है. इसलिए धीरे-धीरे हमने अपना स्तर बढ़ाया."

करते हैं इंटरक्रॉपिंग

इंटरक्रॉपिंग (Intercropping) से लगातार कर पाते हैं कमाई 

सुरेंद्र ने कहा कि लगभग चार-पांच सालों में वह स्ट्रॉबेरी का अच्छा उत्पादन करने लगे. साथ ही, उन्होंने ऐसे मॉडल पर काम किया जिससे उन्हें सालभर कमाई मिलती रही. वह बताते हैं, "जब मुझे लगा कि अब मैं खेती के सहारे अपना घर अच्छे से चला सकता हुं और अपने परिवार को अच्छी जिंदगी दे सकता हुं तो मैंने टीचर की नौकरी छोड़कर खेती पर ध्यान दिया."

सुरेंद्र ने अपने खेत में इंटरक्रॉपिंग की. सर्दियों में वह स्ट्रॉबेरी उगाते हैं और फिर जैसे ही स्ट्रॉबेरी का सीजन खत्म होता है वह खेत में सीजन के हिसाब से कोई दूसरा फल या सब्जी लगा देते हैं. उनका कहना है कि वह 12 महीनों में से 9 महीने तक लगातार फसल लेते हैं और बाकी 3 महीने खेत को खाली रखकर तैयार किया जाता है. 

खेत में खाद और उर्वरकों के प्रयोग पर खास ध्यान 

सुरेंद्र के पास 4.2 एकड़ अपनी पुश्तैन जमीन है और अन्य 15 से 20 एकड़ के बीच जमीन वह लीज पर लेते हैं. पिछले कुछ सालों से उन्होंने फ्लोरिकल्चर में भी हाथ आजमाया है. वह लिलियम की खेती भी कर रहे हैं. स्ट्रॉबेरी और लिलियम के पौधे वह खुद विदेशों से इंपोर्ट करते हैं. 

सुरेंद्र का कहना है कि किसानों को जितना हो सके बिचौलियों से बचना चाहिए. इससे उनकी लागत कम होगी और उन्हें सीधे जानकारी मिलेगी. जिससे उनका ही फायदा है. इसके अलावा, वह अपने खेत में हमेशा जरूरत के हिसाब से खाद, उर्वरक और कीटनाशकों का प्रयोग करते हैं. इसके लिए वह समय-समय पर कृषि वैज्ञानिकों से सलाह-मशविरा करते रहते हैं. 

बना रहे हैं स्ट्रॉबेरी के उत्पाद 

सुरेंद्र ने बताया कि वह हरियाणा और आसपास में आयोजित होने वाले कृषि मेलों में लगातार अपना स्टॉल लगाते रहे हैं. इसी तरह से उन्होंने अपनी मार्केटिंग की. पिछले कुछ सालों से उन्होंने अपनी फसल में वैल्यू एडिशन करके तरह-तरह के उत्पाद बनाने की शुरुआत की है. 

स्ट्रॉबेरी की कर रहे प्रोसेसिंग

वह कहते हैं, "मैं पहले स्ट्रॉबेरी को टेबल फ्रूट के रूप में बेचता हुं. इसके बाद आखिर में जो फ्रूट बच जाता है उसे मैं प्रोसेसिंग के लिए लेता हुं. क्योंकि स्ट्रॉबेरी कुछ दिनों बाद खराब होने लगती है. इसलिए खराब होने से पहले ही मैं इसमें वैल्यू एडिशन कर लेता हुं." सुरेंद्र ने बताया कि वह स्ट्रॉबेरी से जूस, जैम, स्कवॉश, कैंडी, ड्राई स्ट्रॉबेरी, और साबून आदि बना रहे हैं. खास बात यह है कि अपने जूस, जैम आदि में चीनी की जगह मिश्री का इस्तेमाल करते हैं. 

गांव में लगा रहे हैं बड़ी प्रोसेसिंग यूनिट

सुरेंद्र ने बताया कि अब वह अपने गांव में बड़ी प्रोसेसिंग यूनिट लगा रहे हैं ताकि बड़े स्तर पर काम को ले जा सकें. इसके लिए उन्हें सरकार की CCDP (Crop Cluster Development Program) स्कीम से मदद मिल रही है. इस यूनिट के बनने के बाद वह कमर्शियल लेवल पर उत्पादन कर पाएंगे. इससे उन्हें आगे बढ़ने का मौका मिलेगा और साथ ही, वह गांव में ज्यादा से ज्यादा लोगों को रोजगार दे पाएंगे.