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Inspirational: 16 साल की उम्र में कश्मीरी लड़के ने पेश की मिसाल.... पढ़ाई के साथ-साथ शुरू किया अपना बिजनेस

पिछले पांच साल से ज़हीन ने अकेले पढ़ाई की है, बिना किसी टीचर, क्लासरूम या तय टाइमटेबल के. लेकिन फिर भी जब रिजल्ट आया, तो उन्होंने अच्छे नंबरों के साथ परीक्षा पास की.

Representational Image (AI Generated) Representational Image (AI Generated)

कई राज्यों में 10वीं-12वीं क्लास का रिजल्ट घोषित कर दिया है. कश्मीर में भी 10वीं का रिजल्ट आ चुका है. अब यहां सोशल मीडिया पर 10वीं क्लास के टॉपर्स और उनके नंबरों की कहानियां वायरल हो रही हैं. लेकिन इस सबमें 16 साल के ज़हीन अशाई की कहानी बिल्कुल अलग है. ज़हीन ने 10वीं क्लास बहुत अच्छे नंबरों से पास की है. लेकिन उनकी कहानी खास इसलिए है क्योंकि उन्होंने सेल्फ-स्टडी करके परीक्षा पास की है. वह किसी कोचिंग सेंटर नहीं गए और तो और वह स्कूल भी नहीं जा सका क्योंकि पाबंदियों की वजह से स्कूल बंद था. पिछले पांच साल से उन्होंने अकेले पढ़ाई की है, बिना किसी टीचर, क्लासरूम या तय टाइमटेबल के. लेकिन फिर भी जब रिजल्ट आया, तो उन्होंने अच्छे नंबरों के साथ परीक्षा पास की. 

लेकिन मार्कशीट के ये नंबर ज़हीन की कहानी का एक छोटा सा हिस्सा हैं. क्योंकि जब बाकी बच्चे सैंपल पेपर हल कर रहे थे, ज़हीन अपना खुद का स्टार्टअप बना रहे थे. जब औरों की किताबों से दोस्ती थी, ज़हीन कोडिंग सीख रहा था, लोगो डिज़ाइन कर रहा था, फुटबॉल खेल रहा था, और गिटार पर धुनें बना रहा था. उसका मकसद रैंक पाना नहीं था, बल्कि ज़िंदगी बनाना था. 

नंबरों से परे भी है जिंदगी 
ज़हीन का कहना है कि उन्हें सिर्फ़ एग्जाम पास नहीं करना था. उन्हें कुछ असली बनाना था, कुछ अपना. बच्चों के लिए जहां पढ़ाई अक्सर नंबरों तक सीमित होती है, ज़हीन का रास्ता न सिर्फ अलग था, बल्कि काफी हिम्मती भी था. यहां ज़्यादातर बच्चे  स्कूल, ट्यूशन, कोचिंग और एग्जाम, इसी सबमें बिजी रहते हैं. 

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लेकिन ज़हीन कुछ अलग बन रहे हैं. सिर्फ 13 साल की उम्र में उसने अपनी कंसल्टेंसी रजिस्टर करवाई और CEO बन गए. अब वह एक छोटा मैन्युफैक्चरिंग यूनिट शुरू करने की तैयारी में है. वह नेशनल लेवल पर जम्मू-कश्मीर की ओर से फुटबॉल खेलते हैं. साथ ही, ग्राफिक डिज़ाइनर, बॉक्सर, म्यूज़िशियन और कोडर भी हैं. उनकी सोच किताबों से आगे जाती है. 

माता-पिता ने दिया साथ 
ज़हीन के माता-पिता पहले थोड़ा परेशान थे. उनके पिता फारूक अशाई पहले बैंक में काम करते थे. उनका कहना है कि शुरुआत में उन्हें शक था. लेकिन जब देखा कि ज़हीन चीजों को लेकर गंभीर हैं, मेहनत कर रहे हैं, सीख रहे हैं, तो उन्होंने उन्हें खुद का रास्ता चुनने दिया. 

ज़हीन का रास्ता आसान नहीं था. उन्होंने ऑनलाइन वीडियो, ट्रायल-एंड-एरर, और घंटों मेहनत से सबकुछ सीखा. लेकिन उसका मकसद साफ़ था कि उन्हें सिर्फ पढ़ा-लिखा नहीं बनना है बल्कि समाज के काम आना. कश्मीर में स्टार्टअप कल्चर अभी नया है, ज़हीन नए दौर के युवाओं में से है जो पारंपरिक सफलता की परिभाषा से बाहर निकलना चाहते हैं. आज ज़हीन बहुत से बच्चों के लिए प्रेरणा बन रहे हैं जो मार्क्स की दौड़ से आगे निकलकर कुछ करना चाहते हैं.