

क्या आपने कभी सुना है कि कोई सास अपनी बहू को बेटी की तरह पढ़ाने के लिए स्कूल लेकर जाए? यह कोई फिल्मी कहानी नहीं, बल्कि बिहार के सुपौल जिले की एक सच्ची और प्रेरणादायक घटना है! यहाँ की कविता देवी ने अपनी नवविवाहिता बहू नीतू कुमारी का हाथ थामकर न सिर्फ उसे स्कूल में दाखिला दिलवाया, बल्कि उसके शिक्षिका बनने के सपने को भी पंख दिए. यह कहानी हर उस इंसान के लिए प्रेरणा है, जो यह मानता है कि सास-बहू का रिश्ता सिर्फ झगड़ों तक सीमित होता है.
क्या है पूरा मामला?
सुपौल जिले के छातापुर प्रखंड की कटहरा पंचायत के वार्ड नंबर 13 में रहने वाले महानंद सरदार के बेटे शनि कुमार की शादी 14 मई 2025 को नीतू कुमारी से हुई. नीतू, जो वार्ड नंबर 10 सरदार टोला की रहने वाली हैं, ने मध्य विद्यालय गिरिधरपट्टी से 8वीं कक्षा पास की थी. लेकिन शादी के बाद उनकी पढ़ाई छूट गई थी, और ऐसा लग रहा था कि अब उनकी किताबें हमेशा के लिए बंद हो जाएंगी.
लेकिन उनकी सास कविता देवी ने यह मंजूर नहीं किया. शादी के सिर्फ तीन दिन बाद, कविता ने नीतू को लेकर नजदीकी उत्क्रमित उच्च विद्यालय +2 कटहरा खतबे टोला पहुंचीं और उसका 9वीं कक्षा में दाखिला करवाया. अब नीतू यूनिफॉर्म पहनकर स्कूल जाती है और अन्य छात्राओं के साथ पढ़ाई करती है.
नीतू की इच्छा और सास का संकल्प
नीतू ने बताया कि वह हमेशा से पढ़ाई करना चाहती थी, लेकिन शादी के बाद उसे लगा कि उसका सपना अधूरा रह जाएगा. ससुराल आने पर उसने अपनी सास और पति से पढ़ाई की इच्छा जताई. नीतू ने भावुक होकर कहा, “मेरी सास ने मां बनकर मेरा हाथ थामा. मैं अब शिक्षिका बनकर उनकी उम्मीदों को पूरा करूंगी.” कविता देवी ने भी अपने दिल की बात साझा की. उन्होंने बताया कि उनकी दो बेटियां हैं, जिन्हें उन्होंने गरीबी के बावजूद इंटर तक पढ़ाया और शादी की.
लेकिन बेटियों को उच्च शिक्षा देने का उनका सपना अधूरा रह गया. अब बहू नीतू को पढ़ाकर वे अपने उस सपने को पूरा करना चाहती हैं. कविता ने कहा, “नीतू मेरी बेटी है. मैं उसे शिक्षिका बनते देखना चाहती हूं.”
स्कूल और समाज का सहयोग
नीतू की पढ़ाई की ललक और कविता की प्रेरणादायक पहल को देखकर स्कूल प्रबंधन ने भी पूरा साथ दिया. स्कूल की शिक्षिका स्मिता ठाकुर ने बताया कि नीतू की फीस पूरी तरह माफ कर दी गई है, और स्कूल प्रबंधन उसकी पढ़ाई में हर तरह से मदद करेगा. स्मिता ने कहा, “गरीबी से जूझ रहे इस परिवार का शिक्षा के प्रति जुनून देखकर हम सब खुश हैं. नीतू की पढ़ाई में कोई रुकावट नहीं आएगी.”
स्थानीय पंचायत के मुखिया साबिर कौशर ने भी इस पहल की जमकर तारीफ की. उन्होंने नीतू और कविता को सम्मानित किया और वादा किया कि नीतू की पढ़ाई का सारा खर्च वे उठाएंगे. साबिर ने कहा, “नीतू पढ़ेगी, तभी समाज बदलेगा. हम हर कदम पर उसका साथ देंगे.”
यह कहानी सिर्फ सास-बहू के रिश्ते की नहीं, बल्कि शिक्षा और सपनों की ताकत की है. कविता देवी ने “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” की कहावत को सही मायनों में चरितार्थ किया है. जहां समाज में आज भी बहू को बोझ समझा जाता है, वहीं कविता ने नीतू को बेटी बनाकर उसके सपनों को नया आसमान दिया. यह कहानी हर माता-पिता और सास को प्रेरित करती है कि वे अपने बच्चों और बहुओं की शिक्षा को प्राथमिकता दें.
(रामचंद्र मेहता की रिपोर्ट)