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13 साल की उम्र में किया आजीवन शादी न करने का फैसला ताकि संवार सकें हजारों बेटियों की ज़िंदगी, कन्या गुरुकुल शुरू कर बेटियों को बनाया विदूषी और वीरांगना

डॉ. सुमेधा उत्तर प्रदेश में अमरोहा के चोटीपुरा गांव में एक गुरुकुल चला रही हैं. जिसकी खासियत यह है कि इस गुरुकुल में सिर्फ बेटियों को शिक्षा दी जाती है. शिक्षित करने के साथ-साथ उन्हें हर तरह से आत्मनिर्भर भी बनाया जाता है. 

हाइलाइट्स
  • 13 साल की उम्र में लिया था संकल्प

  • शादी के लिए इकट्ठा किए पैसों से खोला कन्या गुरुकुल

हमारे देश में गुरुकुल की परंपरा बहुत ही पुरानी है.गुरुकुल में बच्चों को शिक्षा के साथ-साथ उनके जीवन में काम आने वाले सभी गुर भी सिखाए जाते हैं. वैसे तो आजकल गुरुकुलों की जगह बड़े-बड़े हाई-फाई स्कूलों ने ले ली है. लेकिन आज भी बहुत से लोग हैं जो इस परंपरा को सहेज रहे हैं. 

इन लोगों में एक नाम है डॉ. सुमेधा का. डॉ. सुमेधा उत्तर प्रदेश में अमरोहा के चोटीपुरा गांव में एक गुरुकुल चला रही हैं. जिसकी खासियत यह है कि इस गुरुकुल में सिर्फ बेटियों को शिक्षा दी जाती है. शिक्षित करने के साथ-साथ उन्हें हर तरह से आत्मनिर्भर भी बनाया जाता है. 

13 साल की उम्र में लिया था संकल्प: 

डॉ. सुमेधा चोटीपुरा के निवासी एक किसान परिवार की बेटी हैं. उन्होंने संस्कृत में एमए और पीएचडी कर चुकी हैं. उन्होंने 6 मार्च 1988 में 50 छात्राओं के साथ इस गुरुकुल की स्थापना की थी. लेकिन अब 800 से ज्यादा छात्राएं यहां पढ़ रही हैं.  

डॉ. सुमेधा ने मात्र 13 साल की उम्र में गृहस्थ जीवन से संन्यास लेने का निर्णय लिया था. डॉ. सुमेधा ने गुड न्यूज़ टुडे से बात करते हुए बताया कि महिलाओं पर होने वाले अत्याचार और उत्पीड़न की घटनाओं ने उन्हें बहुत विचलित कर दिया था. जिस कारण उन्होंने महज तेरह वर्ष की उम्र में ही महिला सशक्तिकरण के लिए अभियान चलाने का संकल्प लिया. 

हर दिन होता है यज्ञ

अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद जब वह अपने गांव लौटी तो उनके परिवार ने उनके समक्ष शादी का प्रस्ताव रखा.  लेकिन सुमेधा ने गृहस्थी को अपने लक्ष्य में रोड़ा माना और आजीवन विवाह न करने का फैसला लिया. 

शादी के लिए इकट्ठा किए पैसों से खोला गुरुकुल: 

डॉ. सुमेधा ने कभी शादी नहीं की बल्कि अपने पिता से शादी में होने वाले खर्च के बदले गुरुकुल विद्यालय खोलने के लिए कहा. अपनी बेटी की इस सोच और जज्बे से प्रभावित होकर उनके पिता ने उनका साथ दिया. उन्होंने साल 1988 में चोटीपुरा में ही श्रीमद दयानन्द कन्या गुरुकुल महाविद्यालय की स्थापना की. 

शुरुआत में छह बेटियों के दाखिले के साथ शुरू हुए इस महाविद्यालय में महाराष्ट्र, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, झारखंड, बिहार समेत 11 प्रांतों के हजारों बेटियों का जीवन संवार रहा है. बीते दस साल में 100 से ज्यादा छात्राएं नेट, जेआरएफ की परीक्षा पास कर चुकी हैं. 

गढ़ी जा रहीं विदूषी और वीरांगनाएं: 

गुरुकुल में बेटियों को मास्टर्स की डिग्री तक पढ़ाई कराई जाती है. पढ़ाई के साथ-साथ उन्हें तीरंदाजी, तलवारबाजी, भाला फेंक, योगासन जैसे शारीरिक व्यायाम भी कराए जाते हैं. व्यायाम से ही दिन की शुरुआत होती है. इसके बाद हर दिन यज्ञ पूजन किया जाता है. 
और फिर बच्चियां स्कूल में पढ़ाई के लिए निकलती हैं. इनकी पढ़ाई के सिलेबस में संस्कृत को बहुत महत्व दिया गया है. 

भाला फेंक, तीरंदाजी के साथ योग में भी निपुण हैं बेटियां

तीरंदाजी और योगासन में गुरुकुल की धुरंधर बेटियों ने 500 से अधिक मेडल झटक कर देश-दुनिया में अपना नाम रोशन किया है. डॉ. सुमेधा बताती हैं कि यहां से लड़कियों का सौ प्रतिशत प्लेसमेंट होता है. कई लड़कियां आईआईटी बॉम्बे जैसी कई बड़ी जगहों पर जा रही हैं तो कई आईएएस और आईपीएस बनने की तैयारी में हैं.