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Iron Craft Workshop: कबाड़ से जुगाड़! छात्रों ने स्क्रैप से बनाई बेहतरीन कलाकृतियां

छत्तीसगढ़ के दुर्ग के एक शासकीय कॉलेज में खराब पुराने कूलर के बेकार पड़े लोहे के स्क्रैप से वाद्ययंत्र बनाने की बस्तर की पारंपरिक लौह शिल्प कला को बढ़ावा देने के लिए 10 दिन की कार्यशाला का आयोजन किया गया. छात्रों ने कबाड़ से कई बेहतरीन कलाकृतियां बनाई.

Bastar Iron Craft Workshop in Durg Bastar Iron Craft Workshop in Durg

छत्तीसगढ़ के दुर्ग के शासकीय विश्वनाथ यादव तामस्कर स्नातकोत्तर स्वशासी महाविद्यालय में कचरे (Waste Material) यानी कॉलेज में उपयोग किये गए खराब कूलर के स्क्रैप से वाद्ययंत्र बनाने की बस्तर की पारंपरिक लौह शिल्प कला को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत 10 दिवसीय एक लौह शिल्प कार्यशाला का आयोजन किया गया. इस कार्यशाला का उद्देश्य छात्रों को बेकार वस्तुओं से कलाकृतियाँ बनाना सिखाना और बस्तर के पारंपरिक लौह शिल्प को पुनर्जीवित व पारंपरिक लौह शिल्प के ज्ञान और कौशल को बढ़ावा देना है.

लौह शिल्प की बारीकियां सीखने का मिलता है मौका-
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के कौशल आधारित शिक्षा पर जोर देने के अनुरूप ये लौह शिल्प कार्यशालाएं छात्रों को पारंपरिक कला के माध्यम से व्यावहारिक कौशल प्रदान करती है. इसमें छात्रों को सीधे लौह शिल्प की बारीकियां सीखने का मौका मिलता है. जिससे उन्हें सांस्कृतिक विरासत को समझने में मदद मिलती है.

सदियों पुरानी कला को संरक्षित करना मकसद-
इन कार्यशालाओं के माध्यम से, कॉलेजों का लक्ष्य बस्तर की सदियों पुरानी कला को संरक्षित करना और बढ़ावा देना है. यह पहल न केवल छात्रों को कला बारे में सीखती है, बल्कि बस्तर के लौह शिल्पियों की कारीगरी को भी सम्मान देती है, जो देश और दुनिया में लोकप्रिय है. इस कार्यशालाओं में अक्सर बस्तर के कुशल शिल्पकार शामिल होते है, जो छात्रों को प्रत्यक्ष रूप से मार्गदर्शन देते है. इस तरह, छात्रों को न केवल एक कला रूप सीखने का मौका मिलता है, बल्कि उन्हें कारीगरों की जीवंत संस्कृति और परम्पराओं को समझने का अवसर मिलता है.

40 छात्रों ने सीखा हुनर-
कालेज मे बीए प्रथम वर्ष और एमए क्लास पढ़ने वाले इतिहास विभाग के 40 छात्रों को प्रशिक्षण देकर स्क्रैप और बेकार लोहे जैसी सामग्रियों का उपयोग करके रचनात्मक कलाकृतियाँ बनाना सिखाया गया, जो कचरे को कम करने में भी मदद करता है.

यह कार्यशाला छात्रों और समुदाय को बस्तर की समृद्ध लौह शिल्प कला से जोड़ने में मदद करती है, जो देश और विदेश में अपनी लोकप्रियता के लिए जानी जाती है. महाविद्यालय परिसर के एक हिस्से में बस्तर के कोंटा गाँव से आये कलाकारों के साथ कार्य शाला में भाग ले रहे बच्चे भी भट्ठियां सुलगाते नजर आते हैं और इसमें लोहे को पीट पीटकर व तपा कर ये शिल्पकार व बच्चे छेनी-हथौड़ी व अन्य उपकरणों की मदद से नया आकार दे रहे हैं. कार्यशाला में महाविद्यालय के कबाड़ के कूलर से कोंडागांव से आये कुशल प्रशिक्षकों के निर्देशन में धनुर्धारी आदिवासी युवक, ढोल बजाता मुरिया पुरुष की खड़ी मूर्ति, आदिवासी महिला, आदिवासी युगल मूर्ति, वाद्ययंत्र के साथ आदिवासी युवक के साथ -साथ अनेकों पुरुष आकृति, मुखोटें, दीप स्टैंड आदि का निर्माण किया गया है.

(रघुनंदन पंडा की रिपोर्ट)

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